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परिवर्तन एवं नव निर्माण
अप्राप्य को पाने, अज्ञेय को ज्ञेय बनाने के लिए बालक की चेतना चंचल हो उठी। संन्यास स्वीकरण की भावना बलवती बन गई। सांसारिक दुःखों की शृंखलायें तोड़ने के लिए समुद्यत बालक 'नथमल ' किशोरावस्था के ग्यारहवें बसंत (101⁄2 वर्ष की उम्र ) में जन्म प्रदात्री माता के साथ माघ शुक्ला दसमी, वि.सं0 1987 को पूज्यपाद अष्टमाचार्य कालूगणीराज के करकमलों से दीक्षित हो गया । संयम जीवन का वरदान मिलते ही अभिनव भाग्योदय का रवि उदित हो गया । पूज्यपाद - संयम प्रदाता के साथ जैसे ही नव दीक्षित बालमुनि स्थान पर आये, आदेश मिला - 'तुम तुलसी के पास जाओ, वहीं तुम्हारी शिक्षा-दीक्षा होगी।' गुरु का यह आदेश मुनि 'नथमल' की संयम - यात्रा का शुभ शकुन था । निश्चित रूप से मुनि तुलसी की छत्रछाया में नव जीवन यात्रा की शुरुआत भावी विकास की प्रतीक थी ।
दीक्षा गुरू का वरद् हस्त
निर्माण की सरणी पर आरूढ़ जीवन नाना परिस्थितियों से गुजरता है । प्रत्येक स्थिति अपने पदचाप छोड़ जाती है । यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि स्नेहिल वातावरण में बालक के क्षमता विकास की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं । ताड़ना में क्षमताएँ कुंठित हो जाती हैं । ताड़ना परिस्थिति विशेष में होने वाली विवशता है । स्नेह मनुष्य का नैसर्गिक गुण है। स्नेह की भावना के साथ जल का सिंचन पा एक पौधा भी लहलहा उठता है तब मनुष्य की बात ही क्या ! इस संदर्भ में महाप्रज्ञ ने खुद को कसौटी पर कसते हुए कहा- 'मैंने ताड़ना बहुत कम पायी और स्नेह बहुत अधिक पाया । विकास का निमित्त पाने में मैं सचमुच सौभाग्यशाली हूँ ।' विशेष रूप से आचार्य कालूगणी की करुणापूरित दृष्टि पाकर बाल मुनि का अनवरत विकास प्रशस्त होता गया ।
महाप्रज्ञ ने इस तथ्य की पुष्टि की; ‘पूज्य कालूगणी का मेरे पर असीम उपकार रहा है। उन्होंने संयम जीवन प्रदान किया। उनका वात्सल्य, स्नेह और कृपा मेरे जीवन निर्माण में महत्त्वपूर्ण रही है ।' यह भी अनुभव रहा कि बिना ताड़ना तर्जना, आंतरिक भावनाओं को समझते हुए बाल शिष्यों का सम्यक् निर्माण करना कालूगणीराज की विरल विशेषता थी । स्नेहिल - करुणादृष्टि से सुगम अनुशासन शैली व्यक्तित्व का निर्माण करना अद्भुत कला है। मनोवैज्ञानिक तरीके से खामियों का परिष्कार करते हुए व्यक्तित्व का उचित निर्माण करना बड़ा दुरूह कार्य है पर, कालूगणीराज इसमें बड़े दक्ष थे। बाल सुलभ चपलतावश अकारण हास्य कोई बड़ी खामी नहीं पर जीवन निर्माण की दृष्टि से यह कमजोर पक्ष भी है। बाल मुनि 'नथमल' अपने संगी-साथी हमउम्र मुनियों के साथ यदा-कदा
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