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विसर्जन की मनोवृत्ति का प्रशिक्षण __ असंग्रह का प्रशिक्षण। विकेन्द्रित अर्थ-व्यवस्था का प्रशिक्षण।
विश्व-शान्ति का प्रशिक्षण। • स्वस्थ-समाज का प्रशिक्षण। . अर्थार्जन में प्रामाणिकता का प्रशिक्षण। . संविभाग की मनोवृत्ति का प्रशिक्षण। . उपभोग की असीम लालसा के नियमन एवं
उपभोग के सीमाकरण का प्रशिक्षण। इन सूत्रों के प्रायोगिक परिणाम स्वरूप समुन्नत आर्थिक विकास का सपना साकार किया जा सकता है। इनके व्यापक प्रशिक्षण की अपेक्षा है। प्रशिक्षण का प्रारूप व्यक्तिगत स्वामित्व, सामूहिक .. स्वामित्व, राज्य का स्वामित्व, सहकारिता, केन्द्रित अर्थ-व्यवस्था, विकेन्द्रित अर्थ-व्यवस्था इन सबकी मीमांसा के पश्चात् तैयार किया गया है, यह सर्वोत्तम प्रामाणित हुआ है। व्यवहार के धरातल पर देखा जाये तो सामूहिक स्वामित्व और राज्य का स्वामित्व दोनों आर्थिक विकास की दौड़ में पिछड़ गये हैं।19 महाप्रज्ञ के शब्दोंमें-वर्तमान अर्थशास्त्रीय अवधारणा में भी परिवर्तन जरूरी है। आज सापेक्ष अर्थशास्त्र की बहुत आवश्यकता है। इस विषय पर अर्थशास्त्रियों के साथ कई सेमिनार और गोष्ठियां कर चुके हैं और प्रायः सभी अर्थशास्त्रियों ने रिलेटिव इकोनोमिक्स की अवधारणा का समर्थन किया है। 20 प्रस्तुत अभिमत वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में आर्थिक विकास की नई संभावनओं को उजागर करता है। इसमें व्यक्ति, समाज, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अर्थानुबंधी समस्याओं को सुलझाने का पर्याप्त अवकाश है। सुसंगठित समाज का आधार समाज व्यापी विषमताओं के निवारण हेतु नई समाज-व्यवस्था और अहिंसा के संबंध में गांधी ने कहा 'आज समाज में जो असमानताएँ वर्तमान है, वह विशेष रूप से जनता के अज्ञान के कारण है। जनता जैसे-जैसे अपनी सहज शक्तियों का अनुभव करती जायगी वैसे-वैसे समस्त असमानताएं नष्ट होती जायेगी। यदि यह क्रांति हिंसा द्वारा हुई तो स्थिति जैसी आज है, उसके विपरीत ही होगी।. ....आज लोग जिस नई व्यवस्था की आशा लगाये हुए हैं, वह तो अहिंसा द्वारा अर्थात् हृदय परिवर्तन द्वारा ही उत्पन्न हो सकेगी। मेरी अपील और कार्य-प्रणाली शुद्ध अहिंसा की है।12। अपनी इसी आस्था के सहारे उन्होंने समाज व्यापी अज्ञान को दूर करने का प्रयत्न किया।
सुव्यवस्थित समाज और अहिंसा दोनों में निकट का संबंध है। हिंसा के आधार पर कभी स्वस्थ समाज नहीं बन सकता। तर्क की कसौटी पर जिस दिन वनमानुष ने हिंसा के क्रूर कारनामें त्याग कर अहिंसा की राह पर कदम बढ़ाये तभी मानव समाज का निर्माण संभव हुआ। इससे आगे जब समाज ने सुव्यवस्था कायम करने के लिए नियमोपनियम अपनाये तब उसका स्वरूप निखर पाया। महात्मा गांधी के इस चिंतन से जुड़ा हुआ आचार्य महाप्रज्ञ का मन्तव्य है कि मानवीय सभ्यता और संस्कृति का उच्चतम विकास बिन्दु है-अहिंसा। मनुष्य चिन्तनशील प्राणी है इसलिए वह हर क्षेत्र में विकास की यात्रा करता है। सामाजिक स्तर की अहिंसा एक विकास है। अध्यात्म के स्तर पर सर्वोच्च
236 / अँधेरे में उजाला