________________
विश्वभर का नारी समाज करवट ले रहा है यह आंकड़ो के आधार पर बहुत स्पष्ट हो गया। फिर भारतीय नारी का जागरण बाधित क्यों? अणुव्रत आंदोलन के तहत् इस दिशा में गति को उत्प्रेरित किया गया। जिसके सकारात्मक परिणाम निकले।
सैंकडों महिला सम्मेलन आयोजित हए। उनमें महिलाओं को एक श्रेष्ठ प्रशिक्षण मिला। 18 दिसंबर 1956 को देश की राजधानी दिल्ली में आंचलिक कांग्रेस महिला समाज की ओर से एक कार्यक्रम आयोजित हुआ। अनुशास्ता ने उसे संबोधित करते हुए कहा-'एक स्त्री के बदलने का अर्थ है पूरे परिवार का जीवन-परिवर्तन । स्त्री विकास के प्रति ध्यान देना विकास की गति को बल देना है।'
अणुव्रत प्रणेता ने बहिनों को तथ्य की अवगति देते हुए बताया-मैंने कुछ लोगों से पूछा- आप व्यापार में अनैतिक आचरण क्यों करते हैं? उत्तर मिला-'हम क्या करें, हमें स्त्रियाँ तंग करती हैं। उनकी फैशनेबल कपड़ों और गहनों की मांग पूरी करने के लिए अनैतिक होना पड़ता है।' इस उत्तर में भले ही एक बहाना हो पर स्त्रियों के लिए क्या यह आत्मा लोचन का विषय नहीं हैं? दहेज प्रथा क्या नारी जाती के लिए कलंक नहीं हैं? इस प्रथा में स्त्रियाँ सहभागी न बनें तो यह कलंक अपने आप धुल जाए। इत्यादि विभिन्न संकेतों से नारी की चेतना जाग उठी। अणुव्रत आंदोलन नारी जगत् के लिए वरदान साबित हुआ। पर्दा-परिष्कार अणुव्रत आंदोलन की सहकारी प्रवृतियों में समाजव्यापी कुरूढ़ियों के खात्में का आह्वान किया गया। नारी जाति से जुड़ा हुआ पर्दा कुरूढ़ि का रूप धारण कर चुका यह बहुत स्पष्ट था। इसका परिमार्जन जरूरी हो गया। बहिनों के मानस को झनझनाते हुए अनुशास्ता ने कहा-'मैं इस विवाद में नहीं पड़ता कि आप पर्दा रखें या न रखें। यह अपनी-अपनी इच्छा पर निर्भर है, पर इसके गुण-दोषों को बताना मेरा काम है।'
पर्दा रखने का उद्देश्य तो लज्जा की सुरक्षा है, पर लज्जा तो आँखों में रहती है। विभिन्न सामयिक तथ्यों के साथ मंथन चला-'एक ओर अणुव्रत-क्रांति और दूसरी ओर यह बहिनों की कैद बहुत बड़ी विषमता है। मेरी भावना है कि अब इस प्रथा को जल्दी समाप्त किया जाए।' यह चिंतन कोलकता में सक्रिय बना।
पर्दाप्रथा के उन्मूल में अणुव्रत की सक्रिय भूमिका रही है। अनुशास्ता के हृदय स्पर्शी विचार पर्दा निवारण में योगभूत बनें। उन्होंने लिखा- मुझे तो बहिनों का यह पर्दा सचमुच विकास का अवरोधक, कायरता का पोषक और संकीर्णता का परिचायक लगता है। यह अज्ञान का द्योतक है। समाज की बहिनें जब तक इस बंधन से मुक्त नहीं होगी तब तक हमारा काम अधूरा है। हाँ, यह जरूरी है कि एक गढ़े से निकलकर दूसरे में गिरना उचित नहीं है। पर्दे को छोड़कर विलास में फंसना ठीक नहीं है।' 46 इस प्रकार के क्रांतिकारी विचारों से अणुव्रत की राहें निष्कंटक बनती गई। पर्दाफास हो गया।
नया-मोड़ व्यापक जनसंपर्क से अणुव्रत आंदोलन के कार्यों में विस्तार व्यापा। यह स्पष्ट हो गया कि लोकजीवन रूढ़ियों से इतना जकड़ा हुआ है कि कोई सामान्य स्वर उसे नहीं बदल सकता। तात्कालीन
294 / अँधेरे में उजाला