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का पहला प्रयोग सीख लिया है। साथ में रहने का मतलब है-सह-अस्तित्व का पहला चरण।68
आचार्य महाप्रज्ञ ने परिवार की परिभाषा की-'अनुशासन का नाम है परिवार, सहिष्णुता का नाम है परिवार, विनम्रता का नाम है परिवार, और सदाचार का नाम है परिवार और इन सबके होने पर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का नाम है परिवार। उनकी दृष्टि में सारी समस्याओं की जड़ है परिवार और सारी समस्याओं का समाधान है परिवार।' ।
बढ़ते हुए हिंसा के दौर से पारिवारिक संदर्भ भी अछूत नहीं रहा। महाप्रज्ञ की भाषा में-आज अपराध और हिंसा बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं। आतंकवाद, उग्रवाद, अलगाववाद की हिंसा थी ही, अब घरेलू हिंसा, पारिवारिक हिंसा भी बहुत बढ़ गई है। थोड़े से धन और संपत्ति की लालच में परिवारों में खूनखराबा हो जाता है। पिता की मौजूदगी में ही भाई-भाई घर का बंटवारा कर लेते हैं। मातापिता उनके आश्रित बनकर दुःख भरा जीवन जीने को विवश हो जाते हैं। यह घरेलू और पारिवारिक हिंसा कई तरह के रूपों में सामने आ रही है। दहेजहत्या, भ्रूणहत्या, आत्महत्या की घटनाएं आए दिन समाज मे घटती रहती है। यह सच्चाई है घरेलू हिंसा लगातार बढ़ रही है। इन पाँच-सात वर्षों में यात्रा के दौरान हमें स्थान-स्थान पर परिवारों के झगड़ें, मारपीट, खूनखराबे के प्रसंग सुनाई दिए। बताने की जरूरत नहीं हैं। जो समाचारपत्र रोज पढ़ते हैं, वे जानते हैं कि कोई भी दिन ऐसा नहीं जाता, जब इस तरह की हिंसा से समाचारपत्र अछूते हों।69 अपने इस मंतव्य के साथ उन्होंने इस बात को बलपूर्वक कहा कि यदि परिवार में कलह, लड़ाई-झगड़ा, रोना-रूलाना-यह सब चलता है तो उसका जीवन नारकीय जैसा बन जाता है।
शांतिपूर्ण जीवन के लिए यह जरूरी है कि व्यक्ति परिवार के साथ शांतिपूर्ण ढंग से रहे। व्यक्ति परिवार मे शांतिमय जीवन जीना चाहता है पर ऐसा कर नहीं पाता, उसके भी अनेक कारण हैं। उसमें मख्य हैं सामंजस्य शक्ति का अभाव। जो व्यक्ति दूसरे के साथ सामंजस्य स्थापित करना नहीं जानता वह परिवार में रहकर शांतिपूर्ण जीवन नहीं जी सकता। परिवार एक छोटी इकाई है। परिवार अहिंसा का एक छोटा प्रयोग है। सबसे पहला और छोटा प्रयोग कहीं करना है तो परिवार में किया जा सकता है। जो व्यक्ति परिवार में रहते हुए अहिंसा का प्रयोग नहीं करता, वह कैसा धार्मिक, कैसा अहिंसक? अनिवार्य है अनेकांत का प्रयोग परिवार में हो, जिसका हृदय है सामंजस्य बिठाना। दो विरोधी विचारों में सामंजस्य, दो विरोधी रूढ़ियों में सामंजस्य। दो भिन्न रूचियों में सामंजस्य। सामंजस्य के अभाव में छोटी बात भी लड़ाई का कारण बन जाती है। यह पारिवारिक शांति का महत्त्वपूर्ण घटक है। सामंजस्य, समझौता और व्यवस्था पक्ष का सम्यक् समाचरण महत्त्वपूर्ण है।
परिवार में अहिंसा विकास का शक्तिशाली सूत्र है-सहिष्णुता। यह सहिष्णुता अहिंसा, पारस्परिक सौहार्द और शांत सहवास का आधार बनता है। महाप्रज्ञ की भाषा में जब तक सहिष्णुता का विकास नहीं होता, तब तक शांत सहवास की कल्पना भी नहीं की जा सकती। एक दूसरे की कमजोरी और असमर्थता को सहन करना, अल्पज्ञता और मानसिक अवस्था को सहन करना, दूसरे की कठिनाई
और बीमारी को सहन करना होता है। व्यक्ति जब इन सबको सहन करता है, तब परिवार में शांति रह सकती है। सहन नहीं करता है तो अशांति ही अशांति बनी रहती है। सहिष्णुता के अभाव में आज समाज का विघटन हो रहा है, परिवार टूट रहे हैं। हिन्दुस्तान की बहुत बढ़िया प्रथा थी संयुक्त परिवार।......अहिंसा का व्यावहारिक प्रयोग था, किन्तु आज संयुक्त परिवार खोजना भी मुश्किल है। संयुक्त परिवार बहुत शक्तिशाली हुआ करता था। बड़े और एकजुट परिवार से झगड़ा मोल लेने
अहिंसा की प्रयोगशाला-परिवार | 215