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शिक्षा में अहिंसा के विकास के लिए कोई स्थान ही नहीं है। जब तक हमारी शिक्षा में बौद्धिक व्यक्तित्व के साथ-साथ भावनात्मक व्यक्तित्व के विकास की बात नहीं जुड़ेगी, अहिंसा की बात व्यर्थ हो जाएगी। 'वर्तमान में जो शिक्षा चल रही है, उस शिक्षा में शुभत्व को और अहिंसा जैसे तत्त्वों को प्रकट करने वाली शिक्षा नहीं मिल रही है।12
वैज्ञानिक तकनीक विकास के बतौर इंटरनेट के केनवास पर आज दुनिया सिमट चुकी है। कोई भी व्यक्ति घटने वाली किसी घटना के प्रभाव से अछूता नहीं है। पूरा विश्व अशांति के दौर से गुजर रहा है। इसका प्रमुख कारण-शिक्षा प्रणाली में नजर आयेगा। प्रचलित शिक्षा प्रणाली सदोष है, त्रुटिपूर्ण है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में मनुष्य को अपने भावों पर, संवेगों पर नियंत्रण की बात नहीं कि ई जाती। परिणामतः वर्तमान यग में शिक्षा एक ढर्रा बन गई। परिणाम यह है कि जितनी ज्यादा शिक्षा-बढ़ी उतने ही अपराध बढ़ रहे हैं। पढ़े-लिखे लोग अपराध में ज्यादा दक्ष होते हैं। अपराध की वे नई-नई तकनीक विकसित कर लेते हैं। आज शिक्षा में परिवर्तन बहुत आवश्यक है। वह शिक्षा आवश्यक है, जिसमें करुणा, संवेदना की चेतना जागे और हिंसा तथा अपराध कम हों। जब तक भावात्मक शिक्षा का विकास नहीं होगा, तब तक समस्या का समाधान संभव नहीं। वर्तमान शिक्षा से अर्थ कमाने की कला तो आती है, किन्तु अच्छा जीवन जीने की कला नहीं आ पाती। जिस शिक्षा प्रणाली में अपने भावों, संवेगों और आवेगों पर नियंत्रण करने की बात नहीं सिखाई जाती वह शिक्षा प्रणाली हमेशा युद्ध और अशांति का खतरा बनाए रखती है। अन्तर्राष्ट्रीय तनाव और शस्त्रीकरण ने मानव समाज को इस सच्चाई की ओर दृष्टिपात करने के लिए विवश किया है। विवशता में स्व-वशता का सूत्र मिला-शिक्षा की प्रक्रिया को पूर्ण बनाया जाये।
शिक्षा का ध्येय शिक्षा का ध्येय है-‘सा विद्या या विमुक्तये।' जो मुक्ति के योग्य बनाये वह विद्या, बाकी सब अविद्या। इसका संदर्भ जीवनगत समस्त समस्याओं से जुड़ा है। जो व्यक्ति को समस्याओं से ऊपर उठने की कला न सीखा पाये वह शिक्षा अपने मौलिक गौरव को नहीं पा सकती। अतः गांधी की दृष्टि में जो चित्त की शुद्धि न करे, मन और इन्द्रियों को वश में रखना न सिखाये, निर्भयता और स्वावलंबन पैदा न करे, निर्वाह का साधन न बताये और गुलामी से छूटने और आजाद रहने का हौसला और सामर्थ्य न उपजाये उस शिक्षा में चाहे जितनी जानकारी का खजाना, तार्किक कुशलता और भाषापांडित्य मौजूद हो वह शिक्षा नहीं है या अधूरी शिक्षा है। उनकी दृष्टि में सच्ची शिक्षा विद्यार्थी को पूर्णता प्रदान करती है। अधूरी शिक्षा से विद्यार्थी केवल पुस्तकीय शब्दार्थ ज्ञान तो हासिल कर लेता है पर जीवन के हर मोड़ पर सामंजस्य की कला नहीं सीख पाता। ‘पाल माल गजग' के लेखक को उद्धृत करते हुए लिखा 'हम जानते हैं कि सच्ची शिक्षा का अर्थ पुरानी या वर्तमान पुस्तकों का ज्ञान प्राप्त करना ही नहीं है। सच्ची शिक्षा वातावरण में है; आसपास की परिस्थितियों; और साथसंगति में, जिससे जाने-अनजाने हम आदतें ग्रहण करते हैं, तथा खासकर काम में है। बृद्धि पूर्वक किया जानेवाला श्रम ही सच्ची प्राथमिक शिक्षा है।"
__ स्पष्टीकरण में गांधी ने लिखा-शिक्षा में जो दृष्टि पैदा करनी है वह परस्पर के नित्य सम्बन्ध की है। जहां वातावरण अहिंसा रूपी प्राणवायु के जरिये स्वच्छ और सुगंधित हो चुका है, वहां पर विद्यार्थी और विद्यार्थिनियां सगे भाई-बहन के समान विचरती होंगी, वहां विद्यार्थियों और अध्यापकों
अहिंसा की मूल इकाई : व्यक्ति / 203