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एक
और स्रोत
गांधी का जीवन आलोकमय आदर्श का प्रतीक है। वे जहां भी, जिस स्थिति से गुजरे प्रेरणा संजोते गये। फिर चाहे दर्शन का क्षेत्र हो, धर्म का विषय हो अथवा सामाजिक परिस्थिति का संदर्भ हो। उन्हें प्रत्येक क्षेत्र में सीखने के लिए, अपनाने के लिए यत् किंचित् मिल ही जाता।
साहित्य गांधी के उन्नत विचारों की पृष्ठभूमि में जीवन संपदा को समृद्ध बनाने में साहित्य की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। उनका साहित्य लगाव, स्वाध्याय प्रियता उन्नत विचारों को बनाने में योगभूत बना। इस युग में अच्छी पुस्तकें कुछ हद तक सत्संग की कमी पूरी करती हैं। जो व्यक्ति जीवन के प्रत्येक क्षण में सुखभोग करने की इच्छा रखते हों, उन्हें अच्छी पुस्तकें पढ़ने की आदत डालनी चाहिए। गांधी ने अपने जीवन में स्वाध्याय प्रेम से जो सीखा, प्रेरणाएँ संजोयी और हृदय में स्थान दिया, उसका दूसरा कोई शानी नहीं है। __ स्वाध्यायशीलता का चित्रण करते हुए लिखा-'गांधीजी का ज्ञान पिपासु मन वेद, उपनिषद्, गीता, वेदांत तथा प्रौढ़ धार्मिक ग्रन्थों के स्वाध्याय में लीन हो जाता। उन्हें राम, तुलसी, सूर, मीरा, नरसी मेहता की युक्तिपूर्ण रचनाएं, ईसाई तथा मुस्लिम धर्म में भक्तिपूर्ण उपदेश अत्यन्त प्रिय थे।' विभिन्न भारतीय धर्म-दर्शनों का स्वाध्याय उनका प्रिय विषय था। स्वाध्याय समुद्र में गोता लगाते समय उनको अनेक प्रेरणास्पद विचार रूपी हीरे जवाहरात मिले जो उनके लिए पथदर्शक बनें। गांधी ने सघन-सक्रिय-स्वाध्याय क्रम दक्षिण अफ्रीका में प्रिटोरिया की जेल में बनाया उससे उनको बड़ी खुराक मिली। पुस्तकें-अंग्रेजी, हिन्दी, गुजराती, संस्कृत और तमिल भाषाओं की थी। पाश्चात्य विद्वान यूनानी विचारक सुकरात की सत्य खोज की प्रवृत्ति तथा सत्य के लिए प्राणोत्सर्ग की घटना से गांधी अत्यधिक प्रभावित थे। वे सुकरात को एक महान् सत्याग्रही मानते थे। साथ ही वे प्राचीन चीनी विचारक लाओत्से तथा कन्फ्यूशियस की नैतिक शिक्षाओं से भी प्रभावित थे।
गांधी के हृदय को आधुनिक युग के पाश्चात्य लेखक-विद्वानों ने भी प्रभावित किया। उदाहरण के तौर पर. जॉन रस्किन की 'अन्टू दिस लास्ट' (Unto This Last) से श्रम की सार्थकता-समानता
का विचार ग्रहण किया।
148 / अँधेरे में उजाला