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ही महापुरुषों के अर्थ विषयक विचार सामयिक और समाधायक है। जिनमें समाज व्यापी असमानता को मिटाने का दर्शन छिपा है । अपेक्षा है समन्वित प्रयोग की ।
आर्थिक प्रारूप बनाम : ट्रस्टीशिप
व्यापक आर्थिक असमानता को देख गांधी का कोमल हृदय द्रवित हो उठा। सामधान स्वरूप ट्रस्टीशिप का सूत्रपात किया। आर्थिक क्षेत्र में दिव्य दर्शन 'न्यासिता' (ट्रस्टीशिप) का सिद्धांत न केवल भारतीय संदर्भ में अपितु विश्व समाज के लिए आशा किरण है। इसकी पृष्ठभूमि में मानव कल्याण का उदात्त भाव छिपा है। अपने मंतव्य को प्रकट करते हुए गांधी ने कहा ट्रस्टीशिप का सिद्धांत इस बात पर आधारित है कि जिसके पास धन है वह उसे अपना समझकर फिजूल खर्च न करे अमानत समझकर रखे और लोक कल्याण में खर्च करे । धनवान लोग भले ही करोड़ों रुपये कमायें (बेशक, ईमानदारी से) लेकिन उनका उद्देश्य वह सारा पैसा सबके कल्याण में समर्पित कर देने का होना चाहिये । 'तेन त्यक्तेन भुंजीथाः' यानि, 'अपनी दौलत का त्याग करके तू उसे भोग ।' अर्थात् तू करोड़ों खुशी से कमा, लेकिन समझ ले कि तेरा धन सिर्फ तेरा नहीं, सारी दुनिया का है; इसलिए जितनी तेरी सच्ची जरूरतें हो, उतनी पूरी करने के बाद तूं उसका उपयोग समाज के लिए कर। 106 आशय स्पष्ट है कि व्यक्ति अर्थ का उपयोग सामाजिक हित को ध्यान में रखते हुए करे ।
न्यासिता की व्यवस्था के संदर्भ में गांधी ने संपत्ति पर तीन प्रकार के स्वामित्व का उल्लेख
किया
1. ईश्वर का स्वामित्व
2. व्यक्ति का निजी स्वामित्व तथा
3. समाज का नैतिक स्वामित्व ।
इस मंतव्य को प्रस्तुति दी - संसार की सारी सम्पत्ति भगवान की है और यदि किसी के पास अनुपात से अधिक धन है तो वह उस धन का जनता की ओर से ट्रस्टी या अमानतदार है। न्यासिता के सिद्धांत और आर्थिक समानता की जड़ में धनिक का ट्रस्टीपन निहित है । न्यासिता की व्यवस्था के अन्तर्गत धनिकवर्ग धन का उपभोग अपरिग्रह के नियम के अनुसार करेगा और शेष बचे धन का व्यय सार्वजनिक हित की पूर्ति के लिए करेगा । इस प्रकार न्यासिता की व्यवस्था आर्थिक समानता की स्थापना में समर्थ है। 107
नैतिक बल के सहारे न्यासिता की व्यवस्था को स्थापित किया जा सकता है जिसके दो प्रमुख साधन हैं- 1. विचार- क्रांति एवं 2. अहिंसात्मक असहयोग ।
विचार क्रांति एक ऐसा साधन है जिसकी मदद से न्यासिता के सिद्धांत के पक्ष में समाज की नैतिक चेतना जागृत की जा सकती है और धनिक वर्ग को भी आर्थिक समानता एवं न्याय की स्थापना के लिए सहज प्रेरणा दी जा सकती है। इससे हृदय परिवर्तन पूर्वक न्यासिता सिद्धांत को अपनाया जाता है। इसकी पृष्ठभूमि में गांधी का अहिंसक अर्थशास्त्र बोलता है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा-जो अर्थशास्त्र नैतिक मूल्यों की उपेक्षा करता है, अवहेलना करता है, वह झूठा अर्थशास्त्र है । अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अहिंसा को अपनाने का अर्थ है; उस क्षेत्र में अहिंसा के कानून को अथवा नैतिक मूल्यों को दाखिल करना । अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का नियमन करने में नैतिक मूल्यों का ध्यान रखना जरूरी है। गांधी की राय में भारत की ही नहीं बल्कि सारी दुनिया की अर्थ- रचना ऐसी होनी
अहिंसक समाज : एक प्रारूप / 231