________________
... जो सब जीवों को अपने में और अपने को सब जीवों में देखता है, वह उनसे त्रास नहीं पाता।
न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम् ।
कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम्॥ न तो में राज्य की इच्छा करता हूँ, न स्वर्ग की। मोक्ष की भी मुझे इच्छा नहीं है। दुःखी जीवों का दुःख दूर हो, इतनी ही मेरी इच्छा है।
विपदो नैव विपदः संपदो नैव संपदः ।
विपद्विस्मरणं विष्णोः संपन्नारायणस्मृति॥ जिसे हम दुःख समझते हैं वह दुःख नहीं है और जिसे हम सुख समझते हैं वह सुख नहीं है। दुःख तो यह है कि हम भगवान् को भूल जायें और सुख यह है कि हम भगवान् को साक्षी समझ कर सभी काम करें। इस तरह के अनेक आदर्श पद्य गांधी की प्रार्थना के बोल बनते थे।
भजन भी प्रार्थना के रूप में गाये जाते उनमें गांधी को प्रिय थे
1. रघपति राघव राजाराम...........ईश्वर अल्लाह तेरे नाम, 2. वैष्णव जन तो तेने कहिये जो पीर पराई जाणे रे।
इत्यादि प्रेरणा के तौर पर प्रार्थना में गाये जाने वाले बोल उनकी अन्तर जगत् की अभिव्यक्ति के स्रोत हैं। उन्होंने आस्था एवं विश्वास के साथ कहा 'स्तुति, उपासना, प्रार्थना वहम नहीं है, बल्कि हमारा खाना-पीना, चलना-बैठना जितना सच है, उससे भी अधिक सच यह है। यह कहने में अतिश्योक्ति नहीं कि यही सच है, और सब झूठ है।
ऐसी उपासना, ऐसी प्रार्थना, निरा-वाणीविलास नहीं होती। उसका मूल कण्ठ नहीं, हृदय है। अतएव यदि हम हृदय की निर्मलता को पा लें, उसके तारों को सुसंगठित रखें तो उनमें से जो सुर निकलते
हैं, वे गगन-गामी होते हैं। उनकी दृष्टि में विकाररूपी मलों की शुद्धि के लिए हार्दिक उपासना एक रामबाण औषधि है। पर इस प्रसाद के लिए अखंड नम्रता भी जरूरी है।
प्रार्थना गांधी की दिनचर्या का अपरिहार्य अंग बनीं। आश्रम में ठीक प्रातः 4.20 के समय प्रार्थना शब्द से प्रार्थना शुरू होती। सुबह की प्रार्थना का क्रम था : 'जापानी बौद्ध मंत्र, दो मिनट की शांति, ईशावास्य मंत्र, प्रातः स्मरामि वाले आश्रम भजनावली के श्लोक, एकादश व्रत, कुरान शरीफ की आयत, पारसी प्रार्थना, भजन, धुन, गीता या गीताई पारायण जिससे की पूरी गीता एक सप्ताह में समाप्त हो सके, प्रसंगानुसार बाइबिल के अंश या अंग्रेजी भजन भी कभी-कभी सम्मिलित कर लेते थे। प्रार्थना करीब पांच बजे तक पूरी हो जाती।'32 निश्चित रूप से प्रार्थना गांधी के आत्मा की खुराक थी, जिसके सहारे वे सदैव सहृद्य-सहज निश्छल नजर आते।
सांस्कृतिक मूल्य / 141