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हो रहा है। हम भी अहिंसा के स्वर को धार्मिक और आध्यात्मिक संदर्भ में नहीं खोज रहे हैं किन्तु जागतिक हिंसा के संदर्भ में खोज रहे हैं। आज का जागतिक संदर्भ हिंसा का है। उसके लिए अहिंसा की चर्चा करें और वह भी व्यक्ति के बिन्दु को सामने रखकर अणुव्रत के मंच से 162
यथार्थ के धरातल पर हिंसा की बाढ़ को रोकने का विकल्प है अहिंसा। अहिंसा के विकास का साधन है उसका प्रशिक्षण। अहिंसा सार्वभौम माध्यम बनेगा, उसके प्रति आकर्षण उत्पन्न करने का और प्रशिक्षित कार्यकताओं को अहिंसा की रणभूमि में नियोजित करने का।
अहिंसा का प्रशिक्षित कार्यकर्ता मरने की बात सोच सकता है, पर दूसरों को मारने की बात कभी नहीं सोच सकता। यह अभय के विकास की प्रक्रिया सरल नहीं है, सघन प्रयत्न के द्वारा उसे सरल और संभव बनाया जा सकता है। अहिंसा सार्वभौम का लक्ष्य अहिंसा के क्षेत्र में प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं का निर्माण करना है जिससे अहिंसा की शक्ति का साक्षात् अनुभव जन-चेतना को हो सके। अहिंसा तेजस्वी कैसे हो? इस संबंध में महाप्रज्ञ कहते है-'अहिंसा को तेजस्वी बनाने की बात आती है तो मैं सोचता हूँ कि अहिंसा शब्द को ही सामने लाने की बात नहीं रहेगी, उसके पीछे क्या करणीय है, उस पर भी हमारा ध्यान केन्द्रित होना चाहिए। अहिंसा सार्वभौम की परिकल्पना के पीछे यही बात जुड़ी हुई है कि किस प्रकार का मनोभाव विकसित किया जाए कि अहिंसा अपने आप अवतरित हो पूरी तेजस्विता के साथ ।'63 यह अहिंसा की आस्था का स्पष्ट निदर्शन है।
अहिंसा एक सार्वभौम तथ्य है जिसका प्रभाव व्यक्ति से समष्टि पर्यंत होता है। उसका प्रभाव भले ही विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न रूप से परिलक्षित होता है। उदाहरण स्वरूप व्यक्ति के जीवन में करुणा, मैत्री, प्रेम और पवित्रता के तौर पर देखा जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में हिंसा और युद्ध की समस्या के समाधानार्थ अहिंसा सार्वभौम की कल्पना की गई है।
अहिंसा समवाय जगत् जैविक अस्तित्व का पर्याय है। बहुत सूक्ष्म जीव भी सृष्टि की संरचना के अनिवार्य घटक हैं। पर्यावरण के संकट ने अहिंसा को व्यापक आधार दिया है। मनुष्य का अस्तित्व अन्य प्राणियों के अस्तित्व के साथ जुड़ा हुआ है यह बहुत स्पष्ट हो चुका है। अहिंसा केवल पारलौकिक साधना ही नहीं है अपित इस जीवन की उपयोगिता भी है। लेकिन संकीर्ण सोच एवं नितांत भौतिकवादी दृष्टिकोण के कारण आज पूरी दुनिया अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। एक ओर संकीर्ण राष्ट्रवाद ने विनाशक शस्त्रों की स्पर्धा को प्रबल किया है तो दूसरी ओर उन्मुक्त भोगवाद समाज और परिवार की संगठना को क्षति पहुँचा रहा है। अहिंसा-समवाय का श्रीगणेश परिस्थिति विशेष में अनुशास्ता आचार्य श्री महाप्रज्ञ के मन में एक विचार उभरा कि अहिंसा की शक्तियों का एक समवाय बनाया जाये। जो व्यक्ति और संगठन, अहिंसा-विश्वशांति तथा पर्यावरण संरक्षण के लिए अपना जो कार्यक्रम चला रहे है वह यथावत् चलता रहे, पर अहिंसा समवाय के अंतर्गत सभी मिल बैठकर विचार करें तथा जो सामूहिक निर्णय हो उस पर सार्थक रूप से साझा प्रयत्न किया जाये ताकि खंड-खंड में होने वाले कार्य को समग्रता मिल सके। वैचारिक धरातल पर अहिंसा की समस्त शक्तियां एक मंच पर इकट्ठी होकर विश्व शांति के लिए चिंतन करें, मंथन करें।
304 / अँधेरे में उजाला