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अहिंसा का संगठनात्मक स्वरूप
अहिंसा की शक्ति असीम है। उसका कार्यक्षेत्र विस्तृत है । जब अहिंसा का संगठित प्रयोग किया जाता है उसे संस्थात्मक अहिंसा की संज्ञा दी जाती है। अहिंसा के प्रयोग को शक्तिशाली बनाने के लिए महात्मा गांधी एवं आचार्य महाप्रज्ञ गहन चिंतन-मंथन पूर्वक अहिंसात्मक संगठन को अस्तित्ववान् बनाया। अहिंसक संगठन का एक मात्र लक्ष्य था हिंसा के दावानल को अहिंसा के अमृत से शांत करना। गांधी द्वारा 'शांति दल' का गठन किया गया जो दंगा फसाद अथवा अशांत क्षेत्र में शांति स्थापित करने में अपनी सक्रिय भूमिका अदा कर सके। जिसका विकसित रूप 'शांति सेना' के रूप में विनोबा ने प्रतिष्ठित किया । महाप्रज्ञ ने अहिंसात्मक संगठन के रूप में अहिंसा-समवाय एवं अहिंसा वाहिनी का प्रकल्प दिया। मनीषियों के अहिंसक संगठन का उद्देश्य मुख्य रूप में तनाव ग्रस्त क्षेत्रों में शांति स्थापित करना एवं शांति के समय में रचनात्मक कार्यों को संपादित कर जन ढ़ा है। प्रस्तुत संदर्भ में अहिंसात्मक संगठन की संक्षिप्त मीमांसा - स्वरूप, कार्य और सफलता दृष्टि से इष्ट है।
शांति सेना
शांति सेना महात्मा गांधी की मूल अवधारणा है। इसकी स्फुरणा उनके मन में तब हुई जब देश में जगह-जगह अशांति फैलाई जा रही थी । सामाजिक समरसता भंग की जा रही थी - हिन्दू-मुस्लिम दंगे हो रहे थे। उन्होंने सोचा एक ऐसे समर्पित लोगों की जमात होनी चाहिए जो समाज में फैल रही अशांति को रोके एवं शांति स्थापित करे । इस दृष्टि से उन्हें सेना में समर्पण तत्त्व दिखाई पड़ा। अतः वह जमात जो शान्ति स्थापनार्थ कार्य करेगी - नाम दिया शान्ति सेना । शान्ति सेना अर्थात् वह सेना जो शान्ति के लिए, शान्ति प्रिय लोगों द्वारा, शान्ति चाहने वाले लोगों की रचनात्मक एवं स्वस्थ जमात। यह ऐसी जमात है जो हिंसा से भिन्न दण्डशक्ति के विपरीत अहिंसक तरीके से समाज में शान्ति स्थापनार्थ कार्य करेगी। इसके विस्तृत विमर्श से पूर्व अहिंसा सेवा दल का जिक्र उचित होगा । चूंकि शान्ति सेना की पृष्ठभूमि में सेवा दल प्रयोग की सफल भूमिका गांधी के दिमाग में अंकित थी । शांति दल के प्रारूप को प्रकट करते हुए गांधी ने कहा- 'शांति दल के हर एक सदस्य का ईश्वर में अटल विश्वास होना चाहिए। उसमें यह श्रद्धा होनी चाहिए कि ईश्वर ही सबका सच्चा साथी है और वह सबका सिरजनहार है, कर्ता है। इसके बिना जो शान्ति सेनाएँ बनेंगी, मेरे ख्याल बेजान होगी । ईश्वर को आप अल्लाह के नाम से पहचानें, अहुरमज्द कहें, जीहोवा कहें, जीता
. 300 / अँधेरे में उजाला