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चनौति
विशेष रूप से गांधी ने इस बात पर बल दिया कि हमें सविनय कानून-भंग में केवल कानूनभंग का ही ख्याल नहीं करना चाहिए। यह एक ऐसा शस्त्र है, जिसका उपयोग हमें बहुत सम्भलकर करना चाहिए। जब आदमी किसी पौधे की फालतू डालों को काटने लगता है तो उसे इस बात का खास तौर पर ध्यान रखना चाहिए कि उसकी कैंची या कुल्हाड़ी उसकी जड़ को ही न काट दे, जिसकी रक्षा के लिए वह इस उटाले को काटने जा रहा था। सविनय कानून-भंग का प्रयोग केवल उसी दशा में अच्छा, आवश्यक और अक्सीर होगा, जब हम मनुष्य की उन्नति के दूसरे तमाम नियमों के पालन पर अटल और दृढ़ रहें। अतएव हमें 'कानून-भंग' की बनिस्वत उसके विश्लेषण-'सविनय'-पर पूरापूरा जोर देना चाहिए। विनय, नियम बद्धता, विवेक और अहिंसा के बिना ‘कानून-भंग' करने से सिवाय
र्वनाश के और कछ नहीं हो सकता। प्रेम के साथ किया गया कानन-भंग प्राणदायी और जीवनवर्द्धक है। सविनय कानून-भंग तो उन्नति का बढ़िया लक्षण है।
सविनय अवज्ञा में प्रतिरोध कार्य सविनय अर्थात् अहिंसक रूप से कानून की अवज्ञा करता है। जब अवज्ञा सविनय की जाती है तब वह सदिच्छापूर्ण, उदार, नियन्त्रित और अनुच्छृखल होती है।
सविनय अवज्ञा वास्तव में विनय और आज्ञा भंग का अर्थात् अहिंसा और प्रतिरोध का सामंजस्य है। अनैतिक कानूनों को शिष्ट रूप में भंग करना सविनय अवज्ञा है। इस साधन का प्रयोग जीवन दायक तथा सृजनात्मक तभी हो सकता है जब 'अवज्ञा' की अपेक्षा उसके विशेषण ‘सविनय' पर अधिक बल दिया जाये। अवज्ञा, सविनय तभी हो सकती है जब उसमें सच्चाई हो, वह दम्भपूर्ण,
। भावना से मुक्त हो, उसके पीछे कोई दुर्भावना या घृणा का भाव न हो, वह आदरपूर्ण और पूर्वानुभूत किसी अच्छे सिद्धांत पर आधारित हो।
मनुष्य की नैतिक उन्नति के लिए हानिकारक कानूनों का विरोध आवश्यक है किन्तु स्थिर सामाजिक व्यवस्था के लिए विनय भी आवश्यक है, क्योंकि इसके बिना समुचित विकास संभव नहीं हो सकता। अवज्ञा से भी अधिक निकृष्ट कार्य है-अनैतिक कानून का अनुगमन। मनुष्य के लिए वे ही कानून उचित हैं जो नैतिक एवं जनतन्त्रवादी नियमों से बने हों। गांधी ने इसी विश्वास को मूर्त रूप देने के लिए व आजादी के आंदोलन को तीव्र बनाने के लिए सविनय-अवज्ञा को आंदोलन का रूप दिया।
अन्यायी सरकार को बदलने या मिटाने का जनता को अधिकार है। इस निश्चय पर अहिंसात्मक शर्त के साथ गांधी ने सविनय-अवज्ञा का हथियार अपनाया। उनका स्पष्ट उद्घोषण था-'1920 का संघर्ष देश की तैयारियों के लिए था, 1930 का संघर्ष अंतिम मुठभेड़ के लिए है। कांग्रेस ने सविनय अवज्ञा और करबंदी आंदोलन को इस प्रतिज्ञा के साथ सक्रिय किया कि ब्रिटिश शासन में रहना मनुष्य और भगवान दोनों के प्रति अपराध है।' इसके साथ ही उन्होंने इस बात पर बल दिया कि अहिंसा का रास्ता ही एकमात्र रास्ता है, जो देश को आजादी दिला सकता है।
हर स्थिति में अहिंसा और विनय के मार्ग पर डटे रहने की हिदायत के साथ लोगों को यह शिक्षण दिया कि सिर पर डण्डे बरसें अथवा घायल होकर मर भी जाना पड़े तो वह आहुति है। उसके लिए मन में कोई दुःख नहीं होना चाहिए। इस आत्म निवेदन के साथ 12 मार्च 1930 को नमक कानून को तोड़ने के लिए दाण्डी कूच के पूर्व गांधी ने लार्ड इरविन को पत्र भेजा।.....संकल्प को आकार देते हुए समुद्र तट पर गांधी ने नमक-कानून तोड़ा। पूरे घटना चक्र में गांधी की आस्था और कर्म का एक साथ क्रियान्वयन देखा जाता है। इस कानून भंग के बदले उनको यरवदा जेल
284 / अँधेरे में उजाला