________________
सोच का साक्षात् रूप था। इससे यह भी परिलक्षित होता है कि असहयोग आंदोलन विभिन्न प्रतिक्रियाओं के बावजूद गति से प्रगति की ओर बढ़ता गया।
असहयोग आन्दोलन के अर्थ, स्वरूप, उद्देश्य और प्रक्रिया के आधार पर यह कहा जा सकता है कि गांधी का यह आंदोलन अहिंसा पर टिका था। इसकी प्रयोग भूमि में अहिंसा का अलौकिक बल था। इसमें अहिंसा का मतलब है कि बुराई से असहयोग करने के लिए जो कुछ भी सजा मिले उसे स्वीकार कर लें।' कष्टों की परवाह किये बगैर अन्याय, बुराई के प्रतिकार को आत्म धर्म मानकर आने वाली विपत्तियों को सहर्ष झेलना आसान बात नहीं है। पर आंदोलनकारियों ने अहिंसा की रक्षा करते हुए देश की आजादी के लिए असहयोग को अपनाया। यह सत्याग्रह तकनीकी मूलक आन्दोलन था। जिसका विराट् स्वरूप प्रांत, व्यक्ति, समुदाय से ऊपर उठकर सर्वव्यापी बना।
असहयोग के संबंध में महाप्रज्ञ के संक्षिप्त विचार देखने में आते हैं। असहयोग के ऐतिहासिक प्रसंग का हवाला देते हुए महाप्रज्ञ ने लिखा-अरिष्टनेमि विवाह करने के लिए गए थे और विवाह को अस्वीकार कर दिया। यह असहयोग आन्दोलन का उदात्त रूप था। प्राचीन काल में ऐसी अनेक घटनाएँ घटी हैं जिनमें उद्दण्डता के साथ नहीं किन्तु सविनय असहयोग किया गया। वे उस घटना के साथ नहीं जुड़ते, जिससे सहमत नहीं होते। मैं यह नहीं करूँगा, यह निश्चय कर लेते। उसे असहयोग करने में कोई कठिनाई नहीं होती जिसके मन में कोई चाह और आकांक्षा नहीं होती। जो अपने आप में सन्तुष्ट है, वह असहयोग कर सकता है। अरिष्टनेमि ने असहयोग किया। दूसरे शब्दों में इसे सत्याग्रह कहा जा सकता है। सत्याग्रह और असहयोग-ये दो गांधीयुग के विशेष शब्द हैं, पर इनका प्रयोग अतीत में भी हो चुका है।
विवाह के निमित्त परकोटे में बंद पशुओं की चीत्कार सुनकर अरिष्टनेमि ने रथ को मोड़ने का आदेश दिया। रथ विवाह मण्डप की ओर न जाकर दूसरी दिशा में मुड़ गया। यह देखकर सब अवाक रह गए। अनेक लोगों ने अरिष्टनेमि से कहा-आप इस प्रकार न मुड़ें। ऐसा करना ठीक नहीं है। अरिष्टनेमि अपने निश्चय पर अटल रहे। श्रीकृष्ण, वासुदेव आदि के आग्रह को भी अरिष्टनेमि ने अस्वीकार कर दिया। राजीमती की चीख भी उनके निश्चय को नहीं बदल सकी। ___ अरिष्टनेमि ने पुनः मुड़कर नहीं देखा। उनके मन में यह भाव जगा-मेरे कारण कितने प्राणी पीड़ित और दुःखी हो रहे हैं। मैं किसी को सताना नहीं चाहता, दुःखी और पीड़ित नहीं करना चाहता, मैं यह सब नहीं देख सकता। मुझे अपने आपमें रहना है अकेले में रहना है। वे सचमुच अकेले बन गए। जो व्यक्ति अहिंसा में विश्वास करता है, उसे अकेला रहना या चलना स्वीकार होता है। महावीर हो, अरिष्टनेमि या गांधी, अहिंसा की आस्था वाले व्यक्ति को अकेले चलना होता है।
वस्तुतः नेम-राजुल का घटना प्रसंग अहिंसा के आलोक में असहयोग को प्रदर्शित करता है। अरिष्टनेमि चले गए. राजीमती से विवाह नहीं हआ। राजीमती अरिष्टनेमि की प्रतीक्षा करती रह गई। यह घटना घटित हो गई और इससे उपजा सिद्धांत शेष रह गया।
असहयोग आंदोलन अहिंसा की नींव पर टिका है। जब-कभी इसका पूरे मनोयोग के साथ प्रयोग किया गया निष्पत्ति निश्चित रूप से आई। फिर प्रसंग चाहे शासक की क्रूरवृत्ति के परिष्कार का हो या देश की आजादी का। इस आंदोलन ने अपना कार्य मन्थर गति अथवा तीव्रगति से अवश्य किया। वर्तमान के संदर्भ में इस आंदोलन की अत्यन्त उपयोगिता महसूस की जा रही है। चूंकि बहुराष्ट्रीय कंपनियों का जाल पूरे भारत में पसरता जा रहा है जो देश के आर्थिक ढाँचे को कभी भी पंगु बनाकर
282 / अँधेरे में उजाला