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देश का संगठन अहिंसक तरीके से हुआ होगा। यदि हमने स्वराज्य प्राप्त करने योग्य अहिंसक तैयारी की होगी तो उसे अहिंसक तरीके से संभालने में हमें कठिनाई नहीं होनी चाहिए। अहिंसक स्वराज्य कोई आकाश से तो उतरा नहीं होगा। उसे पाने के लिए हमें बहुमत से लोगों का साथ मिला होगा। ऐसे राज्य का अर्थ हुआ कि गुण्डे भी हमारे अंकुश में आये होंगे। उदाहरण के लिए सेवाग्राम की सात सौ आबादी में पाँच-सात गुण्डे हो और बाकी सब लोगों को अहिंसक तालिम मिली हो तो इस स्थिति में गुण्डे बाकी लोगों का अंकुश स्वीकार करेंगे या छोड़कर भाग जायेंगे। 17 स्पष्ट तौर पर ऐसे राज्य के अधिकांश लोग अहिंसा की आस्था से युक्त होंगे तब गिने-चुने बिना आस्था वाले लोगों के हिंसक कारनामें चल नहीं पायेंगे।
___ मौलिक चिंतन के आधार पर अहिंसक राज्य के आंतरिक स्वरूप का उल्लेख किया गया ‘अहिंसक राज्य में तो बहुत कम चोर-डाकू होंगे, ऐसा मान लेना चाहिए। व्यक्ति के लिए यही समझा जाय कि उसे अपरिग्रही बनकर रहना है। जहाँ परिग्रह की पकड गहरी होती है वहाँ उसे हडपने वालों का जमावड़ा स्वतः होता है पर, जहाँ परिग्रह ही नहीं वहाँ अमानवीय तत्त्वों को फलने-फूलने का मौका नहीं मिल पाता। क्योंकि अहिंसक राज्य के नागरिक नैतिक-सामाजिक नियमों के साथ आत्मनियंत्रण की चेतना से भावित होंगे। ऐसे लोग संग्रह की भावना से मुक्त मात्र अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति में आत्मतोष की अनुभूति करेंगे। यह स्वतः फलित है कि जहां संग्रह नहीं वहाँ विग्रह भी नहीं। मजबूती के साथ कहते कि 'अहिंसात्मक राज्य अधिक समझदार जनता की मर्जी के अनुसार काम करने वाला होना चाहिए।' अर्थात् अहिंसक राज्य में जनता की भावनाओं का आदर होगा उसकी उपेक्षा नहीं की जायेगी।
क राज्य व्यवस्था की संभावना पर प्रकाश डालते हुए गांधी ने कहा-'मेरा विश्वास है कि यदि जनता का बहुसंख्यक भाग अहिंसात्मक हो, तो राज्य का शासन कार्य अहिंसा के आधार पर चलाया जा सकता है। जहां तक मैं जानता हूं, भारत में ही ऐसा राज्य हो सकने की सम्भावना है। इसी विश्वास के आधार पर मैं अपना प्रयोग चला रहा हूँ। इसलिए यदि यह मान लिया जाय कि भारत विशुद्ध अहिंसा के द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त कर लेता है, तो उन्हीं साधनों से वह उसकी रक्षा भी कर सकता है।'118 इसके पीछे उनका चिंतन था कि देश में ऐसे स्वयं-सेवकों के मंडल होंगे जिनके जीवन का मुख्य कार्य ही जनता की सेवा करना और उसके लिए अपना बलिदान कर देना होगा। ये ऐसे दल न होंगे जो केवल लड़ाई लड़ना ही जानते हों बल्कि प्रजा को तालीम देने वाले और
यवस्था. व्यवहार और सख-सविधा की सम्हाल रखने वाले दल होंगे। देश पर कोई विपत्ति आने पर पहला वार वे अपने ऊपर लेंगे।
स्वराज्य में अगर देश की सेना से जनता को खुद ही भयभीत रहना पड़े और उसी पर सैनिकों की गोलियां चले तो वह स्वराज्य या रामराज्य नहीं बल्कि शैतान का राज्य होगा।.....देश का सिपाही प्रजा का मित्र हो. प्रजा की आपत्ति के समय उसके लिए प्राण देने वाला हो तो वह क्षत्रिय है। यदि वह प्रजा को डराने वाला और शरीर या शस्त्र के बल से उसे पीड़ित करने वाला हो तो वह लुटेरा होगा। यह सुरक्षात्मक पक्ष उनकी अहिंसात्मक चेतना का प्रतिबिम्ब है। बापू को भारतीय परिवेश में ही कुछ ऐसा ऋषि-प्रसाद नजर आया जिसके आधार पर वे राज्य-व्यवस्था तक का विचार अहिंसा पर बुन सके।
उनका चिंतन व्यवहार के धरातल पर था, अतिवाद पर नहीं। उन्होंने माना कि अहिंसक राज्य
अहिंसा का राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप / 251