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जिम्मेदारी मुझ पर रही है। मगर अब, जबकि उनमें और मुझमें मौलिक अंतर पाये गये, मैं ऐसा नहीं कर सकता था। 85 बापू का यह निर्णय सुनकर कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य अपने को बेसहारा महसूस करने लगे। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की ओर से पंडित जवाहरलाल ने प्रस्ताव पेश किया। प्रस्ताव में यह लिखा गया- 'भारत की स्वाधीनता के अटल अधिकारी का समर्थन करने के उद्देश्य से अहिंसात्मक तरीके से, और देशव्यापी पैमाने पर विशाल संघर्ष चालू करने की स्वीकृति देने का निश्चय करती है, जिससे देश में गत बाईस वर्षों के शांति पूर्ण संग्राम में संचित की गयी समस्त अहिंसात्मक शक्ति का उपयोग हो सके। यह संग्राम गांधीजी के नेतृत्व में होगा। यह कमेटी उनसे प्रार्थना करती है कि वे प्रस्तावित कार्यवाहियों में राष्ट्र का नेतृत्व करें। 187 गांधी ने इस जनादेश का सम्मान करते हुए आजादी की लड़ाई के नेतृत्व का सेवक बनकर बीड़ा उठाया। जनता से आग्रह किया कि कोई किसी के प्रति मन में वैर और द्वेष भाव न रखे, सभी के प्रति प्रेम और सहानुभूति पूर्ण बर्ताव करें। हमेशा सत्य मार्ग पर दृढ़ रहे। जो बीड़ा हमने उठाया है, उसे पूरी लगन के साथ पूरा करें, ताकि न केवल इस देश में, अपितु समस्त विश्व में शाश्वत शांति और न्याय की मिशाल कायम हो सके।
गांधी ने हर एक हिन्दुस्तानी से कहा वह अपने को आजाद समझे। लड़ाई छिड़ने पर संभवतः मार्गदर्शन के लिए कोई नेता बाहर नहीं रहेंगे। इसलिए उनको ही अपना नेता बनकर अपनी जिम्मेदारी को समझकर अपना कार्यक्रम बनाकर युद्ध को चलाना होगा। देश का वातावरण गरम हो गया। गांधी ने इस तथ्य को प्रकट किया कि अहिंसा को कांग्रेस ने आज तक चलाया है उससे अबकी अहिंसा बिल्कुल अलग किस्म की है। मगर यही सच्ची अहिंसा है, और यही जगत् को तबाही से बचा सकती है। अगर हिन्दुस्तान जगत् को अहिंसा का संदेश न दे सका तो यह तबाही आज या कल आने ही वाली है और कल के बदले आज इसके आने की सम्भावना अधिक है। जगत् युद्ध के शाप से बचना चाहता है पर कैसे बचे इसका उसे पता नहीं चलता। यह चाबी हिन्दस्तान के हाथ में है। अपनी आन्तरिक आस्था को प्रकट किया-जिसने शूरवीर की अहिंसा का शस्त्र लिया है वह अकेले सारे दुनिया की जबरदस्त-से-जबरदस्त ताकतों का एक साथ मुकाबला कर सकता है।
हर एक कांग्रेस वालों को अपने दिल से पूछना चाहिए कि क्या उनमें शूरवीर की अहिंसा को अपनाने की हिम्मत है? आदर्श स्थिति को पाने के लिए किसी चीज की जरूरत नहीं है सिवाय इसके कि अपने ध्येय के खातिर अपना तन-मन-धन खतरे में डालने की उनकी तैयारी हो। उन्होंने देश वासियों को स्वच्छ मानसिकता के निर्माण हेतु आगाह किया कि अगर कोई अकल्पित बात हुई तो अहिंसा के लिए दो मार्ग खुले हैं। एक, आक्रमणकारी का अधिकार हो जाने देना, किन्तु उसके साथ सहयोग न करना। इस प्रकार फर्ज कीजिए कि निरोका आधुनिक प्रतिरूप भारत पर आक्रमण करे, जो राज्य के प्रतिनिधि उसे अन्दर आ जाने देंगे, लेकिन उससे कह देंगे कि जनता से उसे किसी प्रकार की सहायता नहीं मिलेगी। वह आत्म समर्पण के बजाय मर जाना पंसद करेगी। दसरा तरीका यह है कि जिन लोगों ने अहिंसा की पद्धति से शिक्षा पाई है, उनके द्वारा अहिंसात्मक मुकाबला किया जाता है। वे निहत्थे ही आगे आकर आक्रमणकारी की तोपों की खाद्य सामग्री बनेंगे।
आत्म विश्वास के साथ गांधी ने कहा-मेरी आज भी वही ज्वलंत श्रद्धा है कि संसार के समस्त देशों में भारत ही एक ऐसा देश है जो अहिंसा की कला सीख सकता है और अब भी वह इस कसौटी पर कसा जाये तो संभवतः ऐसे हजारों स्त्री पुरुष मिल जायेंगे, जो अपने उत्पीड़कों के प्रति
महात्मा गांधी का अहिंसा में योगदान / 89