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को हानि पहुँचने की संभावना हो। यदि यह भावना हम अपने करोड़ों भाइयों में उत्पन्न कर सकें, तो हमारा यह देश क्या से क्या हो सकता है। ज्यों-ज्यों इस देश में मैं घूमता हूँ और उसका दर्शन करता हूँ, त्यों-त्यों चरखे की शक्ति में मेरी श्रद्धा बढ़ती और अधिकाधिक दृढ़ होती जाती है।' खादी के इस सूक्ष्म अर्थ को समझाने में उन्होंने अपनी आत्म-शक्ति को नियोजित किया और इसके हार्द को समझाया।
खादीवत्ति का अर्थ है जीवन के लिए जरूरी चीजों की उत्पत्ति और उनके बँटवारे का विकेन्द्रीकरण । इसलिए अब तक जो सिद्धान्त बना है वह यह है कि हर एक गाँव को अपनी जरूरत की सब चीजें खुद पैदा कर लेनी चाहिए और शहरों की जरूरतें पूरी करने के लिए कुछ अधिक उत्पत्ति करनी चाहिये।......खादी के उत्पादन में ये काम शामिल हैं-कपास बोना, कपास चुनना, उसे झाड-झटक कर साफ करना और ओटना, रूई पीजना, पूनी बनना, सूत कातना, सूत को मांड़ लगाना, सूत रंगना, उसका ताना भरना और बाना तैयार करना, सूत बुनना और कपड़ा धोना। अपनी अन्तर पीड़ा को शब्दों में बताया कि जन साधारण की स्वतंत्रता जैसी भी वह थी, चरखे के खात्मे के साथ ही खत्म हुई।
चरखा ग्राम वासियों के लिए खेती का पूरक धंधा था और खेती की इस से प्रतिष्ठा थी। विधवाओं का यह बन्धु और सहारा था। ग्रामवासियों को वह काहिली से भी बचाता था, क्योंकि इसमें कपास से रूई व बिनौलों को अलग-अलग करना, रूई की धुनाई, कताई, मंडाई, रंगाई, बुनाई आदि अगले-पिछले सभी उद्योग शामिल थे। गाँव के बढ़ई व लोहार भी इसके कारण काम में लगे रहते थे। चरखे के जाने से धानी के तेल निकालने जैसे अन्य ग्रामीण उद्योग भी नष्ट हो गयें।'58 गांधी की नजरों में चरखा व्यापारिक युद्ध की नहीं, व्यापारिक शान्ति की निशानी है। उसका संदेश संसार के राष्ट्रों के लिए दुर्भाव का नहीं, परन्तु सद्भाव का और स्वावलम्बन का है। उसे संसार की शांति के लिए खतरा बनने वाली या उसके साधनों का शोषण करने वाली किसी जनसेना के संरक्षण की जरूरत नहीं होगी; परन्तु उसे जरूरत होगी ऐसे लाखों लोगों के धार्मिक निश्चय की, जो अपने-अपने घरों में उसी तरह सूत कात लें जैसे आज वे अपने-अपने घरों में भोजन बना लेते हैं।
गांधी ने यह भी कहा- 'मैंने करने के काम न करके और न करने के काम करके ऐसी अनेक भूलें की हैं, जिनके लिए मैं भावी संतानों के शाप का भाजन बन सकता हूँ। मगर मुझे विश्वास है कि चरखे का पुनरुद्धार सुझाकर तो मैं उनके आशीर्वाद का ही अधिकारी बना हूँ। मैंने उस पर सारी बाजी लगा दी है, क्योंकि चरखे के हर तार में शान्ति, सद्भाव और प्रेम की भावना भरी है।
और चूँकि चरखे को छोड़ देने से हिन्दुस्तान गुलाम बना है, इसलिए चरखे के सब फलितार्थों के साथ उसके स्वेच्छापूर्ण पुनरुद्धार का अर्थ होगा हिन्दुस्तान की स्वतंत्रता।' कताई के पक्ष में निम्न दावें प्रस्तुत किये गयें
जिन लोगों को फुरसत है और जिन्हें थोड़े पैसों की जरूरत है, उन्हें इससे आसानी से रोजगार मिल जाता है; इसका हजारों को ज्ञान है;
यह आसानी से सीखी जाती है। . इसमें कुछ भी पूंजी लगाने की जरूरत नहीं होती; . चरखा आसानी से और सस्ते दामों में तैयार किया जा सकता है। इसमें से अधिकांश
अहिंसा का राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप / 255