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अहिंसा यात्रा नायक ने मुंबई आने का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा-'भ्रष्टाचार को मिटाना सरकार का काम है। हमारा एकमात्र काम तो भीतर की चेतना को जगाने का है। हम परिवर्तन की बात नहीं करते, रूपांतरण की बात करते हैं। भ्रष्टाचार को मिटाने लिए केवल ऊपर-ऊपर काम
रने से नहीं चलेगा। अपितु जड़ तक जाना पड़ेगा। चेतना को परिवर्तन करने का काम जड़ का काम है।'237 इसकी संपूर्ति में आचार्य महाप्रज्ञ ने विभिन्न क्षेत्रों के पदाधिकारियों से वार्तालाप किया, संपर्क साधा। नामों की लम्बी सूचि है। अनेक महानुभावों ने अहिंसा यात्रा मिशन को समझा, मानवता के नाम कुछ नया करने का संकल्प भी संजोया। एक वाक्य में देश की आर्थिक महानगरी में अहिंसा यात्रा के प्रवास से मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा को बल मिला। विमलमूर्ति युवाचार्य महाश्रमण (आचार्य महाश्रमण) जी ने मुंबई के अनेक क्षेत्रों में स्वतंत्र विहरण कर अहिंसा यात्रा की कड़ी से संपूर्ण मुंबई को जोड़ा। सूरत (गुजरात) में अहिंसा यात्रा अहिंसा-शांति, सांप्रदायिक सद्भावना की मिसाल कायम करते हुए अहिंसा यात्रा का कारवाँ हीरों की नगरी सूरत पहुँचा। हीरों की चमक में चुंधियाये मानव को आंतरिक चमक का एहसास कैसे हो? इस सत्य को समझाने में आचार्य महाप्रज्ञ ने अपनी शक्ति को नियोजित कर व्यापक प्रयत्न किया। जिसके सकारात्मक परिणाम अहमदाबाद, मुंबई में अनुभव किये गये। सूरत एक महानगर है। इसमें अनेक उपनगर हैं। एक-एक उपनगर ही अपने आपमें नगर जैसी प्रतीति करवाते हैं। इस विशाल नगर में अहिंसा की रश्मियों को फैलाने का महान संकल्प संजोकर ही अनुशास्ता पधारे।
सूरत की सीमा में प्रवेश करते ही प्रथम उदबोधन में ही आचार्य महाप्रज्ञ ने लोगों की चेतना को जगाते हुए कहा-हमारी भक्ति में आप जितना उत्साह दिखाते हैं इतना और ऐसा ही उत्साह अपने दैनिक जीवन, खानपान, आजीविका तथा दिनचर्या में भी दिखाएं तो जीवन का कयाकल्प हो सकता है। ध्यान रहे-धर्म की कसौटी धर्म स्थान नहीं बाजार, दुकान और ऑफिस में होती है। मैं धर्म की उपासना को महत्व देता हूँ, किन्तु नैतिकता शून्य धर्म की उपासना को महत्व नहीं देता।
बहुत सारे लोग मुझसे आशीर्वाद चाहते हैं। पर केवल आशीर्वाद चाहने से क्या होगा जबकि आत्मशुद्धि नहीं। आत्मशुद्धि के अभाव में आशीर्वाद भी फलदायी नहीं होता। सूरत के प्रवेश द्वार पर मैं सबसे यही कहना चाहूँगा कि इस शहर से अनैतिकता की सफाई कर दी जाए। अनैतिकता का कचरा कहीं रह न जाए। आज सफाई की दृष्टि से सूरत की मिशाल दी जाती है। पर यहाँ नैतिक मूल्यों का इतना विकास हो कि लोगों में किसी प्रकार की अप्रमाणिकता, हिंसा आतंक न रहे। इसी में हमारे चातुर्मास की सफलता है।38
इस अवसर पर यह भी कहा-'सूरत केवल व्यापार के लिए ही प्रसिद्धि नहीं पाये अपितु ईमानदारी के लिए भी प्रसिद्धि पाये, केवल बाहरी स्वच्छता के लिए ही प्रसिद्धि नहीं पाये आंतरिक स्वच्छता के लिए भी प्रसिद्धि पाये, केवल बड़ी-बड़ी इमारतों का शहर ही नहीं बनें अपितु यहाँ की झोंपड़ पट्टी में भी विकास की ज्योति जले।' इस भावना के अनुरूप अणुव्रत समिति सूरत के कार्यकर्ताओं ने पोश लोगों की बस्ती सिटी लाइट में भव्य तेरापंथ भवन के पास बसी पनास झोपड़पट्टी के विकास की योजना बनाई। स्वच्छता, स्वस्थता, शिक्षा, व्यसनमुक्ति तथा रोजगार की दृष्टि से उन्नति पर ध्यान दिया गया। अपनी सीमा में कार्य गतिशील बना।
114 / अँधेरे में उजाला