________________
की सीमा में रहें और कोई कुछ न करें, इस समझोते के आधार पर समाज बना ।
अहिंसा की मुख्य प्रयोगशाला है समाज । समाज का एक आधार सूत्र है समानता । एक आदमी अपने को बहुत बड़ा मानता है । वह सामाजिक प्राणी नहीं है, वह समाज की व्यवस्था को तोड़ रहा है। अपराधी आदमी चोरी करने वाला डाका डालने वाला या बम विस्फोट करने वाला असामाजिक कहलाता है । अगर सामाजिक हो तो वह समाज के किसी व्यक्ति को कष्ट नहीं पहुंचा सकता। क्योंकि समाज की पहली शर्त है तुम मुझे मत सताओं मैं तुम्हें नहीं सताऊंगा । इस शर्त पर सारा व्यवहार चलता है। जब वह दूसरों को सता रहा है तब वह समाजिक नहीं हो सकता 15 महाप्रज्ञ का यह मंतव्य वर्तमान समाज में अव्यवस्था फैलाने वाले अराजक तत्वों के लिए एक प्रेरणा है । उन्होंने यह भी कहा कि यदि व्यक्ति कोरा व्यक्ति होता तो सब व्यक्ति अलग-अलग रहते पर एक धागा है, जो व्यक्तियों को जोड़ देता है और एक समाज बन जाता है । वह जोड़ने वाला तत्त्व है - हृदय परिवर्तन । हृदय परिवर्तन का तत्त्व नहीं होता तो व्यक्ति अकेला ही रहता, कभी समाज नहीं बनता ।" इतिहास के पन्नों पर इस सच्चाई को खोजा जा सकता है चूँकि आदि मानव तो वनवासी का एकाकी जीवन जीता था पर जब से उसमें विवेक जागने लगा, तभी से समाज व्यवस्था का सूत्रपात हुआ ।
भारतीय संस्कृति के आदर्शानुरूप गांधी ने अहिंसक समाज के स्वरूप का चित्रण किया जिस समाज में अर्थ, काम और धर्म - तीनों की संतुलित उपासना होती है वह अहिंसक समाज कहलाता है।' इस त्रिपदी पर बने समाज का स्वरूप विशिष्ट होगा । उसमें अर्थ के अभाव - अतिभाव का साम्राज्य नहीं होता उसमें सभी को समान आर्थिक संसाधन उपलब्ध करने का अवसर मिलता है। भौतिक आकांक्षाएं पूर्ण करने का पर्याप्त अवसर सभी को रहता है । आध्यात्मिक विकास हेतु समाज का प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्र होता है। वह इच्छित धर्म को स्वीकारने में स्वतंत्र होता है । उसमें सबल और दुर्बल-सबको विकास का समान सुअवसर मिलेगा। हर स्त्री-पुरुष आत्म निर्भर होंगे। भौतिक, आर्थिक राजनैतिक विभिन्न प्रकार के संसाधनों का उपयोग सभी के सामान्य सुख के लिए होगा। सहिष्णुता और धर्म निरपेक्षता इसके आवश्यक गुण होंगे।
गांधी ने इस सच्चाई को प्रस्तुति दी कि जब समाज के लिए अहिंसा मात्र सामयिक नीति स्वरूप न होकर सिद्धांततः अपनायी जायेगी तो समाज का ढ़ांचा अधिक परिष्कृत - विकसित होगा । इसका चित्रण किया गया जब अहिंसा सिद्धांत बनकर समाज के व्यवहार में आयेगी तब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का शोषण नहीं करेगा, एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को धोखा नहीं देगा और उसके जीवन में न्याय बढ़ेगा। रिश्वत लेने या देने की बात तब नहीं रहेगी और समाज का सम्मार्जन हो जाएगा। यदि ऐसा नहीं हुआ तो अहिंसा को ललकारने वाली शक्तियां उठ खड़ी हो जायेंगी और हिंसा के बल से अर्थ, सत्ता आदि छीनने का प्रयत्न करेंगी; जिसका संकेत कम्युनिस्ट मेनिफेस्तो की अन्तिम पंक्तियों में मिलता है। कार्ल मार्क्स ने कहा- 'सर्वहारा दल ( मजदूर दल) के पास खोने को कुछ नहीं है सिवाय कि बेड़ियों के और पाने के लिए सारा संसार भरा पड़ा है.... ए दुनिया के मजदूरों ! एक हो जाओ। 87 इस कथन में एक पीड़ा का दर्शन है जो अहिंसक समाज की अनिवार्यता को प्रकट करता है।
आचार्य महाप्रज्ञ के अहिंसक समाज संबंधी विचार गांधी के विचारों की परिक्रमा के साथ मौलिकता को प्रकट करते हैं। 'अहिंसक समाज वह होता है, जिसमें संकल्पजा अथवा आक्रामक हिंसा के दरवाज़े बन्द हो जाए । जातीय उन्माद, सांप्रदायिक अभिनिवेश, शोषण, दूसरे की स्वतंत्रता
अहिंसक समाज : एक प्रारूप / 223