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वह आवश्यकता पड़ने पर अपने भाई के हाथों, उस पर जरा भी प्रहार नहीं करते हुए मरने को तैयार रहे। हत्या या किसी दूसरे व्यक्ति पर की गई प्रत्येक चोट, चाहे वह किसी भी कारण क्यों नहीं की गई हो, मानवता के प्रति अपराध है। अहिंसावादी और उपयोगितावादी अपने रास्ते पर कई बार मिलेंगे। किंतु अन्त में ऐसा भी अवसर आयेगा, जब उन्हें अलग-अलग रास्ते पकड़ने होंगे और किसीकिसी दशा में एक-दूसरे का विरोध भी करना होगा। तर्कसंगत न रहने के लिए उपयोगितावादी अपने को कभी बलि नहीं कर सकता। परन्तु अहिंसावादी हमेशा मिट जाने को तैयार रहेगा।
अहिंसक का आदर्श महान् होता है। आचार्य महाप्रज्ञ ने अहिंसक के स्वरूप का चित्रण करते हुए लिखा-अहिंसक व्यक्ति वह है, जो किसी की हिंसा नहीं करता, अनावश्यक हिंसा नहीं करता, वह किसी को नहीं सताता, किसी का शोषण नहीं करता, किसी के साथ धोखाधड़ी नहीं करता और किसी को दुःखी नहीं करता। अपने आशय को व्रतों की कसौटी पर रखते हुए लिखा-अहिंसक का जीवन व्रतों का समवाय है। जहां एक-दो नहीं, अहिंसा-सत्य-अचौर्य- ब्रह्मचर्य-अपरिग्रह पाँचों व्रतों का एक साथ समावेश रहता है. अहिंसक में सब जीवों को आत्मतुल्य समझने की प्रज्ञा प्रकट हो जाती है यह उसका
अहिंसा पक्ष है। . अहिंसा के साथ-साथ व्यक्ति में ऋजुता प्रकट होती है। वही उसका सत्य पक्ष है।
अहिंसा से अपनी मर्यादा का विवेक जागृत होता है। इसलिए अहिंसक व्यक्ति दूसरों के स्वत्व का अपहरण नहीं करता यही उसका अचौर्य पक्ष है। अहिंसक व्यक्ति अपने इन्द्रिय और मन पर अधिकार स्थापित करता है। यही उसका
ब्रह्मचर्य पक्ष है। . अहिंसक व्यक्ति आत्मलीन रहता है। वह बाह्य वस्तुओं में आसक्त नहीं होता, यही उसका
अपरिग्रह पक्ष है। अहिंसक कौन बन सकता है? जो व्यक्ति स्व-पर के भेदभाव से ऊँचा उठा हुआ है, जिसके सामने पवित्र लक्ष्य है, जिसका आत्म-बल विकसित है और जो निर्भय है, वही अहिंसक बन सकता है। इसे और अधिक स्पष्ट करते हुए वे लिखते हैं-अहिंसक बुराई के साथ कभी भी समझौता नहीं कर सकता, इसलिए उसे जितना नम्र होना चाहिए उतना कठोर भी। 'वज्रादपि कठोराणि, मृदुनि कुसुमादपि'-यह बात अहिंसक के लिए सोलह आने सही है। कठोर किसी व्यक्ति के प्रति नहीं, अपनी वृत्तियों के प्रति हों ताकि बुराई से समझौता न करने के कारण पैदा होने वाली कठिनाइयों का दृढ़ता से सामना कर सके। कथन में अहिंसक के कोमलता-कठोरता धर्म का प्रतिपादन है। विवेक उसका निजी गुण है कि कहाँ किसका प्रयोग करे। जो प्राणियों के प्रति दंड का परित्याग कर हिंसादि पाप कर्म नहीं करता. वही अहिंसक महान अग्रन्थ अर्थात निर्ग्रन्थ कहलाता है। अर्थात मूर्छा की ग्रन्थि से मुक्त हुए बिना कोई भी अहिंसक नहीं हो सकता। अहिंसक का जीवन नियमोपनियम से युक्त आदर्श की दिशा में गतिशील रहता है।
अहिंसक का धर्म क्या है? गांधी ने समाहित करते हुए कहा-अहिंसक को आदमी की हिंसा करनी चाहिए, ऐसा कहीं नहीं लिखा है। अहिंसक के लिए तो राह सीधी है। उसे एक को बचाने के लिए दूसरे की हिंसा करनी ही नहीं चाहिए। उसे तो मात्र चरण-वंदना करनी चाहिए, सिर्फ समझाने का काम करना चाहिए इसी में उसका पुरुषार्थ है। इतना ही नहीं उसे तो अपनी सहिष्णुता की
198 / अँधेरे में उजाला