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आकर परिवेश को प्रदूषित बनाती है। यह व्यक्ति की अपने प्रति होने वाली हिंसा जब तक नहीं रुकेगी वह अहिंसक बन नहीं सकता। अगर अहिंसा का विकास नहीं है तो अकेला व्यक्ति भी सुख से नहीं रह सकता। आदमी केवल दूसरों की हिंसा नहीं करता। हर व्यक्ति अपने नकारात्मक चिंतन, विचार और भाव के कारण डिप्रेशन में चला जाता है, तनाव से भर जाता है और आत्महत्या कर लेता है। अहिंसा का सबसे पहला सूत्र है कि व्यक्तिगत जीवन में आदमी आनंद के साथ जीए।" अतः अहिंसा की शुरुआत व्यक्ति को अपने से ही करनी होगी। यह तभी संभव है जब व्यक्ति इस ओर न केवल अपना ध्यान ही केन्द्रित करे अपितु अपनी शक्ति को भी नियोजित करें।
प्रत्येक व्यक्ति अपनी खुद की हिंसा से बचें इस हेतु आचार्य महाप्रज्ञ का मौलिक चिंतन है-व्यक्ति अहिंसा का प्रारंभ सर्वप्रथम अपने आप से करे। अपने भीतर जो वृत्तियां हैं उनका परिष्कार करे। हम अनावश्यक हिंसा से बचें। मन के द्वारा होने वाली गलत प्रवृत्ति अनावश्यक हिंसा का बहुत बड़ा कारण है। इस अनावश्यक हिंसा को रोकने के लिए अपनी वृत्तियों का शोधन करना नितान्त आवश्यक है। उसका प्रारम्भ व्यक्ति दूसरों की बजाय अपने सधार की बात, अहिंसा की बात समझ लेता है तो क्रान्ति घटित हो सकती है। इस हेतु मनुष्य के मस्तिष्क में जो अनावश्यक हिंसा का तंत्र हैं, प्रकोष्ठ है, उसे ठीक किया जाए। प्रशिक्षण एवं योग से यह रूपान्तरण घटित किया जा सकता है। उन्होंने व्यक्ति के भीतर निहित अहिंसा के विकास की पर्याप्त संभावनाओं को भी प्रकट किया है। अहिंसा की प्रचण्ड शक्ति शक्ति वह होती है जो स्थिति में परिवर्तन लाये। अहिंसा ने अनेक परिस्थितियों में अपनी शक्ति को प्रकट किया है। जिसे अहिंसा की असीम शक्ति में विश्वास होता है उन्हें दुनिया की कोई परिस्थिति रोक नहीं सकती। अहिंसा शक्ति के संबंध में गांधी का अभिमत रहा-अहिंसा तो मानव के पास ऐसी प्रबल शक्ति है कि जिसका कोई पार नहीं। मनुष्य की बुद्धि ने संसार के जो प्रचण्ड अस्त्र बनाये हैं उससे भी प्रचण्ड यह अहिंसा की शक्ति है। इस शक्ति का दूसरा विकल्प नहीं। अहिंसा प्राणी का निजीगुण है इसे प्रकट करते हुए गांधी कहते हैं-अहिंसा आत्मा का बल है। आत्मबल के सामने तलवार का बल तृणवत् है। तलवार का उपयोग करके आत्मा शरीरवत् बनती है। अहिंसा का उपयोग करके आत्मा आत्मवत् बनती है।
आत्मिक शक्ति के आधार पर ही गांधी का यह दृढ़ विश्वास था कि जिसने शूरवीरों की अहिंसा का शस्त्र लिया है, वह अकेले सारे संसार की प्रबल शक्तियों का एकसाथ सामना कर सकता है। क्योंकि निःशस्त्र अहिंसा की शक्ति हर समय शस्त्रबल की अपेक्षा बहुत ऊँची है। इस विशिष्ट शक्ति का अनुभव जिस व्यक्ति ने किया है वही यह जान सकता है कि अहिंसा के हथियार से एक स्त्री या बालक भी हर किसी हथियार धारी दानव का सामना कर सकता है। अतः बहादरों की अहिंसा के समान दुनिया में दूसरी कोई सच्ची शक्ति नहीं है। व्यक्ति अपने जीवन में इसका चाहे जितना विकास कर सकता है। अपने जीवन में बहादुरों की अहिंसा का विकास करने की ख्वाहिश रखने वाले आदमी को सबसे पहले अपने मन से या विचारों से कम-से-कम बुजदिली का मैल धो डालना चाहिए। मसलन अहिंसा की आराधना करने वाला अपने बड़े अफसर की धाक से दब नहीं जायेगा और न उस पर गुस्सा ही करेगा। साथ ही वह अपनी ज्यादा से ज्यादा आमदनी वाली जगह को छोड़ने के लिए भी तैयार रहेगा। गांधी की दृष्टि में बुजदिल व्यक्ति अहिंसा की आराधना नहीं कर सकता।
192 / अँधेरे में उजाला