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विवाह कक्ष का संचालन महिलाएं करें और दहेज-प्रथा के उन्मूलन में महिलाएं आगे आएं तो कार्य को गति-वेग मिल सकता है। व्यापक स्तर पर इन विचारों को प्रतिष्ठित करने की अपेक्षा है।
समाज में व्याप्त एक और बुराई जो नशे के रूप में अपनी जड़ें जमा रही है। युवावर्ग इसकी गिरफ्त में आ रहा है। परस्पर के संबंधों में आ रही कटुता, तलाक और आपराधिक कृत्य के पीछे एक बड़ा कारण शराब भी है। परिवारों को तबाह और बर्बाद करने में इसकी प्रमुख भूमिका होती है। अणुव्रत की चर्चा के उपरांत आचार्य महाप्रज्ञ से एक बहन ने अपने शराबी पति की दास्तान सुनाते हुए बताया-'जब तक मेरे पास गहने थे, उन्हें बेचकर पति की आवश्यकता पूरी करती रही। गहने समाप्त हो गए तो पीहर से उधार लेकर काम चलाती रही। अब मेरे लिए कहीं से कोई सहारा नहीं है। पति से इसी तरह मार खाती रही तो जल्दी ही अपंग हो जाऊंगी। मेरा जीवन नरक बन गया है।' शराब के नशे में सब कुछ संभव है क्योंकि शराब से विवेक चेतना पूरी तरह नष्ट हो जाती है। इस टिप्पणी के साथ महाप्रज्ञ ने यह भी बताया कि गरीबी, अभाव और दुःख-ये आदमी को शराब जैसी बुराई की ओर धकेल देते है। प्रश्न है इस बुराई से कैसे बचाव किया जाए? अणुव्रत आंदोलन ने इस दिशा में व्यापक प्रयत्न किये हैं। एकांकी और नुक्कड़ नाटकीय लहजे से हजारोंहजारों लोगों के दिलों में व्यसन मुक्त जीवन जीने की न केवल चाह जगाई अपितु जीवन भर के लिए व्यसन मुक्त रहने को संकल्पित बनाया है। प्रेरणा पाकर लाखों लोगों ने अपने को व्यसन मुक्त बनाया है। अपेक्षा है इस अभियान को और अधिक शक्तिशाली बनाया जाये। यह तभी संभव है जब आम जनता इससे जुड़ें।
संगठनात्मक पहलू से देखा जाये तो सैंकड़ों क्षेत्रों में अणुव्रत समितियों का गठन हुआ है। ये समितियाँ परस्पर मतभेद को सुलह देकर समाप्त करती है साथ ही रचनात्मक, विकासात्मक कार्यक्रम भी स्थानीय लोगों के हितार्थ संपादित करती है। ___प्रचारात्मक रूप से यह उन लोगों को दिशा बोध देने का काम कर रहा है जिनके सामने कोई लक्ष्य और सही दिशा नहीं है। इसकी महत्त्वपूर्ण कड़ियाँ हैं-अणुव्रत पत्रिका, अणुव्रत विचार परिषद्, अणुव्रत शिक्षक परिषद्, अणुव्रत वाहिनी, अणुव्रत भारती आदि । नैतिक मूल्यों की स्थापना हेतु समयसमय पर अणुव्रत यात्राएं संपादित हुई हैं। अणुव्रत अनुशास्ता श्री तुलसी ने 1957 में जयपुर से कानपुर (उत्तर प्रदेश) एवं फरवरी-मार्च 1995 में दिल्ली से लाडनूं तक की अणुव्रत यात्रा की। यात्रा के दौरान हजारों-हजारों लोगों को अणुव्रत का संदेश मिला वे व्यसन मुक्त बनें। अणुव्रती बनने की अर्हता अणुव्रती की गुणवत्ता ही आंदोलन की शक्ति है अतः उसका स्वरूप विमर्श प्रासंगिक होगा। मानवीय एकता और सह-अस्तित्व उसका हृदय है। जिस व्यक्ति का मानवीय एकता में विश्वास नहीं है, सह अस्तित्व में विश्वास नहीं है, मानवीय समानता में विश्वास नहीं है, वह अणुव्रती नहीं हो सकता। प्रश्न उपस्थित हुआ आत्मा, परमात्मा, पुनर्जन्म और धर्म को नहीं मानने वाला अणुव्रती हो सकता है? अनुशास्ता का उत्तर था 'क्यों नहीं बन सकता?' यदि मानवीय एकता, समानता और सह-अस्तित्व में जिसकी आस्था है वह अणुव्रती हो सकता है। वह धर्म को माने या न माने, उपासना या पूजापद्धति करे या न करे। ये उसके व्यक्तिगत आस्था के प्रश्न हैं। अणुव्रत की आधार भित्ति है-मानवता में आस्था। इसके प्रति आस्थावान् कोई भी व्यक्ति अणुव्रती बन सकता है। अणुव्रती बनने के
अहिंसा का आंदोलनात्मक स्वरूप / 297