________________
अफ्रीका में काले पानी की जेल हुई। पत्थर फोड़ने का काम दिया गया। एक दिन पत्थर फोड़तेफोड़ते उनके हाथ से खून बहने लगा। साथी सत्याग्रहियों ने कहा : 'बापूजी, काम बन्द कीजिये! अँगुलियों से खून बह रहा है।' बापू ने कहा : 'जब तक हाथ काम करता रहेगा, तब तक करते रहना मेरा कर्तव्य है। और वह महान् सत्याग्रही पत्थर फोड़ता ही रहा। घटना प्रसंग से प्रामाणित है कि उन्होंने सत्याग्रह की कसौटी पर खुद को किस तरह कसा और परिपक्व बनाया। गांधी की अहंकार मक्त चेतना ने कभी स्वयं को पहला लौकिक सत्याग्रही घोषित नहीं किया। उनका दावा तो मात्र उस सिद्धांत के सार्वभौम पैमाने पर उपयोग का था।
सत्याग्रह आंदोलन की तकनीकी प्रक्रिया के रूप में असहयोग, सविनय अवज्ञा, उपवास, हिजरत, धरना, हड़ताल, सामाजिक-बहिष्कार आदि को अपनाया गया। इनमें प्रमुख की चर्चा स्वतंत्र रूप से की जायेगी।
सत्याग्रह आंदोलन का मौलिक स्वरूप सत्य-अहिंसा प्रधान होने से तत्वतः आध्यात्मिक कहा जा सकता है। यह शुद्धिकरण एवं तप की एक प्रक्रिया के रूप में प्रयुक्त हुआ। इसकी बेमिसाल शक्ति पर उन्हें पूरा भरोसा था। पर आचरण में इसकी अपूर्णता को देखकर कहा-'सत्याग्रह ऐसी शक्ति है जिसका पूर्ण विकास अभी नहीं हो पाया है। जो तपस्वी मनसा-वाचा-कर्मणा, सत्य और अहिंसा का पालन करता हुआ इसकी शक्तियों की शोध में श्रम करेगा उसे इसके अनेक नये प्रकार मिलेंगे और उसे इसका बल अटूट जान पड़ेगा।' गांधी का यह अभिमत सत्याग्रह के संदर्भ में यथार्थ का निदर्शन है।
सत्याग्रह आन्दोलन के संबंध में उनकी दृष्टि सूक्ष्म थी। जब वे विरोधियों के प्रति भी प्रेम की बात करते थे, तो उनके लिए यह पाखण्ड नहीं था। इसका असली उद्देश्य उस आक्रामकता को प्रतिद्वंदियों में भी निरस्त करना था। जब कभी आंदोलन के दौरान उन्होंने हिंसक वारदातें देखी, शिखरारोही सत्याग्रह आंदोलन को भी तत्काल स्थगित कर आत्मगौरव का अनुभव किया। इसे अपने जीवन का महत्त्वपूर्ण और बड़ा दिन करार देते हुए गांधी ने बताया- 'सारे राष्ट्र के विरोध के बावजूद बारडोली का आन्दोलन जिस दिन मैंने स्थगित किया, उस दिन को मैं बड़ा मानता हूँ। पीछे हटने का वह दिवस, वह सत्याग्रही की दृष्टि से विजय-दिवस था। वह अहिंसा की जीत थी।14 उत्तर प्रदेश के चौराचौरी स्थान पर हुए दंगों ने गांधी की अहिंसक चेतना को मर्माहत कर दिया और उन्होंने आन्दोलन स्थगन की घोषणा की। जिसे सुनकर पूरा देश क्षुब्ध था। इसे गांधी की भयंकर भूल बताया जा रहा था पर वे अपने निर्णय के प्रति पूर्ण विश्वस्त थे। इससे प्रमाणित होता है कि उनका सत्यअहिंसा प्रेम परिस्थितियों से अप्रभावित अविचल था।
सत्याग्रह आंदोलन ने देश की जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सत्याग्रह के संबंध में महाप्रज्ञ का संक्षिप्त मन्तव्य देखा जा सकता है। यद्यपि उसका संदर्भ गांधी के संदर्भ से सर्वथा भिन्न है। पर, इतना तो सच है कि महाप्रज्ञ ने भी सत्याग्रह को प्रस्तुति का विषय बनाया। उनकी दृष्टि में सत्याग्रह का व्यक्तिगत प्रयोग बहुत पुराना है। भगवान् महावीर ने सत्याग्रह किया कि दासी बनी हुई राजकुमारी के हाथ से भोजन लूँगा, अन्यथा छह मास तक भोजन नहीं लूँगा। इसकी पारंपरिक व्याख्या कुछ भी हो, भगवान् महावीर के क्रान्त व्यक्तित्व के सन्दर्भ में इसकी व्याख्या होगी दास-प्रथा के उन्मूलन के लिए सत्याग्रह का प्रयोग। इस दौरान भगवान महावीर ने पाँच मास और पच्चीस दिन तक भोजन नहीं किया।
अहिंसा का आंदोलनात्मक स्वरूप / 277