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दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह आंदोलन के प्रारंभिक दिनों में गांधी ने पहला पत्र टॉल्स्टॉय को समस्या-समाधानार्थ परामर्श के बतौर लिखा। पत्रोत्तर ने उनके आंदोलन को प्रोत्साहित किया। 1910 ई. में गांधी ने अपनी पुस्तक 'हिन्द स्वराज' और 'होमरूल' टॉल्स्टॉय को भेजी जिसको टॉल्स्टॉय ने काफी महत्त्वपूर्ण बतलाया।
अगस्त 1915 ई. में गांधी ने पुनः टॉल्स्टाय को एक पत्र लिखा जिसका प्रत्युत्तर टॉल्स्टॉय ने विस्तार पूर्वक लिखा जो टॉल्स्टॉय की मृत्यु के कुछ सप्ताह पूर्व मिला, जिसका कुछ अंश है-मैंने एक लम्बी जिंदगी व्यतीत की और जब मृत्यु के अत्यंत निकट हूँ तब दूसरों को बताना चाहता हूं वह 'पेसिव रेसिन्टेन्स'। यह शांति पूर्ण प्रतिरोध प्रेम के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। यह पत्र प्रेम है जो गलत व्याख्याओं से विस्तृत नहीं हुआ है, यह प्रेम के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। यह प्रेम मानवीय एकता के लिए संघर्ष कर रहा है और इस संघर्ष के उद्देश्य से जो प्रयास किये जाते हैं वे ही कार्य और प्रयास मानव-जीवन के लिए उच्चतम और एक मात्र नियम हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपनीअपनी आत्मा की गहराई में जाने पर इसे महसूस करता है और जानता है।
...प्रेम व्याघातक रूप से समाजवाद, साम्यवाद, अराजकतावाद, मुक्तसेना, बढ़ते हुए अपराध, बेरोजगारी, धनिकों की विलास-प्रियता एवं गरीबों की दयनीयता आदि क्रांतिकारियों को जन्म देते हैं। प्रतिदिन हो रही हत्याएँ-ये सभी आंतरिक व्याघातक स्थितियों की द्योतक हैं। इसका समाधान प्रेम के नियम की जानकारी और हिंसा के त्याग द्वारा होना चाहिए। इसलिए आपकी 'ट्रासवाला' में घटी क्रियाएं विश्व में वास्तविक उद्देश्य की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है और अन्याय कार्य, जो विश्व में हो रहे हैं, उनसे उपयोगी हैं जिसमें मात्र ईसाई धर्म में व्यक्ति ही नहीं वरन संपूर्ण विश्व हिस्सा लेगा।....टॉल्स्टॉय के इस पत्र ने गांधी के भीतर शांति और अहिंसा के बीज सिंचित कर प्रेम रूपी फल प्रदान किया, जिससे गांधी ने शांति, अहिंसा, प्रेम तीनों को आधार बनाकर अपने जीवन के सारे प्रयोगों में उच्चकोटि की सफलता हासिल की।
पत्र व्यवहार में जहाँ गांधी ने श्रद्धा और कृतज्ञता निवेदित की है; वहीं मृत्यु के नजदीक खड़े वयोवृद्ध टॉल्स्टॉय ने अपने पत्रों में अत्यधिक हर्ष और प्रसन्नता प्रकट की है। कुछ भी हो, पर गांधी ने टॉल्स्टॉय से पत्र व्यवहार के जरिये अपूर्व प्रेरणा ग्रहण की और यह प्रकट भी किया कि मेरे जीवन को प्रेरित करने वालों में एक श्रद्धास्पद नाम विद्वान विचारक टॉल्स्टॉय का है।
श्रीमद् रायचन्द गांधी इंसानों में एक चमत्कार थे। उनके चमत्कारी व्यक्तित्व सृजन में अनेक महापुरुषों, महाग्रंथों की प्रत्यक्ष-परोक्ष भूमिका रही है। गांधी का नैतिक-आध्यात्मिक व्यक्तित्व विराट्ता को उपलब्ध हुआ उसका अधिक श्रेय उन्होंने श्रीमद् रायचंद भाई को दिया। गांधी का उनसे प्रथम संपर्क बम्बई में डॉ. मेहता द्वारा करवाया गया। उस समय श्रीमद् की उम्र पचीस साल से अधिक न थी पर वे रेवाशंकर जगजीवन की जैन पेढ़ी के साझी तथा कर्ता-धर्ता थे। उनके व्यक्तित्व की छाप गांधी पर पड़ी। आत्मकथा में लिखा- 'पहली ही मुलाकात में मैंने यह अनुभव किया था कि वे चरित्रवान् और ज्ञानी पुरुष हैं।' इस ज्ञानी पुरुप का बाह्य व्यक्तित्व भी कितना प्रबुद्ध और निस्पृह था इसकी एक झलक कतिपय तथ्यों से होती है
अवधान प्रयोग की सफलता पर जामनगर में उन्हें 'हिन्द का हीरा' उपनाम मिला था। 19
144 / अँधेरे में उजाला