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अहिंसा का आंदोलनात्मक स्वरूप
अहिंसा का सैद्धांतिक स्वरूप मनीषियों की प्रयोगधर्मा चेतना का संस्पर्श पाकर प्राणवान् बना। प्रयोगभूमि पर अहिंसा कहाँ, कैसे प्रतिष्ठित बनी यह महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। इसके मन्थन स्वरूप विभिन्न तथ्य उजागर होते हैं। उन तथ्यों के आलोक में प्रायोगिक अहिंसा का एक व्यापक स्वरूप है-अहिंसक आन्दोलन। इसे राजनैतिक परिवेश में प्रतिष्ठित करने का एक मात्र श्रेय महात्मा गांधी को है। जिराल्ड हर्ड के शब्दों में 'गांधीजी के प्रयोग में सारे जगत् को दिलचस्पी है, और उसका महत्त्व युगों तक कायम रहेगा। इसका कारण यह है कि उन्होंने समूह को लेकर या राष्ट्रीय पैमाने पर उसका प्रयोग करने की कोशिश की है।" कथन की पृष्ठभूमि में अहिंसक आंदोलन का स्पष्ट इंगित परिलक्षित है।
गांधी ने भारतीय संस्कृति के आदर्श रूप अहिंसक शक्ति को आजादी के हथियार रूप में अपनाने का देश की जनता से आह्वान किया। उनका दृढ़ विश्वास था कि जब यह शक्ति समूह चेतना से जुड़ जायेगी तो इसके परिणाम निश्चित वांछित ही होंगे। समूह शक्ति का बल मनोवैज्ञानिक मान्यता लब्ध है। 'प्रयोगों के आधार पर यह सिद्ध हो चुका है कि एक चूहा जो विद्युत ग्रिड पार करने में असफल रहता है, समूह के साथ पहले से भी अधिक विद्युत् ग्रिड पार करने में सफल हो जाता है। सामहिक प्रयत्न में शक्ति का विस्फोट स्वाभाविक होता है। इस तथ्य के आधार पर संगठित रूप से जनता की अहिंसक चेतना को गांधी ने आजादी के आंदोलन से जोड़कर दुनिया के सामने सफलता की मिसाल कायम की।
गांधी ने विश्व व्यापी हिंसक आन्दोलनों का अध्ययन किया और उन्हें समाज परिवर्तन की दृष्टि से नाकाम पाया। उनकी दृष्टि में जो आन्दोलन हिंसा पर आधारित होते हैं उससे सच्चा परिवर्तन नहीं होता। सशस्त्र आन्दोलन की अपूर्णता अथवा निरर्थकता उनके सन्मुख थी। वे इस सच्चाई से अवगत थे कि हिंसक आंदोलन को दबा देना, उसे निरस्त करना किसी भी सत्ता पक्ष के लिए आसान होता है। यदि क्रांतिकारी दस-बीस गोलियाँ चला दे या दो चार अफसरों को मार डाले तो सत्ता पक्ष दो हजार बंदूकें चलवा सकता है और हजारों निरपराध लोगों को गोली से भूनकर रख सकता है। हिंसा का यह दौर थमता नहीं। क्योंकि आम प्रजा से सरकार हमेशा कहीं ज्यादा शक्तिशाली व समर्थ होती है। हिंसक आंदोलन की यह कमजोरी गांधी भलीभाँति जानते थे। इससे प्रेरणा लेते हुए उन्होंने कहा '........मैं सशस्त्र आन्दोलन में विश्वास नहीं करता। जिस रोग को दूर करने के लिए इस उपचार का प्रयोग किया जाता है, उसके परिणाम से, इसका परिणाम कहीं अधिक भीषण होता है। ये प्रतिशोध तथा क्रोध के रूप हैं। हिंसा का अंतिम परिणाम कभी सुखद नहीं हो सकता। जर्मनी के मुकाबले
272 / अँधेरे में उजाला