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शिक्षा का आश्रमी आदर्श नवीनता और प्राचीनता के संगम का प्रतीक है। शिक्षा के बारे में गांधी की जो मान्यतायें थीं उनका चित्रण उन्होंने अपनी भाषा में किया है।*
तालीम की महत्त्वपूर्ण निष्पत्तियाँ होगी-आत्म-निर्भरता और श्रमनिष्ठा का मूल्यबोध। गांधी का शिक्षा संबंधी चिंतन बहुआयामी था। उसमें धार्मिक शिक्षण का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है-'अगर हिन्दुस्तान को आध्यात्मिकता का दिवाला नहीं निकालना है, तो उसे धार्मिक शिक्षा को भी विषयों के शिक्षण के बराबर ही महत्त्व देना पड़ेगा।' उनका अभिमत था कि धार्मिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में अपने सिवा दूसरे धर्मों के सिद्धान्तों का अध्ययन भी शामिल होना चाहिये। इसके लिए विद्यार्थियों को ऐसी तालीम दी जानी चाहिये, जिससे वे संसार के विभिन्न महान धर्मों के सिद्धान्तों को आदर और उदारतापूर्ण सहनशीलता की भावना रखकर समझने और उनकी कदर करने की आदत डालें। इससे आध्यात्मिक निष्ठा दृढ़ होगी और स्वीकृत धर्म को गहराई से समझने की दृष्टि पैदा होगी। बापू के विचारों को वर्तमान के संदर्भ में आचार्य महाप्रज्ञ ने नया आयाम देते हुए जीवन-विज्ञान का अभिनव प्रकल्प दिया। जो शिक्षा को सर्वांगीण और समाधायक बनाने की क्षमता रखता है।
जीवन-विज्ञान शिक्षा के क्षेत्र में अहिंसा का प्रयोग है। शिक्षा के साथ-साथ विद्यार्थी में अहिंसा का संस्कार निर्मित होना चाहिए। यदि बौद्धिकता के साथ अहिंसा की चेतना नहीं जागती है तो उसका सब से पहले दुरूपयोग अपने प्रति होता है। इस स्थिति से उबारने की प्रविधि का नाम है जीवन-विज्ञान। यह मस्तिष्क को प्रशिक्षित करने की प्रयोग पद्धति है। इसके द्वारा पुरानी आदतों को बदला जा सकता है। उनमें कांटछांट की जा सकती है और नई आदतों का निर्माण किया जा सकता है। इससे ऐसी पीढ़ी का निर्माण हो सकता है, जिसका अपने आवेशों पर नियंत्रण होता है, मानसिक एकाग्रता, मानसिक संतुलन और संकल्पशक्ति का विकास होता है। चरित्र का विकास उसका फलित है, इसलिए एक शब्द में कहा जा सकता है-चरित्रवान पीढ़ी का निर्माण। लक्ष्य की पूर्ति में मुख्य रूप से चेतना के रूपान्तरण पर बल दिया गया। जब तक मस्तिष्क का प्रशिक्षण नहीं होता, तब तक चेतना का रूपान्तरण घटित नहीं होता। हिंसा का मूल उपादान है व्यक्ति का मस्तिष्क। उसे बदले बिना अहिंसा की स्थापना नहीं की जा सकती। जब तक मस्तिष्क को प्रशिक्षित नहीं किया जाता तब तक अहिंसक समाज रचना की बात सार्थक नहीं हो सकती। न ही राष्ट्रीय एकता का सपना साकार हो सकता है। जीवन विज्ञान मस्तिष्क प्रशिक्षण का अभिनव प्रयोग है। इसके सार्थक परिणाम निकले हैं।
__ मानव मस्तिष्क भावों का उत्पत्ति केन्द्र है। रूसी वैज्ञानिक प्रोफेसर आरोन बेल्कीन ने बताया-हमारे मस्तिष्क में तीन सौ 'न्यूरोपेप्टाइड' हार्मोन्स पैदा होते हैं। बेल्कीन की धारणा है-प्रत्येक विचार के साथ एक न्यूरो पेप्टाइड हार्मोन्स पैदा हो जाता है। इसका अर्थ है-जितने विचार हैं उतने ही न्यूरो पेप्टाइड हार्मोन्स बनते हैं। बेल्कीन ने यह मान लिया-जैसी अन्तःस्रावी ग्रंथियां होती हैं वैसी ही मस्तिष्क एक बहुत बड़ी अन्तःस्रावी ग्रन्थि है, जो इतने रसायनों को पैदा करता है। वे रसायन हमें प्रभावित करते है। महाप्रज्ञ ने बताया हमारे मस्तिष्क के दो पटल हैं-'दायां पटल और बायां। जो बायां पटल है वह भाषा, गणित, तर्क आदि के लिए जिम्मेवार है। जो दायां पटल है, वह अनुशासन, चरित्र, अध्यात्म, अन्तर्दृष्टि आदि के लिए जिम्मेदार है।' दोनों पटलों के समुचित विकास से वांछित व्यक्तित्व का निर्माण किया जा सकता है। * परिशिष्ट : 3
अहिंसा की मूल इकाई : व्यक्ति । 207