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का वास मिला पर वह उन्हें स्वराज्य प्राप्ति का शुभारम्भ एवं संकल्प की-'मुट्ठी टूट भले जाये, लेकिन खुलनी नहीं चाहिए' दृढ़ता का वरदान लगा।" ___नमक-कानून भंग का अभिन्न रूप धरासना का नमक-भण्डार लूटना था। उसमें 400 सत्याग्रही गिरफ्तार कर लिये गये। हजारों की संख्या में लोग जेलों में ठंस दिये गये।
नमक के लिए आन्दोलन एक नैतिक आन्दोलन था। उस माध्यम से शासन को खुली चुनौती दी गयी थी। नमक-कानून तोड़ने के आन्दोलन में नमक का उतना महत्त्व नहीं था जितना महत्त्व सविनय अवज्ञा का था। इस आंदोलन ने साबित कर दिया कि सत्य, अहिंसा और सविनय-अवज्ञा में एक छिपी हुई ताकत है, जो हिंसात्मक कार्यवाही को भी झुका सकती है।
सविनय-अवज्ञा के दो रूप मान्य हैं- • व्यक्तिगत सविनय-अवज्ञा • सामूहिक सविनय-अवज्ञा। प्रथम में जहां व्यक्ति स्वयं ही अपना नेता होता है वहाँ दूसरे में नेतृत्व की आवश्यकता होती है। प्रायोगिक दृष्टि से सविनय-अवज्ञा का प्रयोग आक्रमणात्मक और रक्षात्मक दोनों रूपों में किया जाता है।
सविनय-अवज्ञा आंदोलन के साथ गांधी ने अपने अनुभूत सत्य को जोड़कर इसे अधिक शक्तिशाली बनाया। उनका यह अनुभव था कि बगैर चरखे के, बगैर हिंदू-मुस्लिम एकता के और बगैर अस्पृश्यता निवारण के सविनय अवज्ञा का आन्दोलन चल ही नहीं सकता। इसके मूल में यह कल्पना निहित है कि हम अपने बनाये नियमों का स्वेच्छा से पालन करें। बगैर इसके किया हुआ सविनय भंग तो निर्दय मजाक होगा। यह चीज है, जो मुझे राजकोट की प्रयोगशाला में अनुभव हुई
और इस पर मेरा दुगुना विश्वास हो गया। अगर एक भी मनुष्य तमाम शर्तों को पूरा कर ले, तो वह भी स्वराज्य प्राप्त कर सकता है। गांधी का यह अनुभव प्रायोगिक धरातल पर सविनय-अवज्ञा आंदोलन को गति से प्रगति देने वाला सिद्ध हुआ।
गांधी के अनुसार सविनय-अवज्ञा की तीव्रतम प्रकृति को देखते हुए इसका प्रयोग पहले अन्य साधन अपनाने के पश्चात् ही करना चाहिए। समाधान हेतु वार्ता, प्रदर्शन, हड़ताल आदि समस्त प्रक्रियाओं को आजमाने के बाद ही अन्तिम अस्त्र के रूप में इसका प्रयोग किया जाये। इस संबंध में स्पष्ट अभिमत था जब कानून बनाने वाले की गलती सुधारने की चेष्टायें अर्जी आदि देने के बाद भी विफल हो जाती है, तब उस गलती के सामने दो ही विकल्प बचते हैं-या तो नैतिक शक्ति से उसे अपनी बात मानने पर विवश करें या उस कानून को तोड़ने का दण्ड झेलकर व्यक्तिगत रूप से कष्ट उठायें। इस रूप से सलक्ष्य किया गया सविनय-अवज्ञा आन्दोलन निश्चिय ही अभिष्ट की प्राप्ति में योगभूत बनता है। इसमें अहिंसा और न्याय की कसौटी पर चलने वाला सफलता का वरण करता है।
महाप्रज्ञ ने सविनय-अवज्ञा के प्रयोग को ऐतिहासिक संदर्भ में स्वीकारते हुए इसकी पुष्टि में कहा 'सब प्राणी समान हैं, जैसा मैं हूँ वैसे ही दूसरे जीव हैं'-इस चेतना का जागरण बहुत कठिन है। महावीर को इन संदर्भो में अहिंसा के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने अहिंसा के क्षेत्र में कई नई दृष्टियाँ दीं। कैसे मनुष्य की चेतना उदात्त बने और जो क्रूरता के बीज हैं, वे नष्ट हो जाएँ। यह अभियान महावीर के समय ही नहीं चला, उससे बहुत पहले प्रारंभ हो चुका था। इस संदर्भ में इतना ही पर्याप्त है कि महाप्रज्ञ ने सविनय अवज्ञा को अहिंसा की कसौटी पर मान्य किया है।
संक्षेप में सविनय-अवज्ञा आंदोलन अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलते हुए राजनैतिक प्रतिकूल परिस्थितियों से लोहा लेने का महत्त्वपूर्ण साधन है। गांधी ने इसका प्रयोग भारत की आजादी आंदोलन के तहत किया था। वर्तमान के संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता बरकरार है।
अहिंसा का आंदोलनात्मक स्वरूप | 285