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ने 10 जून 1969 को कहा था - 'नथमल में जो विकास हुआ है, वह पढ़ने से नहीं, साधना से हुआ है । मन की निर्मलता सत्य तक पहुँचा सकती है, अक्षर ज्ञान नहीं' 8 महाप्रज्ञ की अन्तर्दृष्टि ने विकास के नये क्षितिज उद्घाटित किये और मानवता को उपकृत करने में अहं भूमिका निभाई है। महाप्रज्ञ के अकूत विकास में अन्तर्दृष्टि की अनन्य भूमिका रही है। इससे प्रेरित हो अनेक साधकों ने स्वभूमिका पर आत्मशक्ति जागरण की दिशा को प्रशस्त बनाया है।
योग स्फुरणा : आदि स्रोत / 177