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न भी बोलूँ। पर, मुझे यह प्रेरणा जरूर मिली कि नया करने का अवकाश हमेशा विद्यमान रहता है। जो अतीत में हो चुका, वह सब-कुछ हो चुका-ऐस. नहीं है। हम सीमा न बाँधे। पर्याय अनंत हैं। आज भी नया करने का अवकाश है। कुछ नया करने की भावना प्रगाढ़ बनी।
आचार्य हरिभद्र, जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण, आचार्य हेमचंद्र, आचार्य मलयगिरी, आचार्य कुंदकुंद आदि-आदि ऐसे महान् आचार्यों को पढ़ने पर कोई न कोई नई बात ध्यान में आती गई। उन सबका मनन और प्रयोग आचार्य महाप्रज्ञ की सृजन चेतना को प्रखर बनाता रहा।
निस्पृहता : सांप्रदायिक दृष्टिकोण से उपरत महाप्रज्ञ ने विभिन्न वर्ग के संन्यासियों, साधकों, योगियों के साहित्य को पढ़ा, संपर्क साधा, प्रेरणाएँ संजोयी। उन्होंने ग्रहण करने योग्य को ग्राहक भाव से अवश्य अपनाया। उनमें उन्च कोटि की निस्पृहता देखी जाती है उसकी पृष्ठभूमि में एक घटना भी निमित्त बनी। उसका जिक्र करते हुए लिखा-स्वामी विद्यारण्य, जो पहले जादवपुर युनिवर्सिटी में गणित के प्रोफेसर थे, एशिया के ग्यारह चुनिंदा व्यक्तियों में वे एक थे। उन्होंने हिन्दू गणित पर एक पुस्तक लिखी। किसी दूसरे के नाम से छपी है, पर लेखन उनका है। हमारे बहुत निकट संपर्क में रहे। वे जोधपुर में आए हुए थे। हम शौच के लिए बाहर जा रहे थे। वे भी साथ में थे। मैंने पूछ लिया-‘स्वामीजी! आपने प्रातराश कर लिया? दूध पीया? उन्होंने कहा- दूध कहाँ से आए?' मैंने कहा- आपके पीछे बड़े-बड़े प्रोफेसर घूमते रहते हैं कि आप कुछ बता दें, आपको क्या कमी है?' वे बोले-‘मुनि नथमलजी! (आचार्य महाप्रज्ञजी) अभी जोधपुर में हूँ तब तो सब पीछे-पीछे घूमते हैं। यहाँ से मैं पुष्कर चला जाऊँगा और वहाँ भिक्षुओं की पंक्ति में जाकर भोजन करूँगा। वहाँ दूध कहाँ से आएगा? वहाँ दूध नहीं मिलेगा तो दूध का अभ्यास मुझे सताएगा, दूध का संस्कार सताएगा कि आज दूध नहीं मिला। उनकी अनेक बातें मैंने देखी कि एक संन्यासी कितना निस्पृह और कितना संसार से मुक्त रहना चाहता है। उससे मैं बहुत प्रभावित हुआ। ऐसे सैकड़ों-सैकड़ों जैन-अजैन व्यक्ति संपर्क में आए-हिंदू भी, मुसलमान भी। बड़े-बड़े लोग मिले। उनको देखा, कुछ नई बातें सीखीं।
भाग्य की सुरक्षा : ज्योतिष की भविष्यवाणी से मुनि नथमल बहुत पहले ही जागरूक बन गये। एतद विषयक विक्रम संवत उन्नीस सौ चौरानवे श्रीगरगढ प्रवास की घटना का उल्लेख किया-हम सहपाठी बैठे थे। उसमें मुनि नगराज जी भी एक थे। उन्हें ज्योतिष में बहुत रुचि थी। कुछ जानते भी थे। वे खोजते रहते थे। वहाँ के श्रावक ज्योतिष विद्या के विज्ञ मन्नालाल नवलखा से संपर्क किया। मुनि नगराजजी बोले-आज मन्नालालजी से बात करनी है, जन्म कुंडली बनानी है। अनेक संतों की जन्मकंडली बनाई गई। हम सब बैठे थे। वे फलादेश कर रहे थे। उसने कहा-'आपकी कुंडली में भाग्य इतना प्रबल है कि आप जो चाहेंगे, वह काम हो जाएगा।' ___मैंने इस बात को सुना। बचपन से ही ग्रहणशीलता का एक भाव था। मैंने जैसे गाँठ बाँधली हो कि मुझे ऐसा कोई काम नहीं करना है कि जो अच्छा भाग्य है, उसमें कोई कमी आए। एक संकल्प कर लिया। हमेशा प्रयत्न किया कि भाग्य कहीं बिगड़े नहीं। जैन दर्शन के अनुसार संक्रमण भी होता है। बुरा भाग्य अच्छा और अच्छा भाग्य बुरा बन जाता है। भाग्य में कमी प्रमाद से आती है। मैंने तय कर लिया कि मुझे अधिक से अधिक अप्रमत्त रहने की साधना करनी है। मैं मानता हूँ कि ज्योतिष का वह एक संकेत मेरे लिए पथ प्रशस्त करने का हेतु बन गया।
महाप्रज्ञ ने महानता और सफलता की दिशा में सदैव अपने चरण गतिशील रखें। जीवन की अंतिम साँसों तक मानवीय मूल्यों की समृद्धि में जुटे रहे। उनके द्वारा दिखाया गया रोशनी पथ युगों
जीवन के रहस्य : बनाम सफलता सूत्र / 181