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से घृणा मत करो। उन्होंने सब जाति के लोगों को अपने संघ में सम्मिलित कर ‘मनुष्य
जाति एक है'-इस आन्दोलन को गतिशील बना दिया। 4. उस समय स्वर्ग की प्राप्ति के लिए पशु की बलि दी जाती थी। महावीर ने कहा-स्वर्ग
मनुष्य का उद्देश्य नहीं है, उसका उद्देश्य है निर्वाण-परमशान्ति। पशुबलि से स्वर्ग नहीं मिलता। जो पशु बलि देता है, वह मूक पशुओं की हिंसा कर अपने लिए नरक का द्वार
खोलता है। 5. यह माना जाता था कि युद्ध में मरने वाला स्वर्ग में जाता है। महावीर ने इसकी अवास्तविकता
का प्रतिपादन करते हुए कहा-'युद्ध हिंसा है। वैर से वैर बढ़ता है। उससे समस्या का
समाधान नहीं होता। 6. आक्रमण मत करो। मांसाहार और शिकार का वर्जन करो।।। भगवान महावीर द्वारा निर्दिष्ट
अहिंसक समाज क्रांति के ये आधारभूत तत्त्व वर्तमान समाज व्यवस्था को स्वच्छ एवं स्वस्थ
बनाने में अहं भूमिका रखते हैं। सामाजिक परिवेश में अहिंसा के स्वरूप का जिक्र महाप्रज्ञ ने किया-'समाज के किसी भी व्यक्ति का शोषण नहीं करना, लूट-खसोट नहीं करना, पीड़ा नहीं पहुँचाना, आघात नहीं करना, हीन भावना पैदा नहीं करना आदि-आदि समाजाभिमुखी अहिंसा है। आज समाजाभिमुखी अहिंसा की ओर ध्यान बहुत कम है। स्वाभिमुखी अहिंसा की ओर भी ध्यान केन्द्रित नहीं है। केवल छोटे प्राणियों की ओर अभिमुखी अहिंसा ही ज्यादा चल रही है। चींटी को नहीं सताना, नहीं मारना उसका एक निदर्शन बन सकता है।'132 समाज के धरातल पर इन मौलिक घटकों को उतारने का प्रयत्न किया जाये तो परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त होगा। अहिंसा विकास की नई सँभावनाएँ उजागर होगी।
स्वस्थ समाज के स्वरूप का चित्रण करते हुए महाप्रज्ञ ने बतलाया 'जिस समाज में आश्वासन, परस्परता, सामाजिकता और संवेदनशीलता होती है वह समाज स्वस्थ होता है। समाज में कमजोर, असहाय, बच्चे, बूढ़े, गरीब, रोगी सभी श्रेणियों के लोग होते हैं। उन सभी को सहयोग, सहानुभूति समाज में मिलनी चाहिए। जहाँ परस्पर सुख-दुःख बाँटने की मानसिकता है वही समाज वास्तव में स्वस्थ समाज कहलाने का अधिकारी है।
स्वस्थ समाज संरचना के आधारभूत बिन्दुओं का उल्लेख करते हुए इसके मौलिक स्वरूप को प्रस्तुत किया। इसके संयोजन का पहला आधार बिन्दु है-आत्मानुशासन। जब आत्मानुशासन जागता है तब आदमी में अहिंसा के भाव प्रबल बनते हैं। स्वस्थ समाज का दूसरा सूत्र है-मानवीय एकता में विश्वास । आदमी में अपना अहं है इसीलिए वह घृणा को महत्त्व दे देता है। अमुक लोग छोटे हैं, अछूत हैं, काले हैं इसीलिए हमारे पास नहीं बैठ सकते, हमारे साथ एक वाहन में भी नहीं चल सकते, हमारी बस्ती में नहीं बस सकते-आदि कछ ऐसी अहं वृत्तियाँ हैं, जिससे आज भी आदमी ग्रसित है। दक्षिणी अफ्रीका इसी भयानक व्याधि से ग्रसित है। नीग्रों लोगों को लेकर यहाँ कितना भेदभाव बरता जा रहा है। महात्मा गांधी को इसीलिए वहां कितना कष्ट झेलना पड़ा था। आज भी वह समस्या पूरी नहीं सुलझी है।
जो समाज आत्मानुशासन से भावित होता है, वह शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में विश्वास करता है। उसे हम चाहें तो अहिंसक समाज कह दें, शांतिवादी समाज कह दें, चाहें शोषणमुक्त समाज कह दें, वह वास्तव में स्वस्थ समाज है। समाजवादियों तथा साम्यवादियों ने भी ऐसी ही समाज की
242 / अँधेरे में उजाला