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यह तभी संभव है, जबकि ईश्वर में उसका जीवित विश्वास है। अहिंसक व्यक्ति तो ईश्वर कृपा और शक्ति के बगैर कछ कर ही नहीं सकता। इसके बिना उसमें क्रोध, भय और बदले की भावना न रखते हुए मरने का साहस नहीं होगा। ऐसा साहस तो इस श्रद्धा से ही आता है कि सबके हृदयों में ईश्वर का निवास है, और ईश्वर की उपस्थिति में किसी भी भय की जरूरत नहीं। ईश्वर की सर्व व्यापकता के ज्ञान का यह भी अर्थ है कि जिन्हें विरोधी या गुण्डे कहा जा सकता हो उनके प्राणों का भी हम ख्याल रखें। यह इरादतन दस्तन्दाजी उस समय मनुष्य के क्रोध को शांत करने का एक तरीका है, जबकि उसके अंदर का पशु भाव उस पर हावी हो।
2. शांति के इस दूत में दुनिया के सभी खास-खास धर्मों के प्रति समान श्रद्धा होनी जरूरी है। इस प्रकार वह हिन्दू हो तो हिन्दुस्तान में प्रचलित अन्य धर्मों का आदर करेगा। इसलिए देश में माने जाने वाले विभिन्न धर्मों के सामान्य सिद्धांतों का उसे ज्ञान होना चाहिए।
____ 3. यह काम अकेले या जत्थों में हो सकता है इसलिए किसी को संगी-साथियों के लिए इन्तजार करने की जरूरत नहीं है। फिर भी आदमी स्वभावतः अपनी बस्ती में से कुछ साथियों को ढूँढकर स्थानीय सेना का निर्माण करेगा।
4. शांति का यह दूत व्यक्तिगत सेवा द्वारा अपनी बस्ती या किसी चुने हुए क्षेत्र में लोगों के साथ ऐसे संबंध स्थापित करेगा जिससे जब उसे भद्दी स्थितियों में काम करना पड़े तो उपद्रवियों के लिए वह बिल्कुल ऐसा अजनबी न हो जिस पर वे शक करें या उन्हें नागवार मालूम पड़े।
5. यह कहने की तो जरूरत ही नहीं कि शांति के लिए काम करने वाले का चरित्र ऐसा होना चाहिए जिस पर कोई अँगुली न उठा सके और वह अपनी निष्पक्षता के लिए मशहूर हो। ____6. आमतौर पर दंगों से पहले उसे आने की चेतावनी मिल जाया करती है। अगर ऐसे आसार दिखाई दें तो शांति सेना आग भड़क उठने तक का इन्तजार न कर तभी से परिस्थितियों को सम्हालने का काम शुरू कर देगी जब से कि उसकी संभावना दिखाई दे।
7. अगर यह आंदोलन बढ़े तो कुछ पूरे काम करने वाले कार्यकर्ताओं का इनके लिए रहना अच्छा होगा, लेकिन यह बिल्कुल जरूरी नहीं ऐसा हो ही। ख्याल यह है जितने भी अच्छे स्त्री-पुरुष मिल सके उतने रखे जाय। लेकिन वे तभी मिल सकते हैं जब कि स्वयं सेवक ऐसे लोगों में मिले जो जीवन के विविध कार्यों में लगे हुए हों। पर उनके पास इतना अवकाश हो कि अपने इलाकों में रहने वाले लोगों के साथ मित्रता के संबंध पैदा कर सकें तथा सब योग्यताओं को रखते हों जो कि शांति सेना के सदस्य में होनी चाहिए।
8. इस सेना के सदस्यों की एक खास पोशाक होनी चाहिये जिससे कालांतर में उन्हें बिना किसी कठिनाइयों के पहचाना जा सके। ये सिर्फ आम सूचनाएं हैं।
इनके आधार पर हरेक केन्द्र अपना विधान बना सकता है। निर्दिष्ट शर्तों के आधार पर यह जाना जा सकता है कि गांधी की शांति सेना की अवधारणा कितनी उन्नत और कार्यकारी थी। विनोबा ने शान्ति-सेना का महत्त्व बताते हुए कहा : 'शांति-सेना के कार्य को मैं केवल राष्ट्रीय नहीं, बल्कि असल में अन्तर्राष्ट्रीय मानता हूँ। विज्ञान के इस युग में यदि हम अन्तर्राष्ट्रीय सन्दर्भ में नहीं सोचेंगे तो हमारा निर्णय सही दिशा में हो ही नहीं सकता।'60 इससे बहुत स्पष्ट है कि शांति-सेना का क्षेत्र कितना व्यापक था और आज वह साकार भी हो चुका है।
शांति-सेना की संक्षिप्त मीमांसा से यह स्पष्ट हो जाता है कि गांधी हिंसात्मक प्रवृत्तियों पर
302 / अँधेरे में उजाला