________________
जीवन-विज्ञान शिक्षण-प्रशिक्षण आदर्श व्यक्तित्व निर्माण की संकल्पना को साकार बनाता है। जिसके मुख्य तीन घटक हैं
. एक स्वस्थ, शांत और संतुलित जीवन जीने के लिए पहली बात है नियंत्रण की क्षमता। . ज्ञान की क्षमता, ज्ञान में उसके सारे पक्ष आ जाते हैं-समझ, अंडरस्टेंडिंग , अवधारणा
आदि-आदि। . आनन्द की अनुभूति।
ये तीनों बातें बौद्धिक विकास के साथ नहीं हो तो जीवन खतरनाक बन जाता है। जीवनविज्ञान इस खतरे को टालने वाला रेडार है। इसके प्रयोग से विद्यार्थियों में न केवल इंटेलीजेंसी का ही विकास होता है अपितु इमोशनल इंटेलीजेंसी का विकास भी होता है। अंतर्दृष्टि के जागरण की विधा हस्तगत होती है। परिणाम स्वरूप जीवन-विज्ञान के शिक्षण-प्रशिक्षण से विद्यार्थियों में अहिंसा.
ना और नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा होती है। जीवन-विज्ञान महाप्रज्ञ की शिक्षा जगत् को अनूठी देन है। इसके जरिये वे शिक्षा जगत् में नई क्रान्ति के जनक कहलाते हैं। जीवन-विज्ञान का पूरा पाठ्यक्रम तैयार है जो राजधानी दिल्ली सहित देश के 15 राज्यों में कोर्स में स्वीकृत हो चुका है।
दोनों मनीषियों ने व्यक्ति-विषयक अहिंसा का जो प्रारूप, प्रक्रिया प्रस्तुत की वह मौलिक है। विचारों में समानता एवं वैशिष्ट्य की युति है। व्यक्ति की अहिंसक चेतना के जागरण पर समान रूप से बल दिया है। प्रविधि में वैशिष्ट्य है गांधी ने आत्म निर्भरता के लिए श्रम-प्रधान, बुनियादी शिक्षा पद्धति का सिंहनाद किया क्योंकि भारतीय स्वतंत्रता के लिए वह अनिवार्य था। वर्तमान के संदर्भ में स्वतंत्र भारत के बालकों में नैतिक-चारित्रिक उत्थान हेतु आचार्य महाप्रज्ञ ने जीवन-विज्ञान के प्रशिक्षण का सूत्रपात किया हैं। जब तक विद्यार्थी का अपने संवेगों-आवेगों पर नियंत्रण नहीं होता आदर्श व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का सपना साकार नहीं हो सकता। संतुलित एवं अहिंसक व्यक्तित्व निर्माण हेतु दोनों मनीषियों के विचारों का समन्वित प्रयोग नयी संभावनाओं को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका रखता है।
अहिंसा की मूल इकाई : व्यक्ति । 213