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नहीं है।' सभी बातों पर विश्वास हो जाता पर 'धाम कहीं नहीं' यह गले नहीं उतरता। पर, यह भी अकिंचन संन्यस्त जीवन की सच्चाई थी। जिसे देर-सवेर समझ ही जाते ।
परंपरा से अनभिज्ञ लोग अणुव्रत प्रणेता को भेंट देने के लिए फल, फूलमाला, गंगाजल, श्रीफल लाते। यात्रा नायक का उत्तर होता- 'मैं भेंट नहीं लेता।' वे निराश होते । आचार्य श्री कहते-'मैं भेंट लेता हूँ।' तब वे प्रसन्न हो जाते । अनुशास्ता विनोद में कहते -'मैं भेंट लेता हूँ, पर इनकी नहीं, किसी बड़ी चीज की लेता हूँ।' वे असमंजस में पड़ जाते । अगली बात कहते- 'मुझे उस बुराई की भेंट चाहिए, जो आपको सबसे अधिक प्रिय हो ।" "मुझे न नोट चाहिए, न वोट चाहिए, न प्लॉट चाहिए, मुझे तो आपके जीवन की खोट चाहिए।' यह आह्वान सुन लोगों का सोया शौर्य सिहर उठता और मांग खाली नहीं जाती। इस क्रम में भेंट स्वरूप अनेकों लोगों, परिवारों ने मादक द्रव्यों का त्याग कर सच्ची भेंट संतों के चरणों में दी। राजस्थान से उत्तर प्रदेश का यात्रा पथ 650 मील का था। सैकड़ों देहाती, हजारों ग्रामीण लोगों से संपर्क हुआ। उनके बीच अणुव्रत का त्रिसूत्री कार्यक्रम धूम्रपान वर्जन, मद्यपान निषेध, मिलावट-निरोध चला । "
चरैवेति-चरैवेति-चलते चलो, चलते चलो-को चरितार्थ करते हुए अणुव्रत शास्ता औद्योगिक व्यावसायिक नगरी कोलकाता पहुँचे । जन चेतना को झनझनाते हुए उन्होंने कहा- 'मैं कलकता देखने नहीं आया हूँ, भूमि या अर्थ की याचना करने नहीं आया हूँ । आप लोगों से बुराइयों की भिक्षा मांगने आया हूँ।' जनता ने इस भावना को बड़े आश्चर्य के साथ सुना। उस अवसर पर चरित्र - विकास हेतु त्रिसूत्री योजना प्रस्तुत की
मिलावट निषेध
रिश्वत निषेध
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मद्य निषेध
महानगर प्रवास के दौरान 15 मार्च 1960 को महाजाति सदन में खाद्यमंत्री प्रफुल्लचन्द्र सेन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में श्री जयप्रकाश नारायण उपस्थित थे । उन्होंने बंगाल की धरा से देश
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व्यापी नैतिक क्रांति के नेतृत्व का आह्वान अणुव्रत मंच की ओर से किया ।
अणुव्रत की विचारक्रांति के स्वर जन-जन के कानों में बन जाना धर्म की कसौटी नहीं है । उसकी कसौटी है दुकान में
गूँज उठे - ' धर्म स्थान में जाकर पवित्र बैठकर पवित्र रहना । अणुव्रत शास्ता धर्म की प्रतिमा धर्म स्थान से हटाकर दुकान (कार्यालय) में प्रतिष्ठित करने का दिशा-दर्शन दिया, यह धर्मक्रांति की महत्त्वपूर्ण घटना है ।" यात्रा के क्रम में देश के एक छोर से दूसरे छोर - कश्मीर से कन्याकुमारी, केलवा से कोलकाता पर्यंत पाद - विहरण कर अणुव्रत शास्ता ने जन जागृति की अलख जगाई । और स्वतंत्र भारत के गौरव को गुणित किया ।
नारी जागरण
धर्मक्रांति, जन जागृति की दिशा में गतिशील आंदोलन की पहुँच आधी दुनिया का प्रतिनिधित्व करने वाले नारी समाज को कैसे बेखबर छोड़ता ? ममता के आगर की कुछ बेहूदी पहचान क्रांतद्रष्टा को कहाँ गँवार थी? उन्होंने पाया सदियों से परिस्थिति की प्रताड़ना से पीड़ित नारी को जब तक जागृत नहीं किया जायेगा नैतिक क्रांति अधूरी होगी । पर्दा, अशिक्षा और रूढ़धारणाओं ने नारी के सत्व को धूमिल बना दिया ।
अहिंसा का आंदोलनात्मक स्वरूप / 293