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उसकी व्यवस्था भी अच्छी नहीं हो सकती। इनके साथ बारह भावनाएँ जुड़ी जिनमें प्रमुख हैं ये चार भावनाएं-मैत्री, प्रमोद, करुणा, उपेक्षा।
मैत्री का अर्थ है-परेषां हितचिंतनम्-दूसरों के हित की चिंता करना।.....परिवार के विघटन का प्रमुख कारण है कि मैत्री का प्रयोग कम हो गया है। एक-दूसरे की हित चिंता कम हो गई है। जहाँ व्यक्ति अपने स्वार्थ को गौण कर दूसरे के हित की चिंता करता है, उस संगठन को कोई तोड़ नहीं सकता।
प्रबंधन का दूसरा सूत्र है-प्रमोद भावना। वह संगठन मजबूत बनता है, जहाँ एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के गुणों को स्वीकार करता है, महत्व देता है।.....कल्पना करें-एक परिवार में पाँच भाई हैं, पाँच बहुएँ हैं। वे एक दूसरे को हीन बताने का प्रयास करेंगे, एक-दूसरे की निंदा और चुगली करेंगे तो क्या होगा? क्या ऐसा परिवार कभी अच्छा हो सकता है?
प्रबंधन का तीसरा सत्र है-करुणा इसका अर्थ है-पीडा आए, समस्या आए तो उसका समाधान खोजना और क्रूरता की वृत्ति का विसर्जन करना।
चौथा सूत्र है-उपेक्षा। यदि संगठन को बनाए रखना है तो कहीं-कहीं उपेक्षा करो। अमुक आदमी अनुकूल नहीं है, फिर भी जैसे-तैसे इसे बनाए रखना है, इसलिए उपेक्षा करो। उपेक्षा का ही दूसरा नाम है मध्यस्थ-मध्य
य-मध्यस्थ रहो. तटस्थ रहो। यह तटस्थता सम्यक प्रबंधन का एक महत्त्वपर्ण तत्त्व है।4 परिवार में अहिंसा के विकास की बड़ी समस्या है नाना रुचियां। नाना रुचियों के कारण संघर्ष होता है, कलह होता है। जितने व्यक्ति, उतनी ही रुचियां। भिन्न रूचि संघर्ष पैदा कर सकती है। नाना रुचियों को नहीं मिटाया जा सकता। किन्तु इससे उत्पन्न होने वाले संघर्ष को मिटाया जा सकता है। ऐसा कोई यन्त्र नहीं बना सकते कि सबकी रुचियों का समीकरण हो जाए। यह संभव नहीं है। ऐसा नहीं किया जा सकता। सबकी रुचियां एक सी नहीं हो सकती। हमें यह समझ लेना चाहिए कि रुचि और संघर्ष-ये दो हैं। उनके बीच एक ऐसा सूत्र दिया जा सकता है कि रुचियों की भिन्नता तो रहे पर संघर्ष न हो। वह सूत्र है अहिंसा के प्रयोग का। हम परिवार को अहिंसा की प्रयोगभूमि बनाएँ।
गांधी की अहिंसक सोच इस सच्चाई को स्वीकार करती है कि जैसा अहिंसा का भाव अपने परिवार के प्रति होगा उसी का विस्तार वैश्विक क्षितिज पर होगा। अहिंसा का गुणधर्म सर्वत्र एक जैसा ही काम करता है। उन्होंने अपने मन्तव्य को स्पष्ट किया-एक बूंद पानी में वे सब गुणधर्म होने चाहिये जो तालाब के पानी में हैं। अपने भाई के साथ मैं जिस अहिंसा का व्यवहार करूँगा वह सारे विश्व के प्रति मेरी अहिंसा से भिन्न नहीं हो सकती। जब मैं अपने भ्रातृ-प्रेम को सारे विश्व में व्यापक करूं तो उस अवस्था में भी वह सत्य ही सिद्ध होना चाहिये ।'75 आशय स्वरूप अपने स्वजनों के प्रति किया गया अहिंसा का व्यवहार, भ्रातृप्रेम ही मानव जाति के लिए विस्तार पाता है। गांधी के इन विचारों से महाप्रज्ञ सहमत होने के बावजूद स्वतंत्र चिंतन रखते। उनकी यह सोच मौलिक थी कि परिवार विराट् प्रेम की शक्ति को सीमित कर देता है। भगवान् महावीर ने कहा, 'किसी प्राणी को मत मारो' । कोई भी अहिंसा का सूत्रधार यह कहकर नहीं चला कि अपने परिवार वालों का हित करो या अपने परिवार वालों को मत सताओ, मत मारो, कष्ट मत दो, क्योंकि उनकी दृष्टि में कोई परिवार था ही नहीं। वे परिवार की सीमा से ऊपर उठ गये थे। मैं मानता हूँ कि परिवार की अपनी उपयोगिता है और उपयोगिता के कारण ही परिवार बना है। यह एक शाश्वत सत्य है
अहिंसा की प्रयोगशाला-परिवार | 217