Book Title: Andhere Me Ujala
Author(s): Saralyashashreeji
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

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Page 310
________________ राजसमंद, लाडनूं एवं त्रिवेन्द्रम् में अहिंसा समवाय के पांच केन्द्र भी प्रतिष्ठित किये गए। संबंधित जिज्ञासाओं का समाधान अधिकृत संस्थान से प्राप्त किया जा सकता है। अहिंसा समवाय के सैद्धांतिक-प्रायोगिक पक्ष को मौलिकता प्रदान करते हुए जैन विश्वभारती संस्थान तथा गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति के संयुक्त तत्त्वावधान में अहिंसा का एक पाठ्यक्रम निर्धारित हुआ है। दिल्ली तथा लाडनूं में इस पाठ्यक्रम पर त्रैमासिक, मासिक, पाक्षिक तथा अन्य प्रशिक्षण शिविर भी शुरू हो चुके हैं। 2 अक्टूम्बर, 2001 से पत्राचार के माध्यम से अहिंसा प्रशिक्षण पाठ्यक्रम का शुभारम्भ इसके प्रचार-प्रसार की नई दिशाओं को उद्घाटित करने वाला साबित हुआ है। जय जगत फाउण्डेशन, आदिमजाति सेवक संघ, अणुव्रत महासमिति, अणव्रत शिक्षक संसद आदि संस्थाओं के माध्यम से पूरे देश में न केवल अहिंसा प्रशिक्षण शिविर आयोजित किये जा रहे हैं, अपितु आंतकवाद से प्रभावित क्षेत्रों में भी अहिंसा के संदेश को पहुंचाने का कार्य हो रहा है। देश के विभिन्न उपद्रव एवं आतंकग्रस्त क्षेत्रों-आसाम, अरुणाचल, नागालैण्ड, उत्तराखंड, पंजाब, मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तरप्रदेश, गुजरात, आंध्रप्रदेश, राजस्थान आदि में अहिंसा समवाय के प्रभावी कार्यक्रम साम्प्रदायिक तनाव एवं अशांत वातावरण को शांति में तब्दील करने में महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुए हैं। अहिंसा में निष्ठा रखने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं का यह सर्वमान्य मंच है। सर्वोदय जैसी कई संस्थाएं आज अहिंसा समवाय के साथ जुड़कर काम कर रही हैं। प्रबुद्ध चिंतन में प्रस्तुत मंच की महत्त्वपूर्ण गतिविधियों ने प्रबुद्ध वर्ग को प्रभावित किया है। इसका सबूत है अनेक चिंतनशील व्यक्तियों के अहिंसा समवाय के प्रति निकले भावप्रधान लब्ज। अहिंसा समवाय सम्मेलन के विशिष्ट अतिथि उ.प्र. के राज्यपाल महामहिम विष्णुकांत शास्त्री ने कहा था-'ऋषियों को अपने यज्ञ की रक्षा के लिए धनुर्धर भगवान राम की जरूरत पड़ी थी। दुनिया में भले कितने परमाणु बम बने लेकिन शांति के लिए अहिंसा ही सबसे बड़ा शस्त्र है। अपनी अहिंसक परंपरा के साथ ही हमें अपनी स्वाधीनता की रक्षा करने के लिए संकल्प लेकर अहिंसा की प्रवृति को बढ़ावा देना चाहिए।' समारोह में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ए.एम अहमदी ने कहा 'वैश्वीकरण के इस दौर में भले सुख-सुविधाएं बढ़ी हैं, लेकिन अहिंसा जैसे मूलभूत मानवीय गुणों का क्षय होना चिंताजनक है। जिस कारगर शस्त्र से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हमें आजादी दिलायी, वह शस्त्र अभी भी प्रासंगिक है।' अहिंसा समवाय की प्रासंगिकता को उजागर करने वाले महानुभावों के विचार महत्वपूर्ण है। अहिंसा-समवाय मंच की ओर से यह स्वर भी बुलंद किया गया-विश्व शांति के लिए अहिंसा के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं है। सारी दुनिया तुम्हारे लिए नहीं है बल्कि तुम सारी दुनिया के लिए हो। इसलिए सभी अहिंसक संगठनों को एक मंच पर आकर अपने-अपने स्तर से जन समुदाय को प्रेरित करना आवश्यक है। हमें अपनी संस्कृति और सभ्यता को अपनाने में गौरव करना चाहिए पर दूसरे के मत का अनादर नहीं करना चाहिए।" विमर्शतः हिंसा के जहर को अहिंसामृत में बदलने की अभिप्सा से ‘अहिंसा समवाय' संगठन विश्व मानवता के लिए 21 वीं सदी का अनमोल उपहार है। यह एक ऐसा सार्वजनिक मंच है जिसका राही अहिंसा-भाईचारे की आस्थावाला कोई भी व्यक्ति बन सकता है। इसका मुख्य घोष है- 'अहिंसा में विश्वास रखने वालों साथ मिलकर विचार करो।' सहविचार बहुत बड़ी शक्ति है समस्या के समाधान की। 308 / अँधेरे में उजाला

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