________________
देश प्रेम का प्रतीक है। उनका प्रेम मात्र भारत भूमि से नहीं अपितु भारत के उच्च आदशों से था। अतः उस आदर्श के आधार पर ही वे भारत की आजादी का साक्षात्कार करना चाहते थे।
इस सच्चाई को भी समय-समय पर स्वीकारा कि अहिंसा की प्रगति जैसी हमारी होनी चाहिए वैसी अब तक नहीं हो पाई है। उन्होंने कहा भी-'मैं जानता हूँ कि अहिंसा की प्रगति जाहिर तौर पर बहुत धीमी प्रगति है। लेकिन अनुभव ने हमें बतलाया है कि हमारे सम्मिलित लक्ष्य का यही सबसे निश्चित मार्ग है। लड़ाई और शस्त्रास्त्र से न तो भारत को मुक्ति मिल सकती है, न संसार को। हिंसा तो न्याय प्राप्ति के लिए भी निष्फल साबित हो चुकी है। अपने इस विश्वास के साथ अहिंसा में पूरी श्रद्धा रखने में अगर कोई मेरा साथी न हो, तो मैं अकेला ही इस पथ पर चलने के लिए भी तैयार हूँ।' यह इस बात का सबूत है कि गांधी का अहिंसा-प्रेम अखंड था। उन्होंने न केवल भारत की अपितु दुनिया की मुक्ति का राज इसमें पाया और प्रस्तुत किया।
भारत की आजादी के लिये जिस अहिंसा शक्ति का प्रयोग किया जा रहा था उसका परिणाम इतना आसान नहीं जितना आसान समझा जाता था। इतना असंभव भी नहीं जिसकी कल्पना भी न की जा सके। गांधी ने इस चुनौती भरे संघर्ष के विषय में कहा-जिन अधिनायकों का अहिंसा में कोई विश्वास नहीं है उनकी भूख शांत करने के लिए हजारों नहीं तो सैकड़ों के बलिदान की आवश्यकता तो होगी ही, यह मैं कल्पना कर सकता हूँ। बड़ी-से-बड़ी हिंसा के सामने भी अहिंसा अपनी अमोघ शक्ति दिखाती है। यह अहिंसा की व्याख्या का सच्चा सत्र है। ऐसे ही प्रसंगों पर उसके गुण की असल कसौटी होती है। 63 कथन कसौटी पर खरा उतरा और अनेक लोगों के अहिंसक बलिदान ने भारत के नाम आजादी का आलेख लिखा।
जहाँ तक राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न है, इस संबंध में गांधी का अभिमत रहा जीवन में आदर्श की पूरी सिद्धि कभी नहीं होती। इसलिए 'थोरो' ने कहा है कि 'जो सबसे कम शासन करे वही उत्तम सरकार है। इस व्यवस्था का अनुमोदन करते हुए उन्होंने अहिंसक राज्य व्यवस्था के सम्यक संचालन में विधि-विधान एवं दंड का स्थान गौण रखकर मुख्य स्थान सेवा का रखा। गांधी के सामने एक बार प्रश्न उपस्थित किया गया-आप बाह्य आक्रमण का सामना अहिंसक नीति से किस प्रकार करेंगे, यह समझाइए? स्पष्ट शब्दों में कहा-मैं इसका चित्र पूरी तरह आपके सामने नहीं खींच सकूँगा। क्योंकि हमारे सामने न तो इस चीज का अनुभव है, न यह खतरा। और फिर आज तो सिख, गुरखों की सरकारी सेना खड़ी ही है। मेरी कल्पना तो यह है कि मैं अपनी हजार या दो हजार की सेना दोनों लड़ती हुई फौजों के बीच खड़ी कर दूंगा। ऐसा करके मैं अन्य कोई परिणाम न भी प्राप्त कर सकूँ फिर भी शत्रु की हिंसा का जहर तो कम कर दूंगा।" ___अहिंसक शिक्षा पाने वालों के रक्षा-संबंधी दायित्व पर प्रकाश डालते हुए गांधी ने कहा-'जिन लोगों ने अहिंसा की पद्धति से शिक्षा पाई हैं, उनके द्वारा अहिंसात्मक मुकाबला किया जायेगा। वे निहत्थे ही आगे आकर आक्रमणकारी की तोपों के आहार बनेंगे। यह अहिंसक-शक्ति द्वार का नया कीर्तिमान होगा जिसे कभी मिटाया नहीं जा सकेगा। यह उपक्रम असामाजिक तत्त्व फैलाने वालों के भीतर भी परिवर्तन की नई चेतना का संचार करने वाला सिद्ध होगा। गांधी वसीयत गांधी के हृदय में स्वराज्य की जो वास्तविक कल्पना थी उसे वे अपनी मृत्यु के पूर्व अपनी वसीयत
258 / अँधेरे में उजाला