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के तौर पर स्वराज्य की एक रूप-रेखा भी तैयार की। प्रस्तुत संदर्भ में उसको उद्धृत करना प्रासंगिक होगा। उन्होंने लिखा : मेरे सपनों का स्वराज्य तो गरीबों का स्वराज्य होगा। जीवन की जिन आवश्यकताओं का उपयोग राजा और अमीर लोग करते हैं, वही उन्हें (गरीब) भी सुलभ होनी चाहिए, इसमें फर्क के लिए स्थान नहीं हो सकता। मुझे इस बात में बिल्कुल संदेह नहीं है कि हमारा स्वराज्य तब तक पूर्ण स्वराज्य नहीं होगा, जब तक गरीबों को ये सारी सुविधाएं देने की पूरी व्यवस्था नहीं हो जाती।
मेरे सपनों के स्वराज्य में जाति या धर्म के भेदों का कोई स्थान नहीं हो सकता। उस पर शिक्षितों या धनवानों का एकाधिपत्य नहीं होगा। वह स्वराज्य सबके लिए, सबके कल्याण के लिए होगा। सबकी गिनती में किसान तो आते ही हैं, किन्तु लूले, लंगड़े, अंधे और भूख से मरने वा लाखों करोड़ों मेहनतकश मजदूर भी अवश्य आते हैं। उनका यह भी कहना था अहिंसा पर आधृत स्वराज्य में लोगों को अपने अधिकारों का ज्ञान न हो तो कोई बात नहीं, लेकिन उन्हें अपने कर्तव्यों का ज्ञान अवश्य होना चाहिए। हर एक कर्तव्य के साथ उसकी तौल का अधिकार जडा हआ होता है और सच्चे अधिकार तो वे ही हैं जो अपने कर्तव्यों का योग्य पालन करके प्राप्त किये गये हों।
अधिकारों का सच्चा स्रोत कर्तव्य है। अगर हम सब अपने कर्तव्यों का पालन करें, तो अधिकारों को खोजने बहुत दूर नहीं जाना पड़ेगा। अगर अपने कर्तव्यों का पालन किये बिना हम अधिकारों के पीछे दौड़ते हैं, तो वे हम से दूर होते जायेंगे।165 यह एक दस्तावेज़ है गांधी के सपनों के स्वराज्य का, जिसको आकार देना अब भी बाकी है।
राष्ट्रीय संदर्भ में गांधी के मौलिक और विस्तृत विचारों का प्रवाह देखने को मिलता है वहीं आचार्य महाप्रज्ञ के राष्ट्रीय विचारों की संक्षिप्त पर महत्त्वपूर्ण झलक देखी जा सकती है। उसमें मानवता के त्राण की स्पष्ट आकांक्षा है। उनके चिंतन में व्यक्ति निर्माण का अद्भुत दर्शन है उसके आधार पर राष्ट्र निर्माण की कल्पना की गई है। उनके चिंतन में राष्ट्रीय एकता का आधार न्याय और समता के आधार पर निर्मित राष्ट्र का संविधान ही बन सकता है। जाति और सम्प्रदाय के आधार पर विभक्त मनोवृत्ति वाला राष्ट्र जिस हिंसक स्थिति से गुजरता है, उसका एक उदाहरण बोस्निया है। इससे भिन्न अहिंसक चेतना राष्ट्रीय एकता के विकास में योगभूत बनती है। उसके महत्त्वपूर्ण मूल्य हैं
1. शांतिपूर्ण सहअस्तित्व 2. भौतिक और आर्थिक विकास 3. आतंकवाद से विमुक्ति66
इन मूल्यों के आधार पर अहिंसक राष्ट्र की कल्पना आसानी से की जा सकती है। जहाँ राष्ट्रीय एकता होगी वहाँ इन मूल्यों का विकास होगा, जहाँ ये मूल्य विकसित होंगे वहाँ अहिंसा की भूमिका स्वतः स्वीकृत होगी।
महाप्रज्ञ ने बताया शांतिपूर्ण जीवन और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, जिसकी आज पूरे विश्व में चर्चा है। सह-अस्तित्व का सिद्धांत विश्व शांति की समस्या का बहुत बड़ा समाधान है। यह अहिंसा का प्राणभूत सिद्धांत है। इस कथन में भी कोई अतिरंजना नहीं लगती कि सह-अस्तित्व के बिना अहिंसा सफल नहीं, अहिंसा के बिना सह-अस्तित्व नहीं। सह-अस्तित्व और अहिंसा दोनों को बाँटा नहीं जा सकता। इसकी व्यापकता तभी संभव है जब सहिष्णुता, अकिंचन्यादि गुणों का व्यक्ति
अहिंसा का राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप | 259