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दोनों मनीषियों की पारिवारिक अहिंसा संबंधी सोच मौलिक है। उन्होंने इस सच्चाई का अनुभव किया कि जब तक व्यक्ति के आस-पास का वातावरण अहिंसा की परिमल से सुवासित नहीं होगा उसका विस्तार नहीं हो पायेगा। महात्मा गांधी ने पारिवारिक अहिंसा का विकास इसलिए जरूरी बताया कि उसका प्रयोग राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज पर सफल बन सके। आचार्य महाप्रज्ञ ने पारिवारिक अहिंसा के विकास में साधक-बाधक तत्वों का उल्लेख एवं पारिवारिक संदर्भ में अहिंसा को विभिन्न कोणों से व्याख्यायित कर युगीन समस्या के समाधान की प्रक्रिया को उजागर किया है। उभय मनीषियों ने 'वसुधैव-कुटुम्बकम्' के आदर्श को व्यवहारिक धरातल पर लाने की पृष्ठभूमि में पारिवारिक अहिंसा के विकास को अनिवार्य माना है।
220 / अँधेरे में उजाला