Book Title: Andhere Me Ujala
Author(s): Saralyashashreeji
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

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Page 255
________________ संबंधी विचार कितने उन्नत हैं। वे लोकतंत्र की रक्षा के लिए कितने सजग थे। हिंसा की बढ़ती प्रवृत्तियों के नियंत्रण का स्पष्ट आह्वान है। नैतिक मूल्यों के विकास का अवकाश है। उनका यह मानना था कि सच्चे लोकतंत्र में अहिंसात्मक प्रतिरोध की शक्ति होनी ही चाहिये। ____ महाप्रज्ञ ने लिखा-हिन्दुस्तान लोकतंत्रीय समाज-व्यवस्था का संकल्प लिए चल रहा है। लोकतंत्र का आधार है जनमत का सम्मान और समाजवादी व्यवस्था का आधार है सामाजिक न्याय। इनकी संपूर्ति के लिए आर्थिक संतुलन और तकनीकी विकास जितना आवश्यक है, उतना ही आवश्यक है नैतिक या चारित्रिक विकास। मंतव्य में अहिंसा प्रतिष्ठा की अनुगूंज है। लोकतंत्र की अगली भूमिका पर शांति-तंत्र की कल्पना की। महाप्रज्ञ का कथन है-हम राजतंत्र से लोकतंत्र तक पहुंचे हैं। इस विजय-यात्रा का मूल्य कम नहीं है। इससे अगली यात्रा शांतितंत्र की होनी चाहिये। लोकतंत्र में जो शासक आते हैं उनमें अहिंसा के प्रति आस्था होना जरूरी नहीं है। यद्यपि लोकतंत्र और अहिंसा में निकट का संबंध है फिर भी लोकतंत्रीय शासन को भी तानाशाही के आस-पास पहुंचा दिया है। शांति-तंत्र की प्रणाली लोकतंत्र से भिन्न नहीं होगी। किन्तु उसका शासक अहिंसा में आस्था रखने वाला हो-यह अनिवार्य शर्त होनी होगी। अब राजनीतिक प्रणाली का प्रयाण लोकतंत्र से शांतितंत्र की दिशा में होना चाहिए।153 लोकतंत्र की विकास यात्रा शांतितंत्र में प्रतिष्ठित हो यह उनकी उदात्त अहिंसा भावना का प्रतीक है। वे लोकतंत्र की मूल आधार शिला चुनाव प्रणाली की स्वस्थ प्रक्रिया को महत्त्वपूर्ण मानते थे। चुनाव की प्रणाली लोकतंत्र के मौलिक स्वरूप का अभिन्न अंग है। इसमें आज हिंसा के बीज फूटने लगे हैं। प्रक्रिया का स्वरूप विद्रूप बनने जा रहा है। ऐसी स्थिति में लोकतंत्र की प्रणाली जिस आधार पर टिकी है उसके प्रति भी महाप्रज्ञ का चिंतन रहा। ‘लोकतंत्र की गाड़ी चुनाव की पटरी पर चलती है।......चुनाव की प्रक्रिया को बदलने का प्रयत्न करना अत्यन्त आवश्यक है। उसे बदलने के लिए अपेक्षित है प्रशिक्षण। 15 कथन के आलोक में स्वस्थ राष्ट्रीय चेतना के निर्माण की पृष्ठभूमि को आंका जा सकता है। विशेष रूप से मतदाता की चेतना को जागृत करते हुए बताया 'सही चयन-राष्ट्र का सही निर्माण है।' आपके अमूल्य वोट का अधिकारी कौन? 'जो ईमानदार हो, जो चरित्रवान हो, जो सेवाभावी हो, जो कार्य निपुण हो, जो नशामुक्त हो, जो स्वच्छ छवियुक्त हो, जो लोकहित को सर्वोपरि मानता हो, जो जाति-सम्प्रदाय से बंधा हुआ न हो।' इस संदर्भ में प्रत्यासी एवं मतदाता अणुव्रत के नियम विशेषरूप से मननीय है। लोकतंत्र प्रणाली को स्वस्थ बनाने वाली प्रक्रिया है चुनाव शुद्धि अभियान। अपेक्षा है इसके व्यापक पैमाने पर अनुशील की। अहिंसा का राष्ट्रीय संदर्भ अहिंसा की शक्ति में गांधी की अटूट आस्था थी। इसके सहारे ही उन्होंने भारत की आजादी को आवश्यक माना। वे कहते ‘अहिंसा से बड़ी शक्ति मनुष्य जाति को मालूम नहीं है। इसकी शक्ति या प्रभावशीलता में मेरा विश्वास अटल है और उसी भाँति मेरा यह विश्वास भी अचल है कि केवल अहिंसा के जरिये स्वतन्त्र होने की शक्ति हिन्दुस्तान में है। भगवान् न करें हिन्दुस्तान को अहिंसा का पूरा पाठ पढ़ने के पहले खूनी लड़ाई लड़नी पड़े। आज की व्यवस्था तो महज एक उजला कफन है, जिसके नीचे केवल हिंसा-ही-हिंसा छिपी हुई है।' यह उनकी असीम अहिंसा-आस्था का निदर्शन है। विशेष रूप से वे हिन्दुस्तान की जनता को अहिंसा का शिक्षण देकर ही, उस शक्ति के सहारे अहिंसा का राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप | 253

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