Book Title: Andhere Me Ujala
Author(s): Saralyashashreeji
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 282
________________ मधुर है। आकाशकुसुम है तो भी मेरी कल्पना की आँखों में उनकी शोभा है और उसमें से सौरभ फैलता ही रहता है। यह उनकी अटूट आस्था का प्रतिबिम्ब है। असहयोग सत्याग्रह का दर्शन इस तथ्य पर आधारित है कि कोई भी शासक तब तक ही प्रजाजन के प्रति अन्याय एवं शोषण की अनीति का पालन करने में समर्थ होता है जब तक कि उसे अज्ञान एवं भय के कारण प्रजाजन का सहयोग प्राप्त होता है। गांधी ने अहिंसक नीति से समाधान की प्रक्रिया के रूप में असहयोग को आजादी का आंदोलन बनाया। भारतीय संदर्भ में असहयोग आंदोलन का उद्देश्य रहा. भारत के लिए स्वराज्य की मांग करना। . ब्रिटिश सरकार से असहयोग करना। . अंग्रेजों की तुर्की नीति (बांटो और शासन करो) का विरोध करना। . हिन्दू-मुस्लिम एकता पर जोर देना। . सरकारी उत्सवों व समारोहों का बहिष्कार करना। . स्वदेशी का प्रचार तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना। असहयोग का प्रमख उद्देश्य था स्वतंत्रता प्राप्त करना। इसकी पष्ठभमि में गांधी ने अनभव किया कि जब तक भारतवर्ष असहयोग के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हो जायेगा, उसे स्वराज्य की प्राप्ति अर्थात् अपनी खोई हुई मर्यादा की प्राप्ति नहीं हो सकती। असहयोग आंदोलन का यह भी उद्देश्य था कि भारतवर्ष एक ऊँचे स्थान से संसार को अपना नैतिक संदेश सुना सके। इस आन्दोलन के द्वारा हम ब्रिटिश सिंह की आत्मा तक पहुँचते हैं, इसलिए कि वह उसको प्राप्त कर ले। यह आन्तरिक शक्ति को विकसित करने का आन्दोलन है। इसलिए अपने अंतिम रूप में यह निःसन्देह ब्रिटिशसिंह की आत्मा तक पहुँचेगा। गांधी की बेबाक प्रस्तुति थी-कि भारत जानता है कि मशीन गनों और सुरंगों के सामने उसकी शक्ति बेकार है। .....वह असहयोग को स्वीकार कर रहा है। लोगों ने इसे अपनाया तो अभीष्ट की सिद्धि अवश्य होगी अर्थात् ब्रिटिश अन्याय परायणता का नाश अवश्य हो जायेगा। लक्ष्य प्राप्ति की तीव्र अभिलाषा के साथ असहयोग ने जन-जन में बल साहस, पौरुष, आशा तथा विश्वास का संचार किया। असहयोग का आधारभूत तत्त्व अहिंसा है। इसके आलोक में पारस्परिक आदर और विश्वास की बुनियाद पर बिना किसी दबाव के सच्चे तथा प्रतिष्ठापूर्ण सहयोग के लिए रास्ता तैयार करना है। असहयोग आंदोलन का मूल सत्याग्रह है, अर्थात् प्रेम-पाप से घृणा करो पापी से नहीं। इस अपेक्षा से यह द्वेष या घृणा का मन्त्र नहीं, प्रेम का मन्त्र है। यह प्रेम सब दुखों के निवारण की कुंजी है। असहयोग के पीछे मल दर्शन है सभी प्रकार के राजनैतिक तथा सामाजिक संबंधों का आपसी सहयोग पर निर्भर होना। यदि विशेष प्रकार की सामाजिक, राजनैतिक या आर्थिक व्यवस्था अन्याय तथा शोषण को प्रश्रय देती है, तो इसके उन्मूलन का सबसे सरल तथा मौलिक तरीका है, असहयोग के आधार पर पुराने संबंधों को तोड़ना और नई व्यवस्था में सहयोग देना। इसे अधिक स्पष्ट करते हुए कहा-'हम असहयोग के साथ प्रामाणिक अहिंसा का जो असहयोग का सहज फल है-अवलम्बन करें या प्रतियोगी सहयोग को अर्थात् विरोध के साथ सहयोग को अपनावें।' गांधी का मानना था कि बुराई से असहयोग तत्त्वतः शोधन प्रक्रिया है। यह लक्षणों से कहीं अधिक कारणों का उपचार करता है। यह हमारे सामाजिक संबंधों को विशद्ध आधार पर अधिष्ठित 280 / अँधेरे में उजाला

Loading...

Page Navigation
1 ... 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432