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थोकी 'ऑन सिविल डिसओबीडियेन्स' ( On Civil Disobedience) से निष्क्रिय प्रतिरोध एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के विचार प्रबल बनाये ।
टॉल्स्टॉय की पुस्तक 'बैकुंठ तुम्हारे हृदय में' (The Kingdom of God is within you) से अहिंसा संबंधी विचारधारा को पुष्ट बनाया। इसके अतिरिक्त 'गास्पिल्स इन ब्रीफ' (Gospils in Brief) संक्षिप्त दैवीय संदेश । व्हाट टू डू ? ( What to dow) आदि पुस्तकों का इतना प्रभाव पड़ा कि टॉल्स्टॉय की आश्रम - संस्कृति एवं जीवन-पद्धति का गांधी ने अनुकरण किया। प्रारंभ में दक्षिणी अफ्रीका और बाद में भारत में विभिन्न आश्रमों की स्थापना की ।
क्ने द्वारा बतलाये गये पानी के उत्तम उपचार भी गांधी ने अपनाये । इससे प्रकट है कि उनमें दूसरों के विचारों और आदर्शों में समरस होने की कला थी जिसकी बदौलत उन्होंने अनेक विचारकों से भी सीखा। ऐसी अनेक रचनाएं एवं विचारक जिसकी छाप उन पर पड़ी। उन सब में प्रथम कोटि के प्रभाव का जिक्र भी किया जिसका स्वतंत्र रूप से उल्लेख किया गया है ।
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जुस्टकी 'रिटर्न टू नेचर' पढ़कर उन्होंने प्राकृतिक उपचार बीमारी की रोकथाम हेतु अपनाये, संपर्क में आने वालों को अपनाने की सलाह दी। मिट्टी का प्रयोग कब्ज से राहत पाने, फोड़े-फुंसी को ठीक करने एवं सख्त बुखार टाइफाइड में इसका प्रयोग करते । गांधी ने लिखा 'बिच्छू के डंक पर भी मैंने मिट्ठी का खूब प्रयोग किया है । सेवाग्राम में बिच्छू का उपद्रव आये दिन की बात हो गयी है ।'
'अनटू दिस लास्ट'
अपनी आत्मकथा में लिखा- मेरे जीवन में तत्काल महत्त्व के रचनात्मक परिवर्तन कराये वह 'अनटू दिस लास्ट' ही कही जा सकती है । बाद में मैंने उसका गुजराती अनुवाद किया और वह 'सर्वोदय' के नाम से छपा। मेरा यह विश्वास है कि जो चीज मेरे अन्दर गहराइयों में छिपी पड़ी थी, रस्किन के ग्रंथरत्न में मैंने उसका स्पष्ट प्रतिबिंब देखा और इस कारण उसने मुझ पर अपना साम्राज्य जमाया और मुझसे उसमें दिये गए विचारों पर अमल करवाया ।....गांधी के शब्दों में- मैं सर्वोदय के सिद्धान्तों को इस प्रकर समझा हूं
सबकी भलाई में हमारी भलाई निहित है ।
वकील और नाई दोनों के काम की कीमत एकसी होनी चाहिये, क्योंकि आजीविका का अधिकार सबको एक समान है।
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सादा- मेहनत-मजदूरी का, किसान का जीवन ही सच्चा जीवन है ।
पहली चीज मैं जानता था । दूसरी को मैं धुंधले रूप में देखता था। तीसरी का मैंने कभी विचार ही नहीं किया । 'सर्वोदय' ने मुझे दीये की तरह दिखा दिया कि पहली चीज में दूसरी दोनों चीजें समायी हुई हैं । सवेरा हुआ और मैं इन सिद्धांतों पर अमल करने के प्रयत्न में लगा ।" जाहिर है इस रचना ने उनके जीवन पर जादुई क्रांतिकारी परिवर्तन घटित किया । मिस्टर पोलाक से मिली पुस्तक पूरी पढ़े बिना छोड़ न सके और रातभर क्रियान्विति के विचार में नींद नहीं आयी। वाकई में यह पुस्तक उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट बनी । पुस्तकीय विचारों की क्रियान्विति का प्रत्यक्ष उदाहरण 'फिनिक्स संस्था' की स्थापना में देखा गया ।
एक और स्रोत / 149