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मिलते हैं और समस्या का समाधान खोजते हैं। पर अहिंसा में आस्था रखने वाले न कभी मिलते, न कभी बातचीत करते और न कभी समस्या का सामूहिक समाधान खोजते। कांफ्रेस में एक नई दिशा उद्घाटित हुई। एक ऐसा विश्व व्यापी अहिंसा मंच-'अहिंसा सार्वभौम' की रूपरेखा उजागर हुई, वहाँ बैठकर हिंसा की विभिन्न समस्याओं पर सामूहिक चिंतन किया जा सके और हिंसक घटनाओं की समाप्ति के लिए निर्णय लिए जा सकें। विश्वशांति के लिए उन्होंने अहिंसा का त्रिसूत्री कार्यक्रम प्रस्तुत किया
• अहिंसा सार्वभौम मंच . अहिंसा का प्रशिक्षण . व्यापक रूप से समर्थ शांतिसेना का निर्माण।।83
'अणुव्रत और विश्वशांति सम्मेलन' में अशांति के मूल कारणों की ओर ध्यान केन्द्रित करते हुए महाप्रज्ञ ने कहा-विश्व की अशांति का सबसे पहला और प्रमुख कारण है-'हमारी सदोष एवं त्रुटिपूर्ण शिक्षा-प्रणाली।' इसके समाधान स्वरूप उन्होंने जीवन विज्ञान शिक्षा का उपक्रम बतलाया। विकास की अवधारणा, पर्यावरण प्रदूषण एवं वाणी के असंयम को भी वे अशांति के कारण मानते थे। इन कारणों का निराकरण अणुव्रत के उद्घोष 'संयमः खलु जीवनम्'-संयम ही जीवन है, में खोजा जा सकता है। उन्होंने प्रबुद्ध वर्ग का ध्यान इस ओर केन्द्रित किया कि बहुत सारी समस्याओं का एक प्रमुख कारण है-संवेदनशीलता का अभाव। असंवेदनशील व्यक्ति समस्याएँ पैदा करता है। असंवेदनशीलता के कारण राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समस्याएँ पैदा हो रही है।
विश्वशांति की आकांक्षा के बावजूद वह साकार नहीं हो पा रही है? इस संदर्भ में महाप्रज्ञ का मंथन ताजिंदगी चालू रहा। उन्होंने विश्वशान्ति के बाधक तत्त्वों की एक संक्षिप्त-संभावित तालिका प्रस्तुत की
• साम्राज्यवादी मनोवृत्ति . बाजार पर प्रभुत्व • जाति का अहंकार • साम्प्रदायिक कट्टरता . उपभोग सामग्री की विषमतापूर्ण व्यवस्था और वितरण
उनकी दृष्टि में मूल कारण-व्यक्ति का अपने संवेगों पर नियंत्रण न होना। संवेग संतुलन के व्यापक प्रचार और प्रयोग पर गहन विचार किये बिना वैज्ञानिक युग में उपजी हुई समस्याओं का समाधान नहीं किया जा सकता।85 अहिंसा के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का ध्यान समस्या के मूल स्रोत के परिष्कार की ओर केन्द्रित करते हुए बताया कि 'व्यक्ति की चेतना का परिष्कार किए बिना विश्व शांति का सपना पूर्ण नहीं हो सकता।' व्यक्ति-व्यक्ति की चेतना के परिवर्तन हेतु 'अहिंसा प्रशिक्षण' की मौलिक प्रविधि का सूत्रपात कर वैश्विक स्तर पर शांति के पथ को प्रशस्त करने में महाप्रज्ञ की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने विश्व शांति के आधारभूत तथ्यों की चर्चा की है जिसका मुख्य बिन्दु है-विश्व शांति के लिए धार्मिक सहिष्णुता और समन्वय अनिवार्य है। इसकी सुगम व्याख्या प्रस्तुत की गई
1. मेरा धर्म सत्य है, यह मानने का मुझे अधिकार है किन्तु दूसरे धर्मों में सत्य या सत्यांश नहीं है, यह मानना एकांगी दृष्टिकोण है। इस दृष्टिकोण को बदलकर ही हम विश्व शांति की दिशा में प्रस्थान कर सकते हैं।
262 / अँधेरे में उजाला