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और अनैतिकता की, अपराध और हिंसा की । एक ही सवाल हर ओर से आता है कि इसका समाधान क्या है? समाधान सिर्फ अणुव्रत है ।
युगानुरूप इस आंदोलन के कार्यों को विस्तार दिया गया है। अणुव्रत शास्ता महाप्रज्ञ के शब्दों - व्रत का कार्य व्यापक हो गया। अन्य सारे कार्यक्रम अणुव्रत के पूरक बन गए हैं। सारे कार्यक्रम अणुव्रत के साथ ही चल रहे हैं । सब उसी के पल्लव हैं, उसी की शाखाएं, प्रशाखाएं हैं। प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान, अहिंसा समवाय, अहिंसा प्रशिक्षण सब उसी के परिणाम है। सूरत स्पिरिचुअल डिक्लेरेशन और उसके आधार पर बना संगठन फ्यूरेक, जिसके साथ राष्ट्रपतिजी और देश के बड़े-बड़े धर्मगुरु जुड़े हुए हैं, उसका एक व्यापक रूप बना है। 55
अणुव्रत आंदोलन का दृष्टिकोण केवल भारत तक ही सीमित नहीं है । यह विश्व शांति का एक नया विकल्प है। महाप्रज्ञ ने बताया 'अणुव्रत और विश्व शांति-यह अंतर्राष्ट्रीय जगत के लिए एक नया विकल्प हो सकता है। अणुबम और विश्व शांति की चर्चा तो होती रहती है, किन्तु अणुव्रत और विश्व शांति की चर्चा एक नया प्रकल्प विश्व के सामने है। निश्चित रूप से - अणुव्रत ने संयम का जो सूत्र दिया है, उस सूत्र पर ध्यान दिए बिना विश्व शांति नहीं होगी ।" विश्व शांति के लिए अणुयुग की विभीषिका और स्टारवार की तेज अफवाहों के बीच अणुव्रत निःशस्त्रीकरण और शांति
का पथ प्रशस्त करता 1
फिर से जानें, अणुव्रत आंदोलन की विकास यात्रा के अनेक चरण हैं । सम-सामयिक समस्याओं के संदर्भ में नये-नये उन्मेष इसकी प्राणवत्ता के सबूत है । यह पिछले 61-62 वर्षों का आकलन कि आंदोलन ने हर स्थिति में नैतिक चारित्रिक उत्थान की मिसाल कायम की है। स्वतंत्र भारत के इतिहास को स्वर्णाभ बनाने की आकांक्षा से इसने भाईचारे और साम्प्रदायिक सौहार्द का पैगाम हर मुल्क के लोगों को दिया है । अणुव्रत ने यह घोष मुखरित किया- ' इंसान पहले इंसान; फिर हिन्दू या मुसलमान' इंसानियत की प्रतिष्ठा इसका विज़न है । प्रस्तुत आंदोलन के 61 राष्ट्रीय अणुव्रत अधिवेशन मनाये जा चुके हैं।
यह समाधान का विशुद्ध मार्ग है क्योंकि इसमें संप्रदाय गौण, धर्म मुख्य है, उपासना गौण चरित्र प्रधान है। कर्मकाण्ड गौण- प्रायोगिक जीवन प्रधान है। साम्प्रदायिक मतवाद गौण सद्भावना मुख्य है। परलौक की चिंता गौण वर्तमान जीवन की पवित्रता मुख्य है । एक वाक्य में यह अहिंसा की प्रतिष्ठा का नैतिक- चारित्रिक आंदोलन है जो सदियों तक मानवता को आलोकित करता रहेगा । अहिंसक आंदोलन एक ऐसी प्रायोगिक प्रविधि है जिसका लाभ उभय पक्षात्मक है । प्रयोक्ता को जहाँ लक्ष्य मिलता है वहाँ प्रायोग्य की चेतना विशुद्धत्तर बनती है । अभियुक्त न्याय पथ पर चलने के लिए बाध्य होता है । विश्वभर में चलने वाले शांति आंदोलन अपनी वास्तविक गुणवत्ता से हटते जा रहे । पर, गांधी और महाप्रज्ञ के अहिंसक आंदोलन की यह खूबी है कि उनका अहिंसा-सत्य आदर्श आलोक कभी प्रसुप्त या लुप्त नहीं हुआ । यही राज है अहिंसक आंदोलन की सफलता का । जहाँ भी इनका सच्चाई और निष्ठा के साथ प्रयोग किया गया सफलता ने चरण चूमे। इसका प्रमाण है- भारत की आजादी के अहिंसक हथियार । अविवेक पूर्ण अहिंसक आंदोलन को स्वयं गांधी भी हिंसा कहते थे। अहिंसक आंदोलन-सत्याग्रह, असहयोग, सविनय अवज्ञा, स्वदेशी एवं अणुव्रत आंदोलन सभी का लक्ष्य स्वस्थ समाज की संरचना अहिंसा की बुनियाद पर प्रतिष्ठित करना है ।
अहिंसा का आंदोलनात्मक स्वरूप / 299