________________
स्वतंत्र बनाने की आकांक्षा रखते थे। उन्होंने यह स्वीकारा कि मुझ में इतनी शक्ति नहीं है कि मैं सारे देश को अहिंसामय कर सकूँ, इसलिए मैं अहिंसा का प्रचार देश की स्वतन्त्रता पाने और उसके द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय संबंध स्थापित करने के लिए ही करता हूँ । किन्तु मेरी कमजोरी से यह नहीं समझना चाहिये कि मैं अहिंसा के पूर्ण गौरव को नहीं देखता हूँ। मेरा हृदय उसका अनुभव करता है किन्तु मुझ में अभी वह क्षमता नहीं है जिससे पूर्ण रूप से अहिंसा की शिक्षा दे सकूँ ।
अपनी अपूर्णता के साथ ही सामूहिक तौर पर अहिंसा के अपूर्ण स्वरूप की ओर समय-समय पर गांधी जनता का ध्यान आकृष्ट करते रहे । उनका जनता से आह्वान था कि हमारी अहिंसा चाहे बलवान अहिंसा न हो, पर सच्चे लोगों की अहिंसा जरूर होनी चाहिये । यदि हम अहिंसा -परायण होने का दावा करते हैं तो जब तक ऐसा दावा करें तब तक अंग्रेज अथवा सहयोगी भाइयों को हानि पहुँचाने का इरादा तक हमें नहीं करना चाहिये । परन्तु हमारे अधिकांश लोगों ने उनका नुकसान जरूर चाहा है और हम ऐसा करने से इसलिए रुक रहे हैं कि हम कमजोर हैं या इस गलत खयाल से कि केवल शारीरिक हानि न पहुँचाने से ही हमारे अहिंसाव्रत का पालन हो जाता है। हमारी अहिंसा की प्रतिज्ञा में तो भविष्य में प्रतिहिंसा करने की सम्भावना रह नहीं पाती। 155 यह इस सत्य को उजागर करता है कि आजादी के लिए उतावली जनता को भी गांधी अहिंसा की नीति से विचलित नहीं देखना चाहते थे। बल्कि बार-बार अहिंसा के मार्ग पर चलने को प्रेरित करते रहते ।
गांधी समझाते हमारा राष्ट्रीय ध्येय अहिंसा का है। मगर मन और वचन से तो हम मानो हिंसा की ही तैयारी करते हैं । ज्ञान और शक्ति का भान होते हुए भी तलवार - त्याग करने में ही सच्ची अहिंसा है। उनका यह पक्का विश्वास था जो व्यक्ति और राष्ट्र अहिंसा का अवलम्बन करना चाहे, उन्हें आत्म सम्मान के अतिरिक्त अपना सर्वस्व गँवाने के लिये तैयार रहना चाहिये इसीलिए वह दूसरों के मूल्यों को हड़पने अर्थात् आधुनिक साम्राज्यवाद से, जो कि अपनी रक्षा के लिये पशुबल पर निर्भर रहता है बिल्कुल मेल नहीं खा सकता । विचारों की परिणति के लिए उन्होंने चाहा कि कोई ऐसा दल संगठित करना चाहिये जो मन-वचन-कर्म से अहिंसा के लिये प्रतिज्ञाबद्ध हो और उनकी ऐसी शिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिये जिसमें हर तरह के उपयोग के लिए वे तैयार रहें। उन्होंने यह स्वीकारा की दुनिया में हमारी कांग्रेस ही एक ऐसी संस्था है जिसने मेरे कहने पर स्वराज्य प्राप्ति के लिये विशुद्ध अहिंसा को अपनाया है । वह उसकी एकमात्र शक्ति है । मैं यह कहने का साहस करता हूँ कि अगर हमारी अहिंसा वैसी न हुई जैसी कि वह होनी चाहिये तो राष्ट्र को उससे बड़ा नुकसान पहुँचेगा। क्योंकि उसकी आखिरी की तपिश में हम बहादुर के बजाय कायर साबित होंगे 1 और आजादी के लिये लड़ने वालों के लिये कायरता से बड़ी कोई बेइज्जती नहीं है । 156 यह अहिंसा की अविकल आस्था का प्रतीक है।
रचनात्मक कार्यक्रम
आजादी की पृष्ठभूमि में देश की जनता को रचनात्मक कार्यक्रम से जोड़कर गांधी भारतीय जनता की मनोवैज्ञानिक ढंग से अहिंसक चेतना जगाने में सतत् प्रयत्नशील रहे । उस प्रयत्न का एक मुख्य पहलू आर्थिक निर्भरता भी था । इसके लिए उन्होंने खादी और चरखे के महत्त्व को समझाया । जनता में खादी की भावना को जागृत किया और बताया कि 'खादी भावना का अर्थ है, पृथ्वी तल के मानवमात्र के साथ मित्र भाव । उसका अर्थ है ऐसी हर चीज का त्याग, जिससे हमारे सहजीवी प्राणियों
254 / अँधेरे में उजाला