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महत्त्वपूर्ण उपाय हैं। इससे वांछित परिवर्तन सम्भव है। इससे मानसिक स्वास्थ्य के विकास को बहुत गति मिल सकती है। स्वस्थ मानसिकता हिंसात्मक समस्याओं को सुलझाने में अहं भूमिका रखती है। आन्तरिक परिवर्तन एवं परिवेश की विशुद्धि के लिए अनुप्रेक्षा और प्रेक्षा के प्रयोगों की उपादेयता है। इस प्रयोग से शरीरस्थ न्यूरोन्स सुझाव को ग्रहण कर वांछित परिवर्तन पूर्वक विकास को संपादित करते हैं। परिणामतः चिन्तन और अनुचिन्तन की प्रक्रिया से चित्त शुद्धि, चित्त समाधि, समस्या समाधान और संस्कार निर्माण घटित होता है। भावना प्रयोग हृदय परिवर्तन का मौलिक उपक्रम है-भावना। भावना का प्रयोग आत्म-सम्मोहन का प्रयोग है। इसके द्वारा जटिलतम आदतों को बदला जा सकता है। इस प्रक्रिया में सर्व प्रथम उच्च स्वर में बोल-बोलकर मन को भावित किया जाता है, फिर मंद स्वर में, पश्चात् बिना उच्चारण के मानसिक स्तर पर चित्त को भावित किया जाता है। तीनों प्रकार से मन को भावित करने के पश्चात् भावना को वहाँ तक पहुँचाया जाता है जहाँ परिवर्तन की प्रक्रिया घटित होती है। दृढ़ निश्चय के साथ इसका अभ्यास करने पर स्वभाव अपने आप बदल जाता है।132
प्रेक्षाध्यान पद्धति के विभिन्न प्रयोग हृदय-परिवर्तन-मस्तिष्कीय परिवर्तन के सशक्त आधार बनते हैं। इन प्रयोगों के अभाव में हृदय परिवर्तन की कल्पना मात्र मन बहलाव साबित होती है। योगासन और अहिंसा योगासन और अहिंसा का संबंध है। ऋषि-मुनियों ने अनुभव के आधार पर इसे प्रतिष्ठित किया है। योग केवल शरीर को साधने का ही प्रयोग नहीं है अपितु भावनात्मक स्तर पर अहिंसक चेतना के जागरण का महत्त्वपूर्ण उपक्रम है। महात्मा गांधी ने योगासन के द्वारा घटित होने वाले परिणामों को स्वीकार किया। उनकी सोच में आसन सात्विक व्यायाम है जिसका प्रधान उद्देश्य शरीर को योगी नहीं बल्कि शुद्ध बनाना है। इनसे कितनी ही बीमारियाँ दूर होती हैं। व्यायाम का अहिंसक स्वरूप स्वीकारते हुए गांधी ने कहा अहिंसा की तालीम में अनेक प्रकार के हठयोग संबंधी प्रयोग स्वीकृत हैं उसमें शरीर-शिक्षा, शरीर का आरोग्य, शरीर को सुदृढ़ बनाना, ठंड, धूप सहने की शक्ति बढ़ाना, शरीर की चपलता बढ़ाना आदि का समावेश होता है।33 गांधी के योग, व्यायाम संबंधी विचारों से यह ध्वनित होता है कि उन्होंने अहिंसात्मक प्रक्रिया में शरीर को साधने की अपेक्षा से योगासन को वरीयता प्रदान की है। __महाप्रज्ञ ने अहिंसक व्यक्तित्व निर्माण एवं हृदय परिवर्तन में योगासन की अनन्य भूमिका स्वीकृत की हैं। शरीर में जमा होने वाले विजातीय तत्त्वों का निष्कासन योगासन के द्वारा स्वाभाविक रूप से होने लगता है। आसान के द्वारा मानसिक और भावनात्मक द्वंद्वों पर विजय पाई जा सकती है। पुष्टि में उन्होंने लिखा-जिसे बहुत गुस्सा आता है, उस व्यक्ति को शशांक आसन का प्रयोग कराया जाए तो उसका गुस्सा कम हो जाता है। जिसमें वासना जनित वृत्तियाँ जागृत होती हैं, उसे योगमुद्रा का प्रयोग कराया जाए। वासना जन्य वृत्तियों के उभार में एड्रिनल ग्लेण्ड-वृक्कग्रंथि सहायक बनती है। ....शशांक आसन और योगमुद्रा के द्वारा एडिनल ग्लेण्ड पर नियंत्रण किया जा सकता है। 34 अपेक्षातः योगासन वृत्ति परिष्कार की मौलिक प्रविधि है।
हदय परिवर्तन एक विमर्श । 335