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आध्यात्मिक-नैतिक बोध पाठ
यह संसार नीति पर टिका हुआ है। नीति मात्र का समावेश सत्य में है। सत्य के खोज की तमन्ना तीव्र हो गयी। नीति का एक छप्पय गांधी के दिल में बस गया। शत्रु को भी प्रेम से जीतना चाहिए। अपकार का बदला अपकार नहीं उपकार ही हो सकता है। यह एक जीवन का सूत्र बन गया। अपनी आत्मकथा में लिखा-उसने मुझ पर साम्राज्य चलाना शुरू कर दिया। अपकारी का भला चाहना और करना, इसका मैं अनुरागी बन गया। बचपन में इसे गुनगुनाता। इसके अनगिनत प्रयोग कियें। वह चमत्कारी छप्पय यह है
'पाणी आपने पाय, भलु भोजन तो दीजे; आवी नमाये शीश, दंडवत कोडे कीजे। आपण घासे दाम, काम महोरोनुं कीरीए; आप उगारे प्राण, ते तणा दुःखमां मरीए। गुण केडे तो गुण दशगुणो, मन, वाचा, कर्मेकरी;
अवगुण केडे जो गुण करे, तो जगमां जीत्यो सही।' अर्थात् जो हमें पानी पिलाये, उसे हम अच्छा भोजन करायें। जो आकर हमारे सामने सिर नमाये, उसे हम दंडवत प्रणाम करें। जो हमारे लिए एक पैसा खर्च करे, उसका हम मुहरों की कीमत का काम करें। जो हमारे प्राण बचाये, उसका दुःख दूर करने के लिए हम अपने प्राण तक निछावर कर दें। जो हमारा उपकार करे उसको तो हमें मन, वचन और कर्म से दस गुना उपकार करना ही चाहिए। लेकिन जग में सच्चा और सार्थक जीना उसीका है, जो अपकार करने वाले के प्रति भी उपकार करता है।
जीवन को प्रभावित करने वालों में एक कड़ी छप्पय की है। इसके आदेशों को उन्होंने जीवन में उतारने की भरसक कोशिश की। इसे नीति के रूप में स्वीकार किया एवं सतत् जीवंत प्रेरणा संजोयी। नैतिक सामाजिक जीवन-जीने का यह छप्पय उनके लिए दिशासूचक की तरह पथदर्शन करता रहा।
गिरि-प्रवचन गांधी का बाइबिल से प्रथम परिचय इंग्लैंड में हुआ। 'नये इकरार' (न्यूटेस्टामेंट) से वो बड़े प्रभावित हुए और खासतौर पर ।गरी-प्रवचन' (सरमन आन दि माउंट) तो उनके हृदय में ही पैठ गया। जो तेरा कुर्ता मांगे उसे अंगरखा भी दे दे, जो तेरे दाहिने गाल पर तमाचा मारे, बायां गाल भी उसके सामने कर दे; ‘अपने दुश्मनों को भी प्यार कर और उनके लिए प्रार्थना कर, जिससे वे भी तेरे पिता
142 / अँधेरे में उजाला