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मानना था कि स्थिरता से हिंसा पर नियंत्रण किया जा सकता है। ध्यान स्थिरता का अचूक प्रयोग है। यह कायिक. वाचिक, मानसिक ध्यान है। इनसे हिंसा की प्रवत्ति पर नियंत्रण होता है। 22
प्रेक्षा से परिवर्तन प्रेक्षाध्यान पद्धति के अनेक आयाम हैं-कायोत्सर्ग, अन्तर्यात्रा, श्वास प्रेक्षा, शरीर प्रेक्षा, चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा, अनुप्रेक्षा-भावना आदि। इन सभी का सम्मिलित लक्ष्य है चैतन्य का जागरण, व्यक्तित्व का रूपांतरण। ध्यान के जिन प्रयोगों से व्यक्तित्व में बदलाव आता है उन मुख्य प्रयोगों की संक्षिप्त मीमांसा प्रासंगिक होगी। कायोत्सर्ग : एक वैज्ञानिक विधि तनाव इस युग की सबसे बड़ी त्रासदी है। अतिशय तनाव आदमी को पागल बना देता है। पागलपन का मुख्य कारण ही तनाव है। तनाव ने हिंसक घटनाओं के प्रतिशत को बढ़ावा दिया है। तनाव से उबरने की महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है-कायोत्सर्ग। इसका प्रयोग दबाव द्वारा उत्पन्न हानिकारक प्रभावों को निष्फल करने के लिए किया जाता है। कायोत्सर्ग की पृष्ठभूमि में 'दबाव' को समझना जरूरी है। जो भी परिस्थिति हमारी सामान्य जीवन-धारा को अस्त-व्यस्त कर दें, उसे 'दबाव या तनाव पैदा करने वाली' परिस्थिति कहा जाता है। आधुनिक मनुष्य के मानस में पैदा होने वाले ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा, घृणा या भय के भाव, सत्ता और संपत्ति के लिए संघर्ष, लालसाएँ और वहम भी 'दबाव-तंत्र' को प्रवर्तित कर देते हैं। इस दबाव से मुक्त होने की प्रक्रिया है-कायोत्सर्ग ।।23 कायोत्सर्ग का अर्थ है-शरीर का व्युत्सर्ग और चैतन्य की जागृति।
कायोत्सर्ग स्वभाव परिवर्तन का महत्त्वपूर्ण उपक्रम है। सेल्फ हिप्नोटिज्म प्रक्रिया के सूत्र ऑटोरिलेक्शेसन-स्व-शिथिलीकरण, सेल्फ एनेलिसिस-अनुप्रेक्षा का इसमें समावेश किया गया है। इसमें विशेष रूप से विवेक को जोड़ा गया है। कायोत्सर्ग की पूर्णावस्था में व्यक्ति देह और चैतन्य की भेदानुभूति के साथ वैभाविक मानसिक-बौद्धिक अवस्थाओं को अपने से भिन्न-विजातीय जानकर उनसे मुक्त होने का संकल्प करता है। वही संकल्प शरीरस्थ कोशिका, नाड़ीसंस्थान, ग्रन्थि-संस्थान तक पहुँचकर रासायनिक परिवर्तन घटित करता है।24 जो हृदय परिवर्तन का आधार बनता है। संक्षेप में कायोत्सर्ग का प्रयोग तनाव मुक्ति एवं हृदय परिवर्तन का महत्त्वपूर्ण घटक है।
श्वास प्रेक्षा चित्त की चंचलता से उपजी समस्याओं का समाधान श्वास प्रेक्षा के प्रयोग से सुगम बन जाता है। श्वास प्रेक्षा का अर्थ है-श्वास के प्रति जागृति। जो व्यक्ति श्वास के प्रति नहीं जागता, वह व्यक्ति जीवन में घटित होने वाली घटनाओं के प्रति जागरूक नहीं बन सकता। जागरूकता से श्वास लेने वाला व्यक्ति संक्लेश से मुक्ति पाने का रहस्य जान लेता है।
श्वास और आवेग का परस्पर गहरा संबंध है। श्वास की गति पर द्रष्टा भाव का विकास करके अथवा उसकी दिशा में परिवर्तन करके आवेग, आवेश पर नियंत्रण स्थापित किया जा सकता है। काम, क्रोध, घृणा, ईर्ष्या, अहंकार आदि की तरंगें श्वास की चंचलता के बिना नहीं उभरतीं। क्रोध आता है तो श्वास तीव्र हो जाता है या श्वास तीव्र होता है तब क्रोध की तरंग आती है। श्वास
हृदय परिवर्तन एक विमर्श / 331