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जनता से था 'अगर हिन्दुस्तान जगत् को अहिंसा का संदेश न दे सका तो तबाही आज या कल आनेवाली है और कल के बदले आज इसके आने की सम्भावना अधिक है। जगत् युद्ध शाप से बचना चाहता है, पर कैसे बचे इसका उसे पता नहीं चलता वह काम हिन्दुस्तान के हाथ में है।' इसके पीछे उनका मानसिक संकल्प था कि हिन्दुस्तान को अपनी सनातन संस्कृति के अनुरूप पश्चिम को अहिंसा धर्म सिखाना है। हिन्दुस्तान का जो अर्थ गांधी ने किया वह आम धारणा से सर्वथा भिन्न है। उनके अनुसार 'हिन्दुस्तान अरब सागर, हिन्द महासागर और बंगाल के समुद्र से घिरा तथा हिमालय का मुकुट पहिनने वाला हिन्दुस्तान ही नहीं है हिन्दुस्तान का अर्थ है सदियों से अहिंसासिद्धांत का उच्च घोष और उपदेश करने वाला देश। इसलिए अहिंसा के बिना उसके उद्धार की कल्पना मुझे हो ही नहीं सकती।161 वे हिन्दुस्तान की खोई हुई कीर्ति अहिंसा द्वारा ही पुनः पाने का स्वप्न संजो रहे थे। उन्होंने इतिहास के पृष्ठों को फिर से स्वर्णाकित करने का बीड़ा उठाया। चूँकि भारत दुनिया का धर्मगुरु कहलाने का गौरव बीते युग में पा चुका था। वह समय पुनः लौट आया जब गांधी भारत की पुनः कीर्ति अध्यात्म के सनातन मूल्य 'अहिंसा' पर ही फैलाना चाहते थे।
आजादी के अभियान में अहिंसा का प्रयोग चल रहा था इस बात की उन्हें आंशिक प्रसन्नता थी। पर, वे इस विषयक कमजोरी से भी वाकिफ थे अतः उस सच्चाई की ओर जनता का ध्यान आकृष्ट किया-'यह भी सच है कि अभी तक हिन्दुस्तान ने बलवानों की उस अहिंसा का परिचय नहीं दिया है, जिसके द्वारा प्रबल फौजी हमलों का मुकाबला किया जा सके।' अहिंसक शक्ति का आत्म-विश्लेषण जिस सरलता से किया गया वह उनके स्वच्छ हृदय का प्रतिबिम्ब है।
दृढ़ विश्वास था कि तलवार के बल पर शांति स्थापित नहीं की जा सकती। अपने विश्वास को जन चेतना में प्रतिष्ठित करने की आकांक्षा से उन्होंने कहा 'मैं अपने विश्वास पर सबसे अधिक जोर यही कहकर दे सकता हूँ कि यदि मेरे देश को हिंसा के द्वारा स्वतन्त्रता मिलना संभव हो तो मैं स्वयं उसे हिंसा के द्वारा प्राप्त न करूँगा। 'तलवार से जो मिलता है वह तलवार से हर लिया जाता है'-इस बुद्धिमान के कथन में मेरा विश्वास कभी नष्ट नहीं हो सकता। यह तथ्यतः लागू होता है कि 'तलवार के जोर से यदि कोई आदमी कुछ ले लेता है तो उससे दूसरी तलवार से वह छीन लिया जाता है।' गांधी इस सच्चाई से वाकिफ थे कि सच्ची अहिंसा का एक कण भी रेडियम धातु से भी कई गुणा अधिक शक्तिशाली होता है। अतः अहिंसक हथियारों से आजादी की लड़ाई लड़ने वाले राष्ट्र को कोई पराजित बना नहीं सकता। अपनी आस्था को अभिव्यक्ति दी 'अहिंसा से लड़ने वाले राष्ट्र अजेय हैं, क्योंकि उनकी शक्ति बन्दूकों और मशीनगनों पर निर्भर नहीं है।' यह बात अलग है कि अहिंसक शक्ति को देश की जनता ने कितना साधा और प्रखर बनाया है। यह आत्म विश्लेषण का विषय है।
भारत के विषय में उनके स्पष्ट उद्गार थे 'यदि भारत तलवार के सिद्धांत को अपनाता है, तो सम्भव है कि वह क्षणिक विजय पा ले। किन्तु उस दशा में वह मेरे लिए उतना गौरवास्पद न रहेगा। मैं भारत को इसलिए चाहता हूँ कि मेरा सब कुछ उसी के कारण है। मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि संसार के लिए उसका अपना एक मिशन है, संदेश है। उसे अन्धे की तरह यूरोप की नकल नहीं करनी है। भारत के द्वारा तलवार का स्वीकार मेरी कसौटी की घड़ी होगी। मैं आशा करता हूँ कि उस कसौटी पर में खरा उतरूँगा। मेरा धर्म भौगोलिक सीमाओं से परे है। यदि मुझ में उसके प्रति ज्वलंत श्रद्धा एवं विश्वास है, तो वह मेरे भारत प्रेम पर भी विजय पा लेगा।162 यह विराट
अहिंसा का राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप / 257