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पहलुओं पर विचार किया है । सामान्य लोग यही समझते हैं कि मारना हिंसा है और नहीं मारना अहिंसा है।
अहिंसा के हजारों पर्याय हैं। पर्यायों पर हमने समझने और समाझाने का प्रयत्न किया है। इससे वातावरण का परिष्कार भी हुआ है। सज्जन चरित्र को समझने का प्रयत्न करें और सज्जन चरित्र के द्वारा शांतिपूर्ण वातावरण का निर्माण किया जा सकता है। जीवन का आनंद प्राप्त हो सकता है | 137
उन्होंने सज्जन चरित्र के मानक प्रस्तुत कर अहिंसक समाज की भूमिका को अधिक सुगम बनाया है। उसके मुख्य घटक हैं- शांत रहता है, दूसरों के दोष सभा में नहीं कहता, दूसरे की समृद्धि देखकर जलन नहीं करता, ईर्ष्या नहीं करता, संतोष का अनुभव करता है । दूसरे के कष्ट निवारण का उपाय खोजना। अपनी प्रशंसा नहीं करता, अपनी श्लाघा नहीं करता, न्याय मार्ग से विचलित नहीं होता, औचित्य का उल्लंघन नहीं करता, क्षमा का चारण करता है।
समाज परिवर्तन के संबंध में अहिंसा यात्रा में महाप्रज्ञ ने स्पष्ट कहा- समाज का ढ़ांचा हम नहीं बदल सकते। यह हमारा काम नहीं है। किंतु समाज की सोच को बदलने के काम में हम लगे हुए हैं। दहेज उत्पीड़न और भ्रूणहत्या की समस्या तभी सुलझेगी, जब आदमी का चिंतन बदलेगा । सबसे पहले इस संदर्भ में जनता का अज्ञान और भ्रम मिटना चाहिए, उसकी सोच परिष्कृत होनी चाहिए।
महिला समाज में जागृति की लहर पैदा करते हुए महाप्रज्ञ ने कहा- भ्रूण हत्या रोकने का अभियान और ज्यादा तीव्र और व्यापक होना चाहिए। इसके लिए पूरे समाज को आंदोलित करना है। महिलाएँ अपनी महिला जाति को बचाने के लिए आगे आएं। इस समय उनके अस्तित्व का सवाल पैदा हो गया है। अगर महिलाएँ न चेतीं तो बहुत बड़ी विभीषिका उनके सामने है
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पंजाब में प्रतिवर्ष चालीस हजार भ्रूणों की हत्या की बात सुनकर महाप्रज्ञ का करुण हृदय द्रवित बन बोल उठा-अजन्में कन्या भ्रूण को कोख में ही समाप्त करना कितनी बड़ी विभीषिका है, इससे ही अंदाजा लगा सकते हैं कि आने वाले दिनों में इसका परिणाम क्या होगा ?...... एक भीषण युद्ध लड़ा जा रहा है। युद्ध में भी वर्षभर में चालीस हजार सैनिकों की हत्या नहीं होती होगी । यह युद्ध कानून और दंड के द्वारा नहीं रूकेगा। इसके लिए हृदय परिवर्तन आवश्यक है। भीतर की चेतना बदले, तब कहीं जाकर यह जघन्य कार्य रूकेगा । व्यक्ति के भीतर हिंसा की जो उथल-पुथल चल रही है, उसे रोकने के लिए उसके मनोभाव को परिवर्तित करने का प्रयत्न किया जाए। यह बात मनुष्य के मन-मस्तिष्क में समाजाए कि अजन्में शिशु की हत्या करना घोर पाप है, तब कहीं जाकर भ्रूणहत्या पर अंकुश लगेगा। 139 अहिंसा यात्रा के दौरान भ्रूण हत्या का मुद्दा हर जगह प्रमुख रूप से उठाया गया। गाँवों में बहुतसी ऐसी स्त्रियां महाप्रज्ञ के सामने आई, जिनके मन में प्रायश्चित का भाव था। वे कहती - 'हमें मालूम नहीं था यह इतना बुरा काम है । अपनी अज्ञानता के कारण ऐसा कदम उठाया ।' ऐसा कहते हुए वे रो पड़तीं वे हमसे ( महाप्रज्ञ से) प्रायश्चित की मांग करती । 39 कथन में अतिरंजना नहीं यथार्थ का निदर्शन है ।
अहिंसा यात्रा में नारी उत्थान के व्यापक प्रयत्नों में दहेज का मुद्दा भी उठाया गया । महाप्रज्ञ ने निःसंकोच अपनी सभाओं में कहा- आज दहेज की बीमारी कैंसर से भी अधिक घातक बन रही है । वह अनेक परिवारों की अनेक कन्याओं की वलि ले रही है । कन्या या तो भ्रूण के रूप में ही
अहिंसक समाज एक प्रारूप / 245