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करने का आन्दोलन है, ताकि उसकी मीमांसा हमारे आत्म सम्मान एवं गौरव के अनुकूल की जा सके। साथ ही बताया-बुराई से असहयोग करना, भलाई से सहयोग करने के बराबर है।
आंदोलन की प्रचंडता का अनुमान लगाया जा सकता है-इसमें हिन्दू-मुसलमान बिना भेदभाव शरीक हुए। मद्य-निषेध, खद्दर प्रचार, अस्पृश्यता निवारण, अदालतों और सरकारी शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार इस आन्दोलन का ध्येय बन गया। इससे भारत में वह तूफान आया, वह सामूहिक जागृति हुई जो भारत के इतिहास में बिल्कुल नई और आश्चर्यजनक थी। अनेक वकीलों ने वकालत छोड़ दी, विद्यार्थियों ने स्कूल और कॉलेजों को छोड़ा, कौंसिलों तथा अदालतों का जबरदस्त बहिष्कार हुआ। लोगों ने अपनी पदवियां लौटा दीं। जगह-जगह पर विलायती कपड़ों की होली जलाई गई। प्रयाग के प्रसिद्ध वकील त्यागमूर्ति पं. मोतीलाल नेहरू तथा बंगाल के देशबन्धु चितरंजन दास भी अपनी वकालतें छोड कर महात्मा के कार्यक्रम
कार्यक्रम में पूरी तरह से लग गये। इस तरह पूरे देश में आंदोलन की लहर फैल गयी। आजादी की पृष्ठभूमि में असहयोग के दो मुख्य कारण थे___ 1. भारत की आत्म निर्भरता खत्म हो रही थी।
2. ब्रिटिश शासकों को भारत से निकालना था।
इन कारणों की असहयोग के संदर्भ में रचनात्मक और निषेधात्मक पक्षों में पहचान बनी। इन पक्षों के निम्न बिन्दु हैं
निषेधात्मक पक्षः • उपाधियों (समझौतों) को वापस करना। • शैक्षणिक संस्थाओं का बहिष्कार करना। • ब्रिटिश शासकों के उत्सवों का बहिष्कार करना। • न्यायालयों का बहिष्कार करना। • संसद का बहिष्कार करना। • विदेशी समान का बहिष्कार करना। • करों का भुगतान न करना। रचनात्मक पक्षः • सामुदायिक सामंजस्यता • अस्पृश्यता का निवारण • खादी का प्रयोग • स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग • कुटीर उद्योग • ग्राम्य विकास • राष्ट्रीय शिक्षा • ग्राम पंचायत
गांधी का मानना था कि यदि हम किसी गतिविधि का बहिष्कार करते हैं तो साथ ही एक ऐसे माहौल का सृजन करते हैं जो भविष्य में रचनात्मक परिणाम दिखाते हैं। असहयोग के साथ ही निर्माण की बात जुड़ी होती है।
असहयोग के मुख्य दो उपकरण थे-1. बहिष्कार 2. हड़ताल
असहयोग आंदोलन के महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं-चम्पारन में सत्याग्रह के साथ असहयोग, दाण्डी-मार्च, अकाल के समय टैक्स न देने के रूप में असहयोग, संपूर्ण क्रांति के रूप में जयप्रकाश का असहयोग आदि।
___ असहयोग आंदोलन की आलोचना-प्रत्यालोचना का गांधी ने बेबाक जबाब दिया। आंदोलन के दौरान विदेशी कपड़ों की होली गांधी हाथों से जलाये जा रहे थे। सरकारी स्कूल-कॉलेजों का बहिष्कार करने का आह्वान कर रहे थे। ये सब करते देख गरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर को महात्माजी के इस आन्दोलन में द्वेष की गंध आने लगी। उन्होंने बापू को इस बारे में लिखा। गांधी का उत्तर था-'विदेशी सरकार के प्रति द्वेष फैलाना तो मेरा धर्म है। लेकिन अक्सर यह नाराजगी और द्वेष व्यक्ति के प्रति हो जाता है। फिर सरकारी अधिकारियों की हत्या होती है। मैं वह द्वेष व्यक्ति से हटाकर वस्तु की
ओर मोड़ता हूँ। मैं कहता हूँ कि विदेशी सरकारी अधिकारियों को मत मारो, विदेशी कपड़ा जलाओ। ऐसा कहकर मनुष्यों पर टूटने वाली हिंसा को वस्तु की तरफ मोड़ता हूँ। यह उनकी अहिंसक
अहिंसा का आंदोलनात्मक स्वरूप / 281