Book Title: Andhere Me Ujala
Author(s): Saralyashashreeji
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

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Page 307
________________ इसी दृष्टिकोण में विश्व के महान् दार्शनिक आचार्य महाप्रज्ञ ने अणुव्रत के मंच से इस कार्य का शुभारम्भ 5 अप्रेल 1999 को नई दिल्ली में किया। इस अवसर पर देश एवं विदेश में फैले अहिंसात्मक संगठनों के प्रतिनिधियों ने एक जाजम पर इकट्ठे होकर सम्पूर्ण शक्ति के साथ कार्य करने की योजना बनाई। इस योजना की क्रियान्विति के लिए अहिंसात्मक शक्तियों के इस मंच को नाम दिया गया 'अहिंसा समवाय।'64 विश्व शांति के प्रयासों में अहिंसा समवाय को एक सार्थक पहल माना जा सकता है। इसके द्वारा आचार्य महाप्रज्ञ ने समाज में अहिंसा की अलख जगाने का आह्वान किया है। अहिंसा-समवाय अहिंसा के क्षेत्र में कार्य करने वाली शक्तियों का एक समवेत मंच है। आचार्य महाप्रज्ञ ने अहिंसा समवाय की संयोजना के साथ इस बात पर बल दिया कि असल में जब तक अहिंसा की शक्तियां संगठित नहीं होगी तब तक अहिंसा को तेजस्वी बनाना कठिन है। विभिन्न धार्मिक-नैतिक संगठन अहिंसा समवाय में विशेष सक्रिय बने यह समय की पुकार है। उद्देश्य अहिंसा समवाय के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए आचार्य महाप्रज्ञ ने कहा कि अहिंसा के लिए पसीना बहाया जायेगा तो हिंसा रूकेगी और मनुष्य का खून नहीं बहेगा। अगर हम बचपन से ही बच्चों को अच्छे संस्कार देते हैं, तो बच्चे भविष्य में अच्छे नागरिक बनते हैं। उनमें अहिंसा की वत्ति का भी विकास होता है। इसके लिए अहिंसा का प्रशिक्षण जरूरी है तथा जीवन विज्ञान को स्कूली पाठ्यक्रमों का अंग बनाया जाना चाहिए। अहिंसा समवाय मंच भी इन्हीं उद्देश्यों पर केन्द्रित है।65 मंतव्य के संदर्भ में यह बहुत स्पष्ट हो जाता है कि अहिंसा एवं शांति का मौलिक विकास ही इसका केन्द्र बिन्दु रहा है। 'अहिंसा समवाय' का उद्देश्य है अहिंसा में विश्वास करने वाले सारे संगठन एकजुट होकर एक मंच पर आएं और सामूहिक प्रयास के द्वारा अहिंसा की आवाज और अभियान को प्रभावी बनाए। सभी संस्थाओं का एक मंच से कार्यक्रम चलेगा तो वह एक आंदोलन का स्वरूप ग्रहण करेगा और शांति की दिशा में सार्थक होगा। इसके मुख्य लक्ष्य हैं-1. मानव-मानव के बीच, मानव एवं समाज के बीच और मानव एवं विश्व के बीच शोषण विहीन आत्मीय संबंध स्थापित करना। 2. समाज के संचालन में किसी बाहरी शासन की आवश्यकता न रखकर व्यक्ति तथा व्यवस्थाओं में आत्मानुशासन स्थापित करना। __ अहिंसा शक्तिशाली बनकर व्यक्ति-व्यक्ति के हृदय में प्रतिष्ठित हो, यही इसका ध्येय है। सुख और शांति के लिए अहिंसा का पथ श्रेयस्कर है। पृष्ठभूमि अहिंसा की बात दुनिया के अंचल तक पहुंचे, इसके लिए महाप्रज्ञ ने अहिंसा-समवाय की परिकल्पना की। इसकी पृष्ठभूमि को स्पष्ट करते हुए महाप्रज्ञ ने बताया-महात्मा गांधी, आचार्य विनोबा भावे और गुरुदेव तुलसी ने भारत के भविष्य की कल्पना शांति और अहिंसा के अग्रदूत के रूप में की थी। उसके लिए हमें एक शक्तिशाली आवाज बनानी है। आज अहिंसा पर खण्ड खण्ड में अनेक जगह कार्य हो रहा है, पर बिखरा हुआ होने के कारण उसका परिणाम सामने नहीं आ रहा है। अहिंसा समवाय अपने मन्त्र को पूरा करने में तभी सफल हो पायेगा जब इसके सदस्य वृत्तियों के परिष्कार के प्रति दृढ़ संकल्पित हों। शास्ता की यह सोच जन मानस को अहिंसा की ओर गतिशील करती है। अहिंसा का संगठनात्मक स्वरूप / 305

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