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रामायण श्रीमद्भागवत्गीता के अनन्तर यदि कोई गांधी के लिए प्रेरणा स्रोत हिंदू ग्रंथ बना तो वह रामायण है। उन्होंने रामायण से मर्यादा एवं सदाचारपूर्ण जीवन तथा रामराज्य के आदर्श की प्रेरणा प्राप्त की। तुलसीदास की रामायण उनके लिए शाश्वत प्रेरणा का स्रोत थी और उनकी प्रार्थनाओं में उसे भगवद्गीताजैसा ही स्थान प्राप्त था। एक मंत्र उनकी जुबान पर रहता था, अतः उनका मंत्र कहा जाता है
'जड़ चेतन गुण दोष मय, विश्व कीन्ह करतार ।
संत हंस गुन गहहिं पय, परिहरि वारि विकार॥29 ऐसे ही रामायण के अनेक दोहे गांधी के लिए आदर्श थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा-'तुलसीदास की रामायण को मैं भक्तिमार्ग का सर्वोत्तम ग्रंथ मानता हूँ।'
रामायण के नायक श्री राम गांधी की दृष्टि में व्यक्ति नहीं अलौकिक दिव्य शक्ति के प्रतीक थे। उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को सदैव आदर्श के रूप में देखा। श्री राम उनके लिए श्रद्धा के प्रतीक थे। उसका साक्षी है 'राम' नाम का जप। 'बापू के पास एक माला हमेशा रहती थी। सोने के पूर्व लेटे-लेटे 'राम' नाम के साथ उसको भी फेर लेते थे। जप और भक्ति परम्परावश या आदतन राम की ही किया करते थे। इस प्रकार 'राम' और रामायण गांधी की भक्ति का आधार एवं प्रेरणा प्रदीप बनें। प्रार्थना श्रद्धा और भक्ति की अभिव्यक्ति का अमोघ साधन है प्रार्थना। इष्ट के गुणों का स्मरण-संकीर्तन दिव्य जीवन की प्रेरणा का आधार है। इससे प्रार्थी के भीतर यथेष्ट शक्ति का संचार होता है। गांधी प्रार्थना को बहुत महत्त्व देते थे, इसका संवादी कथन है-'प्रार्थना मेरे जीवन का ध्रुवतारा है। एक बार मैं भोजन करना छोड़ सकता हूँ, किंतु प्रार्थना नहीं। आत्मा को परमात्मा में लीन करने का एक मात्र साधन प्रार्थना है।' स्पष्टतया उनकी आत्मा, परमात्मा और भक्ति में अटूट आस्था थी। वे कुछ पदों का प्रतिदिन पाठ करते थे उसके प्रमुख अंश निम्न हैं
'हरि ओम् ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्चजगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्य स्विद्धनम्॥' अर्थात् सब ईश्वर रूप है। उसका है। इसलिए तेरा कुछ नहीं है। और है भी। लेकिन इस झंझट में भी तू क्यों फंसता है? सब छोड़ तो सब तेरा ही है। अगर कुछ भी तेरा मानेगा, तो तेरे हाथ में कुछ भी नहीं रहेगा। किसी के धन की वासना न कर।
कुर्वत्रेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः। परोपकार के काम करते-करते ही सौ वर्ष जीने की इच्छा करनी चाहिए।
यस्तु सर्वाणि भूतानि आत्मन्येवानुपश्यति। सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न विजिगुप्सते॥
140 / अँधेरे में उजाला